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- N. Raghuraman’s Column Don’t Make It A Habit To Borrow Money From ‘Bomad’ For Children!
2 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
हाल ही में एक एंटरटेनमेंट शो में साथी सुदेश का परिचय देते हुए कॉमेडियन कृष्णा ने कहा, “कपिल, भारती और सुदेश जैसे लोग अमृतसर जैसे बहुत छोटे शहरों से आते हैं।’
सुदेश की ओर हाथ से इशारा करते हुए कृष्णा ने कहा, “ग्लैमर से भरे शहर में वह महज डेढ़ सौ रुपए लेकर आया था और आज भगवान की कृपा से उसके ऊपर सात-आठ करोड़ का लोन है।’ और यह सुनकर दर्शक खिल-खिलाकर हंस पड़ते हैं। पर मेरे लिए ये कोई जोक नहीं था, जिस पर हंसा जाए, बल्कि यह एक व्यंग्य था, जो कटाक्ष में गंभीर बात कह देता है।
हां, यह टिप्पणी वित्तीय रूप से गैर-अनुशासित उन सभी लोगों के मुंह पर तमाचा है, फिर चाहे भी वे पीढ़ी एक्स (1964 से 1980 के बीच जन्मे) के हों या मिलेनियल्स (1981 से 1996 के बीच) या फिर जेन ज़ी (1997 से 2012 के बीच जन्मे) के लोग हों।
मैं यहां बेबी बूमर्स पीढ़ी (1946 से 1964 के बीच जन्मे) के बारे में बात नहीं कर रहा, क्योंकि ये लोग अगले 27 दिनों में 60 साल के हो जाएंगे और 31 दिसंबर 2024 को अपनी आखिरी सैलरी पाएंगे।
इसके अलावा यह वही लोग हैं जिन्होंने ‘बीओएमएमएडी-बोमाड’ ईजाद किया, जहां से देखकर बाकी पीढ़ियों ने भी कर्ज लेना शुरू कर दिया और यही कारण है कि बाद की पीढ़ियों को वित्तीय रूप से गैर-अनुशासित बनाने के पीछ मैं उन्हें जिम्मेदार ठहराता हूं!
आप सोच रहे होंगे कि ‘बोमाड’ क्या है? और आश्चर्य में पड़ गए होंगे कि ईजाद करने वाला ही अपराधी कैसे हो सकता है, तो आगे पढ़ें। आजकल ज्यादा से ज्यादा खरीदार ‘बाय नाउ पे लेटर’ की सुविधा लेते हैं। दुनियाभर में क्रेडिट कार्ड से बहुत ज्यादा कर्ज यही संकेत देता है।
क्रेडिट कार्ड ऐसा ही एक दानव है, जिसके चलते ग्राहक हद से ज्यादा खर्च करते हैं और वो खरीद लेते हैं जो नहीं लेना चाहते। जब लोग कई कार्ड से ढेर सारे आइटम खरीद लेते हैं और एक कार्ड का भुगतान दूसरे कार्ड से करते हैं, तो वे हमेशा मौजूद रहने वाले क्रेडिट के आइडिया पर भरोसा कर रहे होते हैं।
‘बाय नाउ पे लेटर’ के मनोविज्ञान से लोगों को लगता है कि यह कर्ज नहीं है। यही कारण है की दुनिया के बड़े वित्त विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कई युवा छुट्टियों के इस सीजन में खरीदारी कर रहे हैं, जिनकी माली हालत पहले ही डेंजर जोन में है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि बैंक ऑफ मॉम एंड डैड (बोमाड) ने बच्चों की बुनियादी शिक्षा के लिए उन स्कूलों में खर्च किया, जिन्होंने अपने नाम के साथ इंटरनेशनल का टैग लगाया था, और उन स्कूलों की तुलना में फीस सैकड़ों गुना ऊंची रखी, जहां बेबी बूमर्स गए थे।
फिर उन्होंने बच्चों को दुनिया के अलग-अलग कोनों के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में भेजा (अमेरिकी यूनिवर्सिटी में भारतीय छात्रों की संख्या साल 2024 में सर्वाधिक है) और लाखों में फीस भरी, उनके रहने-खाने पर खर्च किया। वे यहीं नहीं रुके।
चूंकि बेबी बूमर्स, जिन्हें प्रॉपर्टी की कीमतों से फायदा हुआ, डरे हुए थे कि कहीं उनके बच्चे संपत्ति के पायदान में पीछे न छूट जाएं, इसलिए उन्होंने बच्चों की पहली संपत्ति के लिए डाउन पेमेंट करने तक में मदद की। माता-पिता का इस तरह से सपोर्ट दुनियाभर में बढ़ रहा है।
याद रखें, ज्यादातर बेबी बूमर्स बेसिक शिक्षा के साथ कार्यक्षेत्र में आए और एक-एक कदम बढ़ाते हुए करिअर, बिजनेस, संपत्ति तैयार की। हम गिरे भी और खड़े भी हुए। पर कभी माता-पिता को नहीं कहा कि हम जमीन पर आ गए हैं।
लेकिन हमने बच्चों के साथ ऐसा किया कि पहला कदम उठाते हुए जब वे गिरे, तो हमने जमीन को मारना शुरू कर दिया और उन्हें कहा, ‘मत रो, मैंने पहले ही उस जगह को सजा दे दी है, जिसने आपको गिराया।’ ये हमारी पहली गलती थी। हमने उन्हें कभी उनके पहले कदम के लिए जिम्मेदार नहीं बनाया। उन्हें कभी नहीं कहा कि पहला कदम सावधानी से रखें। उनकी नजरों में सुपरहीरो बनने की गलती की, फिर बोमाड बैंक बनाया, फिर उन्हें और बिगाड़ दिया।
फंडा यह है कि बच्चों के लिए बैंक बनना बंद कर दें। बच्चों के जरा-से गिरने पर अगर हम उनकी ओर से नजरें हटा लें, तो वे हमसे अच्छा करेंगे। याद रखें, हमारे माता-पिता ने हमें ऐसे ही मजबूत बनाया।
एन. रघुरामन का कॉलम: बच्चों के लिए ‘बोमाड’ से पैसे उधार लेने की आदत न डालें!