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12 मिनट पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
क्या आप सिर्फ एक शब्द से सर्वोच्च पदों पर बैठे अत्यंत बुद्धिजीवी लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं? आपको लगेगा कि ऐसा आम तौर पर फिल्मों में होता है, क्योंकि उनके संवाद इसी तरह से लिखे जाते हैं। लेकिन पिछले हफ्ते दो सज्जनों के साथ मुझे ऐसा ही अनुभव हुआ।
एक मायने में वे बहुत शक्तिशाली लोग थे। लेकिन मेरे एक शब्द बोलने के बाद वे मुझे पसंद करने लगे और मुझसे एक घंटे से ज्यादा समय तक बात करते रहे। अंत में हम तीनों ने एक-दूसरे से मोबाइल नंबर शेयर किए, जबकि वे आम तौर पर मेरे जैसे आम आदमी के साथ ऐसा नहीं करते और मैं भी किसी के साथ अपना नंबर शेयर करना पसंद नहीं करता।
इस महीने की शुरुआत में, मैं दिल्ली से भोपाल की यात्रा कर रहा था। मैं विमान में पहली पंक्ति की खिड़की वाली सीट पर बैठा था और लैपटॉप पर व्यस्त था। पांच मिनट बाद एक थ्री-पीस सूट पहने व्यक्ति आए और बीच वाली सीट छोड़कर तीसरी सीट पर बैठ गए।
जब वे बैठने वाले थे तो उन्होंने मुस्कराते हुए मेरा अभिवादन किया और मैंने भी मुस्कुराकर जवाब दिया। दो मिनट बाद एक और सज्जन आए। उन्होंने भी बहुत अच्छे कपड़े पहने थे। वे अंदर आए और हम दोनों का अभिवादन करने के बाद बीच वाली सीट पर बैठ गए।
बीच में बैठे व्यक्ति ने थ्री-पीस पहने सज्जन से बातचीत शुरू की और वे अंग्रेजी से बंगाली में बात करने लगे। वे दोनों पूर्वी भारत से थे और संयोग से भोपाल में आयोजित एक ही अखिल भारतीय सम्मेलन में जा रहे थे। जब वे बात कर रहे थे, तब विमान में दाखिल होते लगभग नौ लोगों ने उनका अभिवादन किया और उन्होंने भी बदले में उनका अभिवादन किया।
जैसे ही मैंने अपना काम खत्म किया, बीच में बैठे व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति से कहा, “चलो उनसे पूछते हैं, वे बहुत पढ़े-लिखे व्यक्ति मालूम होते हैं,’ और उन्होंने मुझसे पूछा, “क्या आप मुझे बता सकते हैं कि हमें किस जगह पर बहुत सारा ज्ञान मिल सकता है?’ मैंने कहा, “कब्रस्तान।’ दोनों को थोड़ा आश्चर्य हुआ और इससे पहले कि वे मुझसे पूछें कि मैंने ऐसा क्यों सोचा, उन्होंने अपना परिचय देने का फैसला किया।
बीच में बैठे व्यक्ति ने कहा, “मैं न्यायमूर्ति कौशिक चंदा, कोलकाता हाईकोर्ट से हूं।’ फिर उनके बगल में बैठे व्यक्ति ने कहा, “मैं न्यायमूर्ति बिस्वजीत पालिक, त्रिपुरा हाईकोर्ट से हूं।’ और फिर दोनों ने कहा, “आपने वैसा क्यों कहा?’
मैं धीरे-धीरे रक्षात्मक हो रहा था। मैं न्यायाधीशों के साथ बहस में नहीं पड़ना चाहता था। इसलिए मैंने कहा “कब्रस्तान के बाद, यह विमान वह स्थान होना चाहिए, जहां हमें बहुत सारा ज्ञान मिल सकता है, क्योंकि मुझे लगता है कि वे सभी नौ लोग जिन्होंने आपसे हाथ मिलाया है, वे भी न्यायाधीश ही होंगे।’ वे जोर से हंसे और मेरे चतुराईपूर्ण जवाब की सराहना की। इससे मेरा उनसे एक मेलजोल कायम हो गया।
फिर मैंने उन्हें समझाया कि अधिकांश बुद्धिमान लोग कभी किताबें नहीं लिखते और वे अपनी तमाम बुद्धिमत्ता को अपने साथ कब्रस्तान में ले जाते हैं, इसलिए मैंने वैसा कहा था। इससे हमारे बीच बातचीत शुरू हुई और न्यायमूर्ति चंदा ने मुझसे पूछा कि मैं किस न्यायाधीश से वास्तव में प्रभावित हूं?
मैंने एक सेकंड से अधिक समय नहीं लिया। मैंने कहा बेंजामिन नैथन कार्डोजो- एक अमेरिकी वकील और न्यायविद्- जिन्होंने 1914 से 1932 तक न्यूयॉर्क कोर्ट ऑफ अपील्स में और 1932 से 1938 में अपनी मृत्यु तक अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के एसोसिएट जस्टिस के रूप में काम किया।
जब उन्होंने पूछा कि कार्डोजो क्यों तो मैंने कहा “क्योंकि वे ही थे जिन्होंने खुले तौर पर कहा था “मेरे पास एक अच्छे व्यक्ति को लेकर लाओ, और मैं उसे एक अच्छा न्यायाधीश बना दूंगा।’ अंततः हम नंबर और पते का आदान-प्रदान करते हुए अलग हुए।
फंडा यह है कि अपनी स्क्रीन के सामने ही ना बैठे रहें, अच्छी किताबें पढ़ें, बाहर जाएं और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करें- हुलिया, व्यवहार और बुद्धिमत्ता- यह अंततः अच्छे लोगों को, जिसमें अजनबी भी शामिल हैं- आपकी ओर आकर्षित करेंगे। नेटवर्किंग का यही रहस्य है। आखिर आपका नेटवर्क ही तो आपकी नेटवर्थ है।
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एन. रघुरामन का कॉलम: नेटवर्किंग का सबसे बड़ा रहस्य क्या है?