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- N. Raghuraman’s Column Women Have Their Own Ways Of Building Mental Toughness
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
वे आर्थिक तंगी के दिन थे, जैसे किसी भी मध्यमवर्गीय परिवार के होते हैं। जब पैसे नहीं होते, तो पिता परेशान हो जाते थे, लेकिन मां नहीं। उन चिंता भरे दिनों में भी वे बहुत अच्छे परिधान पहनती थीं और अपने पसंदीदा मंदिर चली जाती थीं।
वे सूती साड़ी को इस तरह से पहनती थीं कि देखने वाले को लगे जैसे किसी ने साड़ी पहनी जाने के बाद उसे इस्तरी किया हो। साड़ी उधड़ी हुई नहीं लगती थी। जब वे चलती थीं, तो उनके हाव-भाव किसी धनी महिला जैसे लगते थे और वे कभी असहज नहीं होती थीं।
उस तरह से साड़ी पहनने से उन्हें असीम आत्मविश्वास मिलता था, जिससे वे खुश और संतुष्ट रहती थीं। उन कठिन दिनों में वे नागपुर के धनतोली स्थित भवानी मंदिर तक पैदल जाती थीं और सीधे भगवान से संवाद करती थीं। जब वे भगवान के सामने होती थीं, तो मैंने उन्हें नम आंखों से उनसे बातें करते और अपनी आंखों को बड़ी स्टाइल से पोंछते हुए देखा है।
वे पुजारी से पवित्र जल लेने के लिए अपनी हथेली आगे बढ़ातीं और उसे अपनी आंखों और मुंह पर ऐसे डाल देतीं ताकि उनके आंसू उनके पूरे चेहरे पर ही किसी पवित्र जल की तरह फैले हुए लगें। फिर से मुड़तीं और उन श्रद्धालुओं की ओर देखकर मुस्करातीं, जो उन्हें जानते थे। वे कभी अपना दुःख, चिंताएं या पैसों की कमी की बात जाहिर नहीं करती थीं। ऐसी थीं मेरी मां!
मुझे अपनी मां के साथ मंदिर जाने का बचपन का यह अनुभव तब याद आ गया, जब मैंने मुम्बई की 25 वर्षीय जेमिमा रोड्रिगेस को देखा। उन्होंने अपने अर्धशतक या शतक के पूरे होने का जश्न नहीं मनाया था। कई लोगों ने उन्हें घुटनों के बल बैठकर चुपचाप प्रार्थना करते हुए देखा, शायद अपनी आस्था से शक्ति प्राप्त करते हुए।
शायद यह एक कारण हो सकता है कि वे तीन घंटे और 13 मिनट तक खड़ी रह सकीं और 134 गेंदों का सामना करते हुए विश्व कप सेमीफाइनल में नाबाद 127 रन बनाए। आखिरकार वे गुरुवार रात नवी मुम्बई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में दिग्गज ऑस्ट्रेलिया पर भारत की पांच विकेट से जीत की पटकथा लिखने में सफल रहीं।
मैच के बाद, कई लोगों को रोड्रिगेस विजय के भाव से भरी हुई नहीं लगीं। इसके बजाय उन्होंने 34,651 जोड़ी आंखों के सामने सार्वजनिक रूप से अपनी कमजोरी प्रदर्शित की और कई बार रोईं। लेकिन मेरा मानना है कि इससे पूर्व उन्होंने जैसे तनाव का सामना किया था, उससे जूझने की मानसिक दृढ़ता प्राप्त करने का यह उनका अपना तरीका था।
आज के समय हममें से कई पुरुष तब चिढ़ जाते हैं, जब उनकी जीवन संगिनी आर्थिक तंगी के बावजूद कोई महंगी लिपस्टिक खरीदने का फैसला करती है। यह चीज पुरुषों को मामूली लग सकती है। लेकिन मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि यह भावनात्मक रूप से हालात का सामना करने का एक शक्तिशाली तरीका है।
यह एक तरह की रिटेल थैरेपी है। खासकर अफोर्डेबल चीजें मस्तिष्क के रिवॉर्ड सिस्टम को सक्रिय करती हैं, डोपामाइन का स्राव करती हैं और ऐसा एहसास दिलाती हैं कि चीजें हमारे नियंत्रण में हैं। एक छोटी-सी खुशी भी आराम, सामान्यता और कभी-कभी आशा भी दे सकती है।
व्यवहारगत-अर्थशास्त्र में शोध से पता चलता है कि लोग महंगे सुखों की तुलना में किफायती सुखों से ज्यादा संतुष्टि प्राप्त करते हैं। एक मोमबत्ती या लिपस्टिक वैसी सच्ची खुशी दे सकती है, जो कोई आलीशान बैग न दे। पूरी दुनिया में महिलाओं का अपनी अभिव्यक्ति के तरीकों पर खर्च बहस का विषय बनता है।
याद रखें कि महिलाएं अपनी केयरगिविंग वाली भूमिका निभाते हुए पुरुषों की तुलना में अधिक आर्थिक तनाव और प्रदर्शनगत व सामाजिक दबाव का सामना करती हैं। तब ऐसी अभिव्यक्तियां और छोटी-छोटी विलासिताएं उन्हें ऊर्जावान बनाती हैं। यह इस पीढ़ी की महिलाओं के लिए एक मनोवैज्ञानिक कवच है, जिसकी मदद से वे बाहरी परिस्थितियां अनुकूल न होने पर भी पराजित दिखने से इनकार करती हैं।
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एन. रघुरामन का कॉलम: महिलाओं के पास मानसिक दृढ़ता बढ़ाने के अपने तरीके होते हैं

