[ad_1]
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
खनिज पाने का साधारण सिद्धांत है कि ये हमेशा खनन से ही मिलते हैं। लेकिन अब ये परिदृश्य बदल रहा है। दुनिया इन्हें पेड़ों पर उगाने की योजना बना रही है! हां आपने सही सुना। यूएस के एआरपीए-ई या एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी-एनर्जी ने निकेल की फार्मिंग को व्यावहारिक बनाने के तरीकों की खोज के लिए 10 मिलियन डॉलर का निवेश किया है।
ये एजेंसी उन्नत ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान व विकास को बढ़ावा देने व फंडिंग का काम करती है। इस फंडिंग का उपयोग कर रहे प्रोफेसर निकेल को अवशोषित करने वाले ऑइल सीड प्लांट्स को खोज रहे हैं। वे जानते हैं कि ‘हाइपर-एक्यूम्यूलेटर’ पौधे मिट्टी से निकेल और जस्ता जैसे खनिजों की बड़ी मात्रा को अवशोषित करते हैं।
इन पौधों की खेती और फिर धातु के लिए उन्हें जलाकर उनकी राख, बैटरी बनाने वाली कंपनियों के लिए पारंपरिक खनन के महंगे और पर्यावरणीय विनाशकारी विकल्प की तुलना में एक सस्ता विकल्प हो सकती है। और ये खनिज इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की बैटरियों को एनर्जी देने में मदद करेंगे।
हाल के वर्षों में, चीन की खनन व प्रोसेसिंग कंपनियों ने ईवी में इस्तेमाल खनिजों पर एकाधिकार पा लिया है। माइन्स बिजनेस में पर्यावरणीय नियमों के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ती है, इससे इसमें लोगों का मनोबल गिरा है।
अमेरिका में निकेल की सिर्फ एक सक्रिय खदान है और ब्राजील, न्यू कैलेडोनिया, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने तो चीन के सामने अपनी खदानें बंद कर दी हैं। चीनी कंपनियां वैश्विक निकेल आपूर्ति के 54% पर कंट्रोल रखती हैंं और वे प्रमुख खनिजों जैसे लिथियम, कोबाल्ट व दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का कंट्रोल भी रखती हैं।
ईवी में इस्तेमाल खनिजों पर चीन के एकाधिकार ने पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों को वैकल्पिक स्रोत तैयार करने के लिए प्रेरित किया है और आसपास पड़ी जमीन को इसके लिए इस्तेमाल में लाने से बेहतर और क्या हो सकता है? इन धातुओं के स्रोतों के विकल्पों की खोज में, एआरपीए-ई ऐसे आइडिया को फंड कर रहा है, जिन्हें पहले अजीब माना जाता था।
अमेरिकी रक्षा विभाग का एक और प्रोग्राम दुर्लभ-अर्थ मेटल्स को अयस्क से अलग करने के लिए सूक्ष्मजीवों को डिजाइन करने का प्रयास कर रहा है। अमेरिकी वैज्ञानिक ‘फाइटोमाइनिंग’ को लेकर बंटे हैं, इस प्रक्रिया में पौधे मिट्टी से निकलने वाले निकेल को सोख लेंगे और फिर उन पौधों को बाद में काटा जाएगा।
हालांकि इन रिच मिनरल्स में चीन के एकाधिकार को देखते हुए वैज्ञानिक इस प्रोग्राम को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, वहीं अमेरिकी सरकार इस मामले में अपनी ताकत दिखाना चाहती है। दूसरी ओर, ऐसी गतिविधियों का समर्थन करने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि ये प्रक्रियाएं प्रदूषित मिट्टी को साफ करती हैं और बंजर भूमि को खाद्य उत्पादन के लिए तैयार करती हैं।
अधिकांश बंजर जमीन पर निकेल का कंसन्ट्रेट कम है, इसलिए यहां खनन उचित नहीं ठहरा सकते। इसलिए वैज्ञानिक ये पौधे लगाना चाहते हैं, जो खनिज निकालेंगे और उन्हें जलाकर राख से निकेल का कंसन्ट्रेट निकाल सकते हैं। फिर इसे शुद्ध करके कारखानों में बैटरी-ग्रेड सामग्री में बदल सकते हैं।
पौधों से प्राप्त निकेल पारंपरिक निकेल की तुलना में शुद्ध माना जाता है, जिससे कारखाना मालिकों के लिए प्रोसेसिंग का कई तरह का खर्च बच जाता है। अमेरिकी स्टार्टअप मेटलप्लांट पहले से ही अल्बानिया में किसानों को स्थानीय पौधों की प्रजातियों से निकेल की खेती के लिए भुगतान कर रहा है।
मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय में प्लांट बायोटेक्नोलॉजिस्ट ओम प्रकाश धांखेर के नेतृत्व में एक टीम को फंडिंग मिली है ताकि वे जेनेटिक मटेरियल के साथ ऑइलसीड प्लांट को निकेल अवशोषित करने वाले पौधे के रूप में इस्तेमाल कर सकें, ताकि बायोफ्यूल में उपयोग होने वाले ऑइलसीड व निकेल, दोनों से कमाई हो।
फंडा यह है कि अगर दूर-दराज में कहीं आपकी जमीन है, तो यह उसे बेचने का समय नहीं है। पहले जांचें कि उस जमीन के नीचे कहीं कोई खनिज तो नहीं है और अगर है तो उसे निकालें। खनिज निकालने की जानकारी थोड़े समय में सब जगह उपलब्ध हो जाएगी। बस धैर्य दिखाएं।
[ad_2]
एन. रघुरामन का कॉलम: पौधे आपकी ईवी बैटरी को ऊर्जा देने वाले हैं!