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- N. Raghuraman’s Column Human Qualities Have The Highest Value In The Job Market!
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
पिछले हफ्ते की बात है। भोपाल में एक कॉलेज के स्टूडेंट्स ने ढोल-ताशे वालों को बुलवाया और कॉलेज परिसर के बाहर डांस कर रहे थे, क्योंकि ये उनकी परीक्षा का आखिरी दिन था। हर कोई एक-दूसरे की वाइट शर्ट पर कुछ संदेश लिखकर साइन कर रहा था, मानो अब फिर कभी नहीं मिलेंगे।
उनमें से एक स्मार्ट-से छात्र ने एक जोक मारा- ‘एक नौजवान युवती ट्रेन में चढ़ी और देखा कि एक व्यक्ति उसकी सीट पर बैठा है। उसने अपनी टिकट देखी और कहा, सर, आप शायद मेरी सीट पर बैठे हैं। उस व्यक्ति ने जेब से टिकट निकाली और चिल्लाते हुआ कहा, ध्यान से देखो! ये मेरी सीट है! क्या तुम अंधी हो?’ लड़की ने ध्यान से अपनी टिकट देखी और बहस बंद करके चुपचाप बगल में खड़ी हो गई।
जब ट्रेन चलना शुरू हो गई, तब वो मुड़ी और कहा, ‘सर, आप गलत सीट पर नहीं हैं, गलत ट्रेन में हैं। ट्रेन देवास जा रही है और आपकी टिकट होशंगाबाद की है।’ इससे पहले कि जोक सुनाने वाला अपने चेहरे के भाव व्यक्त कर पाता, स्टूडेंट्स की भीड़ जोर से हंसने लगी, अपनी बुद्धिमानी पर पीठ थपथपाई और फिर से डांस करने लगी, जैसे उन्होंने जिंदगी का कोई गोल्डन टिकट जीत लिया हो।
और मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वहां डांस कर रहे अधिकांश स्टूडेंट्स को यह तक नहीं पता था कि ग्रेजुएट होने के बाद जब उनके हाथ में डिग्री होगी, तब उसके बाद क्या करना है। ये वही स्टूडेंट्स हैं, जिन्हें तीन-चार साल पहले बताया गया था कि अगर वे उनकी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेंगे, तो दुनिया उनके कदमों पर होगी! पर हकीकत कोसों दूर है।
ये साल को वो समय है, जब हमें लगता है कि नौजवान बच्चे घोंसलों से उड़ जाएंगे, जबकि वे घर आकर आराम कर रहे होते हैं। रिजल्ट घोषित होने और उन्हें नौकरियां मिलने से पहले ऐसा हर ही साल होता है। हालांकि विश्वविद्यालयों में परीक्षाएं खत्म हो गई हैं, लेकिन उन्हें पता ही नहीं कि असल जिंदगी की परीक्षा तो अब शुरू हो रही है।
वे इस बात से अनजान हैं कि किसी अच्छी यूनिवर्सिटी से पिछले साल अच्छी-खासी डिग्री लेने के बाद भी उनके जैसे कई युवा, जिन्होंने हर रिंग (सर्कस में इस्तेमाल होने वाला बड़ा छल्ला) को आज्ञाकारी रूप से कूदकर पार किया है, वे अभी भी कुछ गिग नौकरियां कर रहे हैं और बड़ी कंपनियों में नौकरी हासिल नहीं कर पाए हैं। यह जाने बिना कि ये कंपनियां केवल सीवी फिल्टर करने के लिए नहीं बल्कि शुरुआती स्क्रीनिंग इंटरव्यू के लिए भी एआई का इस्तेमाल कर रही हैं, वे बस हताश होकर इन कंपनियों में आवेदन कर रहे हैं।
कल्पना करें कि आप एक वेबकैम के सामने अकेले बैठे हैं, और एक ऐसा बॉट आपका मूल्यांकन कर रहा है, जिसके साथ आप हाथ भी नहीं मिला सकते। दिलचस्प बात यह है कि पहली मुलाकात हमेशा एआई बनाम एआई होती है।
हां, क्योंकि छात्र अपने रिज्यूम बनाने के लिए चैट जीपीटी का प्रयोग कर रहे हैं और कंपनियां इसे समझने के लिए बॉट का उपयोग कर रही हैं। और यह भर्ती को सुगम नहीं बना रहा, बल्कि उल्टा हो रहा है। कंपनियां उन सीनियर्स का समय बचाना चाहती हैं, जो पहले आराम से सीवी चांज लेते थे। इसलिए उन्होंने ये रूटीन काम एआई को सौंप दिए हैं।
और माना जा रहा है कि इस प्रक्रिया के कारण ही कम वेतन वाली शुरुआती स्तर की नौकरियों जैसे देखभाल या कंज्यूमर टच पॉइंट जैसे काम आदि के लिए लोग नहीं मिल रहे, क्योंकि एआई मानवता, सहानुभूति और करुणा को नहीं देख सकती।
इसलिए अब कंपनियों को, सीवी या रिज्यूम को सीनियर्स द्वारा फिल्टर करने की अपनी पुरानी व्यवस्था में लौटना होगा, ताकि वे एआई से अधिक तेज़ी से कम वेतन वाली रिक्तियों को भर सकें। और इसी समय, युवा आवेदकों को अपने सीवी बनाने में एआई का कम से कम उपयोग करना चाहिए।
फंडा यह है कि नौकरी खोजने वालों को अपने अंदर दया- करुणा विकसित करनी चाहिए ताकि दुनिया में फैली निष्ठुरता का मुकाबला कर सकें, वहीं नियोक्ताओं को भी पहले इंटरव्यू में उनसे व्यक्तिगत मुलाकात करनी चाहिए, ताकि उनके अंदर के मजबूत पक्ष व मानवीय गुण देख सकें। नहीं तो एआई दोनों को कंफ्यूज कर देगी- नियोक्ताओं को भी, नौकरी चाहने वालों को भी।
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एन. रघुरामन का कॉलम: नौकरियों के बाजार में मानवीय गुणों का मूल्य सबसे ज्यादा है!