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7 मिनट पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
मछुआरे और एक व्यापारी की कहानी हममें से ज्यादातर लोगों ने सुनी होगी। छोटे-से एक गांव में छुट्टियां बिता रहे इस व्यापारी ने बहुत अच्छी क्वालिटी की मछलियां देखीं और हाथों में चंद मछलियां पकड़कर लौट रहे मछुआरे से कहा, ‘अगर और मछलियां पकड़नी है, तो कुछ घंटे और पानी में रुको।’ मछुआरे ने कहा, ‘मेरे परिवार के लिए इतनी काफी हैं।’
व्यापारी ने उससे पूछा, ‘बाकी खाली समय में वह और क्या करता है?’ मछुआरे ने बिना पलक झपकाए कहा, ‘परिवार के साथ अच्छा समय बिताता हूं’। व्यापारी ने कहा कि वह अपना समय बर्बाद कर रहा है और सलाह दी कि अगर वह समुद्र में और समय बिताएगा, तो ज्यादा मछलियां पकड़ सकेगा और ज्यादा पैसा कमा सकेगा, जिससे ज्यादा लोगों को काम पर रख सकेगा और उस पैसे से वह एक कंपनी बना सकता है और लाखों में कमा सकता है।
मछुआरा मोटिवेट हो गया और पूछा, ‘आगे फिर क्या?’ उस व्यापारी ने कहा, ‘फिर तुम इस छोटे-से गांव से बाहर जाकर बड़े वितरकों से सीधा भावतौल कर सकोगे। अपना खुद का प्लांट खोल सकोगे और पूरा काम मुख्य शहर से कर सकोगे।’ मछुआरे ने फिर से पूछा, ‘आगे क्या?’
उस व्यापारी ने गर्व से कहा, ‘तुम ये पूरा द्वीप खरीद सकते हो और अपने नाती-पोतों के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकते हो।’ और तब मछुआरे ने कहा कि, ‘मैं अपने बच्चों के साथ अभी यही कर रहा हूं, नाती-पोतों के आने तक का इंतजार क्यों करूं।’ और यह कहकर वो वहां से चला गया। कहानी इस मोड़ पर खत्म होती है- अब वो व्यापारी खुद मछुआरे के बगल में बैठकर मछली पकड़ रहा है!
इस मंगलवार को यह कहानी मुझे तब याद आ गई, जब मैंने एलएंडटी के चेयरमैन और एमडी एस. एन. सुब्रमण्यन की एक बात सुनी। उन्होंने कहा कि युवा कर्मचारी विभिन्न शहरों में ट्रांसफर या ऑफिस से काम नहीं करना चाहते।
चेन्नई में सीआईआई के एक कार्यक्रम में सुब्रमण्यन ने कहा, ‘अगर मैं चेन्नई से एक व्यक्ति को चुनकर दिल्ली में काम करने के लिए कहूं, तो वह बाय कह देगा। और अगर उसे ऑफिस आकर काम करने के लिए कहेंगे, तब भी वो बाय कह देगा।’ फिर उन्होंने अफसोस जताया कि आईटी की दुनिया में हालत और भी खराब है।
आगे उन्होंने कहा कि निर्माण उद्योग के लिए श्रमिकों का जुटाना एक बड़ी चुनौती है, जो ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जाने से इनकार करते हैं, हालांकि उन्हें उचित आवास भी दिए जाते हैं। सुब्रमण्यन एक सलाह दिए बिना वहां से नहीं गए। उन्होंने कहा, ‘3डी कंक्रीट प्रिंटिंग की प्रति वर्ग फुट लागत पारंपरिक कंक्रीटिंग की तुलना में थोड़ी ज्यादा है, लेकिन अगर लेबर की एेसी ही कमी रही, तो इन तरीकों को अपनाना ही पड़ेगा।’
अब अगर जेन ज़ी क्वालिटी लाइफ जीना चाहते हैं, तो श्रमप्रधान उद्योगों या प्रोजेक्ट्स को भी ऑटोमेशन, एआई और प्रौद्योगिकी के उपयोग पर ध्यान देना शुरू करना चाहिए। इस पीढ़ी से वैसे कड़े परिश्रम की उम्मीद न करें, जैसा बेबी बूमर्स (1946 से 1964 के बीच जन्मे) ने किया था।
उन्होंने कड़ी मेहनत की क्योंकि तब दुनिया श्रमप्रधान थी। और अब अगले चार सालों में कड़ी मेहनत वाले सारे काम रोबोट करने लगेंगे। हालांकि हमें मूलभूत बात नहीं भूलना चाहिए कि ज्यादातर परिवारों की रोटी-कपड़ा और मकान की जरूरतें इन बेबी बूमर्स ने पूरी कर दी हैं। इसलिए जेन ज़ी अब जीवन की क्वालिटी पर फोकस कर रही है।
आज व्यवसायों को उस आबादी को प्रशिक्षित करने के लिए कदम बढ़ाने चाहिए जो आर्थिक पायदान में सबसे नीचे है या फिर संगठित क्षेत्र में पहली बार काम करने वाले कर्मचारी, और उन्हें पारंपरिक काम करने देना चाहिए या ऑटोमेशन की दुनिया पर शिफ्ट करना चाहिए ः दोनों ही मामलों में लागत बढ़ जाएगी, लेकिन मानव जाति की कुल उपलब्धि ज्यादा ही होगी।
फंडा यह है कि दुनिया हार्डवर्क वाली मानसिकता से स्मार्ट वाली मानसिकता की ओर तेजी से बढ़ रही है। दुनिया को जो कीमत चुकानी है, वह केवल एक उत्पाद की लागत है जो बढ़ सकती है। लेकिन युवा पीढ़ी की स्मार्ट काम करने की महत्वाकांक्षाओं के बीच में न आएं।
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एन. रघुरामन का कॉलम: जेन ज़ी जीवन की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहती है