[ad_1]
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
पहली कहानी : पिछले गुरुवार की बात है। 22 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर पथिक गुबारे ऑफिस पहुंचना चाहते थे। उस दिन उनका सबसे जरूरी काम था, अपना लैपटॉप कंपनी तक पहुंचाना और दूसरा जरूरी काम दफ्तर में उनकी खुद की उपस्थिति थी।
उन्होंने कैब या ऑटो बुक करने की कोशिश की। ट्राफिक, व्यस्यतम समय की मांग या फिर बैड लक कहें, कारण जो भी हो, पर उन्हें कैब नहीं मिली। खीझकर पथिक ने पोर्टर एप पर क्लिक किया, यह शहर के अंदर ही सामान डिलीवरी करने वाला एप है, जो 20 किलो से कम सामान डिलीवर करता है।
चूंकि लैपटॉप इस विवरण में फिट हो रहा था, उन्होंने इसे बुक किया और जैसे ही लैपटॉप लेने के लिए ड्राइवर आया, पथिक ने अनुरोध किया कि क्या वो उसे भी लैपटॉप के साथ सामान-सरीखा ऑफिस छोड़ सकता है? पहले वो असमंजस में पड़ गया, बाद में उसने पथिक को गाड़ी के पीछे बैठाया और चार किमी दूर उसके ऑफिस तक छोड़ दिया।
चूंकि ड्राइवर ने उससे कुछ भी अतिरिक्त नहीं लिया, पथिक ने उसे टिप दी और सोशल मीडिया पर लिखा, आज खुद को ऑफिस तक पोर्टर कराना पड़ा क्योंकि कोई ओला, उबर नहीं थी। (बेंगलुरु के ट्राफिक की समस्या और राइड से जुड़े मुद्दों पर यह रचनात्मकता दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर कोई लोगों ने उसकी तारीफ की)
दूसरी कहानी : 16 वर्षीय लड़के टॉड की पढ़ाई पर पैसा, समय खर्च करने और तमाम प्रयासों के बावजूद भी वह पढ़ने में असमर्थ था। लेकिन यह सब तब बदल गया जब उसकी मां को “ब्रेन जिम” के बारे में पता चला और ‘क्रॉस क्रॉल’ सीखा।
इस गतिविधि में खड़े होकर बाएं घुटने को कमर तक उठाकर दाएं कोहनी से छूना होता है, फिर दाएं घुटने को बाईं कोहनी से छूना होता है। टॉड इसे रोज करे, यह सुनिश्चित करने के लिए पूरा परिवार, रोज सुबह-सुबह उसके स्कूल जाने से पहले और रात में बिस्तर पर सोने से पहले मिलकर क्रॉस क्रॉल करता।
छह हफ्ते बाद टॉड ने पढ़ना शुरू कर दिया, अच्छे अंक आने लगे! वह बास्केटबॉल भी खेलने लगा, जो पहले उसके लिए संभव नहीं था, हालांकि वह लंबा था, फिर भी गेंद को ड्रिबल नहीं कर पा रहा था! और, हाई स्कूल के बाद, टॉड कॉलेज गया, जहां उसने जीव विज्ञान में डिग्री ली।
पहली कहानी सोशल मीडिया पर सब जगह है और दूसरी कहानी 1995 की पुस्तक “स्मार्ट मूव्स : व्हाई लर्निंग इज नॉट ऑल इन योर हेड’ से है, जिसे न्यूरो फिजियोलॉजिस्ट व शिक्षक डॉ. कार्ला हैनाफोर्ड ने लिखा है। डॉ. कार्ला बताती हैं कि टॉड के पास वो सारी जानकारी थी, जो मस्तिष्क के दोनों हेमिस्फीयर में चाहिए होती है, लेकिन दोनों कॉर्पस कॉलोसम के पार संवाद नहीं कर रहे थे।
क्रॉस-लेटरल मूवमेंट्स मस्तिष्क के दोनों हिस्सों को सक्रिय करती हैं और कॉर्पस कॉलोसम को उत्तेजित करते हैं, जो दोनों हेमिस्फियर के बीच का पदार्थ है या इसे हेमिस्फीयर का कनेक्टर कह सकते हैं। क्रॉस क्रॉल में शरीर की क्रॉस लेटरल गतिविधि होती है, जिसमें शरीर की मध्य रेखा (अदृश्य रेखा जो सिर से पैर तक चलती है और शरीर को दाएं व बाएं हिस्सों में बांटती है) को पार करना होता है, इस तरह मस्तिष्क के हेमिस्फियर एक-दूसरे से संवाद शुरू कर देते हैं!
यही कारण है कि टॉड को सब याद होने लगा और अच्छे अंक पाए, जबकि पथिक ने हटकर सोचने की क्षमता दिखाई और खुद को सामान की तरह माना हालांकि उसका वजन 20 किलो नहीं था!
याद करें, कैसे हमारे माता-पिता या बुजुर्ग, घंटों पढ़ाई के बाद जब भी हमें थका देखते तो घर से बाहर खेलने जाने के लिए कहते थे? उन्हें पता था कि पढ़ाई, जो एक मानसिक गतिविधि है, संभवतः शारीरिक कार्यों से प्रभावित हो सकती है। हो सकता है कि उन्हें ये नहीं पता होगा कि इसे कॉर्पस कॉलोसम कहा जाता है! पर वे बहुत अच्छी तरह जानते थे कि मानसिक और शारीरिक गतिविधियां साथ-साथ चलने वाले रेलवे ट्रैक की तरह हैं।
फंडा यह है कि परीक्षाएं नजदीक हैं, ऐसे में बच्चों को सिर्फ किताबों के साथ ही लॉक करके न रख दें। उन्हें खेल के लिए कुछ समय निकालने के लिए मजबूर करें, और उनकी याददाश्त को तेज करने और उनकी बुद्धिमत्ता को चमकाने के लिए कुछ क्रॉस क्रॉल गतिविधियां करवाएं।
[ad_2]
एन. रघुरामन का कॉलम: परीक्षा की तारीखें नजदीक आने के साथ बच्चों को खेलने दें!