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एन. रघुरामन का कॉलम: बच्चों के सामने हमारा बर्ताव अच्छा होना क्यों जरूरी है? Politics & News

एन. रघुरामन का कॉलम:  बच्चों के सामने हमारा बर्ताव अच्छा होना क्यों जरूरी है? Politics & News

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2 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

क्या आपने कभी, बिना सोचे-समझे, किसी की नकल की है? ऐसे व्यवहार को मनोवैज्ञानिक, ऑब्जर्वेशनल लर्निंग कहते हैं। यानी दूसरों को देखकर सीखना, जानकारी हासिल करना और फिर बाद में देखे गए व्यवहार को दोहराना यानी नकल करना। मुझे यह पिछले शनिवार याद आया, जब मैं भिलाई (छग) के संजय रूंगटा स्कूल में, आठवीं से बारहवीं तक के बच्चों और उनके माता-पिता को संबोधित करने पहुंचा था।

सभी दर्शकों का ध्यान स्टेज की गतिविधियों पर था, लेकिन एक पिता, सबसे आगे बैठकर अखबार पढ़ रहे थे, जिससे पीछे बैठे बच्चों को स्टेज देखने में परेशानी हो रही थी। वे पिता साथ में संगीत भी सुन रहे थे, वह भी ऐसे हॉल में जहां उनके बच्चे के लिए ही लेक्चर दिया जा रहा था। स्कूल को उन्हें टोकने में असहजता हो रही थी क्योंकि न सिर्फ वे एक पैरेंट थे, बल्कि शहर के अमीरों में शामिल थे।

तभी मैंने देखा कि पीछे बैठा एक बच्चा, अखबार का गिरा हुआ पन्ना उठाकर देखने लगा और प्रिंसिपल के भाषण को नजरअंदाज करने लगा। जब मैंने पैसे और सामाजिक व्यवहार के बीच यह संघर्ष देखा, तो मैं स्टेज से उठकर गया और उन पिता को रोका। मैंने उनके कंधे पर थपथपाया क्योंकि वे हेडफ़ोन लगाए हुए थे। यह देख बच्चे हंस पड़े।मुझे यह घटना बीते गुरुवार याद आई, जब मैंने मुंबई में स्कूल केयरटेकर के साथ कुछ बच्चों को सड़क पार करते देखा।

केयरटेकर ने सभी कारों को रुकने का इशारा किया और बच्चों को रोड क्रॉस करवाई, जबकि पैदल यात्रियों के लिए सिग्नल लाल था। जब एक कार मालिक ने केयरटेकर को गलती बताई, तो वह बोली, “तो क्या हुआ, बच्चों के लिए इतना भी नहीं कर सकते क्या?” ड्राइवर ने विनम्रता से कहा, ‘देखिए, मुझे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन आप बच्चों को अप्रत्यक्ष रूप से यह सिखा रही हैं कि पैदल यात्रियों के लिए सिग्नल लाल होने पर भी सड़क पार की जा सकती है।’ वह बात को नज़रअंदाज कर चली गई।

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रूंगटा स्कूल के उस पिता और मुंबई के स्कूल की केयरटेकर, दोनों को अहसास नहीं था कि कैसे बच्चे बड़ों को देखकर उनके जैसे ही काम करते हैं। बच्चे, बड़ों के व्यवहार से ज्यादा तेजी से सीखते हैं और दूसरों के साथ वैसा ही बर्ताव करते हैं जैसा उनके माता-पिता या देखभाल करने वाले करते हैं। बेशक, वे हर व्यवहार की सिर्फ नकल ही नहीं करते।

जैसे, जब बच्चा थकी-हारी मां को कपड़ों की घड़ी बनाते देखता है, तो वह कुछ कपड़े उठाकर मां की इसलिए नकल करता है, ताकि मां इनाम में गले लगा ले या तारीफ करे। ऑब्जर्वेशनल लर्निंग के मामले में, बंडुरा का बोबो डॉल प्रयोग बहुत मशहूर है। इसमें बंडुरा ने बताया कि कैसे छोटे बच्चे किसी वयस्क मॉडल के आक्रामक व्यवहार की नकल कर सकते हैं। बच्चों ने एक फिल्म देखी जिसमें एक वयस्क, बड़ी और फुलाने वाले डॉल को लगातार मारता है।

बाद में बच्चों को कुछ देर डॉल के साथ खेलने दिया गया। जिन बच्चों ने यह देखा कि डॉल को मारने पर वयस्क के साथ कुछ बुरा नहीं हुआ या उसे इनाम मिला, उन बच्चों में बड़ों के हिंसक व्यवहार की नकल करने की आशंका ज्यादा दिखी। जबकि, जिन बच्चों ने यह देखा कि बड़ों को बुरे या आक्रामक बर्ताव के लिए सजा मिला, तो उनमें नकल करने की संभावना घट गई।

फंडा यह है कि हम चाहे माता-पिता हों या नहीं, हमें बच्चों के बीच अपने सामाजिक व्यवहार को लेकर जागरूक रहना चाहिए। इसकी बहुत ज्यादा आशंका है कि हमारा बुरा बर्ताव, भविष्य में ऐसे समाज का निर्माण कर दे, जिसका हमें पछतावा हो।

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