[ad_1]
59 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
बहुत कम डॉक्यूमेंट्री ऐसी हैं, जो ‘द वर्ल्ड बिफोर योर फीट’ की तरह हमें उसी पल में मौजूद होने का परिप्रेक्ष्य दे सकें। जेरेमी वर्कमैन की इस सरल लेकिन सम्मोहक डॉक्यूमेंट्री में उसके नायक मैट ग्रीन न्यूयॉर्क की तमाम सड़कों पर पैदल चलने की अपनी व्यक्तिगत-खोज पर निकले हैं।
कैमरा ग्रीन का पीछा करता है। जब वे रुकते हैं तो कैमरा भी रुक जाता है, जब वे कुछ देखते हैं तो कैमरा भी वही देखता है और उनकी यात्रा और उनसे मिलने वालों के साथ उनकी बातचीत के जरिए उनकी कहानी व अतीत की मालूमात करता है। अगर फिल्म की कोई संरचना है, तो वह ग्रीन के दिमाग की तरह बनाई गई है।
ये किसी सस्पेंस फिल्म की तरह बड़ी तस्वीर दिखाने या किसी चीज को उजागर करने में कम दिलचस्पी रखती है, लेकिन शहर को खोजने के लिए ये कई जगहों पर धैर्य से घूमने, रुकने और ऐसे व्यक्ति के दृष्टिकोण से देखने के लिए अपनी गति धीमी कर लेती है, जिसकी रुचि केवल दर्शकों की आंखों को आस-पास हो रही उन चीजों के लिए खोल देने में है, जिन्हें वे उस सड़क पर मौजूद होने के बावजूद अमूमन नजरअंदाज कर देते हैं।
उन्होंने 2010 में अपने शहर में पैदल चलने का ये प्रोजेक्ट शुरू किया था और 2018 में जब यह फिल्म बनकर रिलीज हुई, तब तक उन्होंने पांच सौ किलोमीटर की ही दूरी तय की थी। फिल्म में एक जगह ग्रीन कहते हैं, मेरा मकसद यह नहीं है कि मैं जल्दी से जल्दी अपनी वॉक को पूरा कर लूं, बल्कि यह है कि मैं रास्ते में आने वाली हर चीज को करता चलूं।
एक स्कूल में बातचीत के दौरान ग्रीन बच्चों को बताते हैं कि पैदल चलना किसी जगह पर होने के साथ-साथ आगे बढ़ने का एक अच्छा तरीका है। आप धीमी गति से चलते हैं, जिससे आप अपने आस-पास की चीजों को निहार पाते हैं और ऐसी चीजें देख पाते हैं जो आमतौर पर नजर नहीं आतीं। वे कहते हैं, जब आप उन्हें देखने के लिए ठहरते हैं और उनके लिए समय निकालते हैं, तो वे सुंदर हो जाती हैं।
जो उभरकर सामने आता है, वह एक तरह का कौतूहलपूर्ण मानसिक-भूगोल है, जीवन के सामान्य विवरणों और शहर के छोटे रहस्यों के प्रति आकर्षण। ग्रीन चलते हैं, भटकते हैं, और जो भी व्यक्ति, स्थिति, स्थान उन्हें गुदगुदाता है, वे उसके प्रति जिज्ञासा के साथ रुकते हैं और उस पल को जीते हैं।
इस साल, जब मैं न्यूयॉर्क गया था, तो बिल्कुल उन्हीं की तरह वहां पर चला था और मैंने वहां मौजूद रिश्तेदारों को ऐसी नई बातें बताईं, जो वे वहां दो दशकों से रहने के बावजूद नहीं जानते थे। पांच हफ्तों तक हर शनिवार को हम उस शहर में दस किमी चले, ठीक उसी तरह, जैसे ग्रीन ने अपनी वॉक को फिल्माया और इसने वहां के स्थानीयजनों को अलग नजरिया दिया।
उन्हें अपने उस शहर को खोज निकालने का ये विचार पसंद आया, जिसे उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। साथ ही बातचीत में भी सरलता आ गई, जिसमें आमने-सामने की जल्दी नहीं थी, जो अंतरंगता में बाधा डाल सकती है। हर कदम के साथ, हम बेहतर श्रोता बनते चले गए और हमारे रिश्ते मजबूत होते गए।
हम जानबूझकर बिना गूगल के उन जगहों पर गए, शुरू करने से पहले हमने एक कागज के टुकड़े पर घूमने की जगहें लिखीं और फिर पूरे किए गए मार्गों को चिह्नित करने के लिए रंगीन मार्कर का इस्तेमाल किया। चूंकि हमारे पास कलम और कागज था, इसलिए हमने अपने सामने आई हर उस चीज को नोट कर लिया, जो अलग थी और हमारा ध्यान खींचती थी।
हम कभी जल्दी में नहीं होते थे, इसलिए हमारी बातचीत में भी जल्दबाजी नहीं थी। कार की आवाजों और पुलिस सायरन- जो कि मैनहट्टन की सड़कों पर सर्वाधिक परेशान करने वाली चीज थी- के बीच हमारा रिश्ता और गहरा होता गया।
मैंने पांच शनिवारों में 50 किमी दूरी तय की और वादा किया कि मैं नवंबर से इसे फिर से शुरू करूंगा, जब मुंबई में सर्दियां शुरू हो चुकी होंगी। सर्दियों के अंत तक मैं थोड़ा और बुद्धिमान सहयात्री बन चुका होऊंगा।
फंडा यह है कि इन सर्दियों से सप्ताह में एक दिन बिना किसी काम के अपने-अपने शहर में पैदल चलना शुरू करें और देखें कि वाहनों का उपयोग करते समय आप क्या देखने से चूक गए थे। मुझे यकीन है कि आपको अपना शहर न सिर्फ अलग दिखेगा, बल्कि वह आपकी सोच से ज्यादा खूबसूरत भी लगेगा।
[ad_2]
एन. रघुरामन का कॉलम: पैदल चलने पर आपका शहर कैसा दिखाई देता है?