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34 मिनट पहले

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एन. रघुरामन मैनेजमेंट गुरु
मंगलवार को सीबीएसई की कक्षा 10वीं-12वीं के परिणाम घोषित होने के बाद जहां तमाम स्कूल अपने-अपने टॉपर छात्रों को सामने रखकर श्रेय लेना चाह रहे थे, वहीं मुंबई में विले पार्ले के उत्कर्ष मंडल मूकध्वनि स्कूल ने कई लोगों का ध्यान खींचा। वो इसलिए नहीं कि यहां के बच्चे टॉपर थे और 100% अंक अर्जित किए हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्होंने परफेक्ट 10 हासिल करके स्कूल का नाम रोशन किया।
इस स्कूल में सिर्फ 10 ही छात्र थे और सभी पास हो गए। एक छात्र ने 90% से अधिक अंक प्राप्त किए, छह ने 80% से अधिक, दो ने 70% से अधिक और एक ने 69% अंक प्राप्त किए। आप सोच रहे होंगे कि ऐसी क्या बात थी कि सबका ध्यान इस ओर गया?
दरअसल यह स्कूल मूक-बधिर छात्रों के लिए है और सभी छात्रों ने दसवीं की परीक्षा पास की।अब दूसरा उदाहरण लें। स्वच्छ कॉपरेटिव की सदस्य 27 वर्षीय प्रियंका कांबले की कक्षा तीसरी के बाद पढ़ाई छुड़वा दी गई थी। उनकी जल्दी शादी हो गई और वह सोलापुर चली गईं। उन्हें लोग ‘अनपढ़’ कहकर अपमानित करते थे, इसलिए उन्होंने घर छोड़ दिया और इज्जत की रोटी कमाने के लिए पुणे आ गईं। यहां वह कूड़ा बीनने का काम करती, अपने बेटे के लिए खाना बनातीं और फिर दोपहर 2 बजे स्कूल जातीं।
मंगलवार को जारी रिजल्ट में उन्होंने 48% अंक प्राप्त किए और अब आंगनवाड़ी सेविका बनने की इच्छा रखती हैं। अब उनके पड़ोसी और पति उन्हें बधाई दे रहे हैं। इसी तरह, 26 वर्षीय कोमल गायकवाड़, जो कि सिंगल मदर हैं, उन्होंने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था। 20 साल की उम्र में उनकी शादी हुई और ससुराल वालों ने उनकी शिक्षा की कमी के लिए उन्हें ताने मारते थे। जब उनके गर्भ में दूसरा बच्चा था, उनके पति की कोविड से मृत्यु हो गई।
अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उन्होंने पढ़ाई करने का निर्णय लिया और मंगलवार को 58% अंक प्राप्त किए। वह अपनी शिक्षा जारी रखना चाहती हैं और जूनियर कॉलेज में दाखिला लेना चाहती हैं। 17 वर्षीय कावेरी की कहानी भी दिल को छू लेने वाली है। एक साल की उम्र में उसे लावारिस हालत में छोड़ दिया गया था। उम्र बढ़ने के साथ उसके लिए यह पचा पाना मुश्किल होता गया कि वह इस दुनिया में अकेली है।
साल 2021 में उसे पुणे जिले के मुंढवा में एक सरकारी बालिका गृह में शिफ्ट किया गया। शिक्षा के महत्व को समझते हुए, वह वहां की नौ लड़कियों में से एकमात्र थी जिसने एसएससी परीक्षा दी। कावेरी ने 66.6% अंक प्राप्त किए और वह यूपीएससी परीक्षा देकर आईपीएस बनना चाहती है। उसने साबित किया कि सीमित संसाधन दृढ़ संकल्प को नहीं रोक सकते। वह कहती हैं, “मुझे अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं पता।
मैंने स्वीकार कर लिया है कि मैं अकेली हूं। अब मैं खुश हूं।’ इसी तरह 40 वर्षीय सीमा ओव्हाल सरवडे ने भी 55.8% अंकों से एसएससी पास की, जबकि उनके बेटे ने पहले ही दसवीं पास कर ली थी। 25 साल पहले उन्होंने एसएससी दी थी और असफल रहीं। तब उनके पिता बीमार हो गए थे और उन्हें पैसे की जरूरत थी, इसलिए उन्होंने नर्सिंग कोर्स ज्वाइन करके काम करना शुरू कर दिया।
लेकिन शिक्षा के महत्व को समझते हुए उन्होंने इस साल एसएससी परीक्षा देने का निर्णय लिया। देश में ऐसे कई छात्र हैं, जैसे 16 वर्षीय शाहिद पठान, जिन्होंने पूना नाइट हाई स्कूल में 67.2% अंकों के साथ कक्षा में टॉप किया। जीविका के लिए पैसे की जरूरत के कारण वह पूरा दिन सोशल मीडिया वीडियो बनाते और एडिट करते हैं और शाम को स्कूल जाते हैं।
इन सभी छात्रों व उनके जैसे लोगों में कॉमन ये है कि वे अपनी और परिवार की आर्थिक जरूरतें पूरी करते हुए शिक्षा के जरिए जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने की आकांक्षा रखते हैं। ये छात्र भले ही तथाकथित रूप से ‘ब्राइट’ न हों, लेकिन ‘अनपढ़’ नहीं रहना चाहते। संसाधनों का रोना रोने के बजाय इन छात्रों ने अपनी खूबियों को तराशने पर काम किया।
फंडा यह है कि हर इंसान में ‘खूबियां’ और ‘खामियां’ दोनों होती हैं, बस फर्क इतना सा है कि जो तराशता है उसे खूबी नजर आती है, और जो तलाशता है, उसे खामी नजर आती है!
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एन. रघुरामन का कॉलम: जो तराशता है उसे खूबी, और जो तलाशता है, उसे खामी नजर आती है