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- N. Raghuraman’s Column When You Accept Change, Your Mind Moves Forward Too
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
वह तमिलनाडु के इरोड का रहने वाला है और एयरोनॉटिकल इंजीनियर है। सात साल पहले, 25 साल की उम्र में हत्या के एक मामले में उसे आजीवन कारावास की सजा हुई और वह कोयंबटूर के केंद्रीय जेल में आ गया।
जाहिर तौर पर एक मेधावी दिमाग को इसका पछतावा होता। मैं उसके हत्या करने की वजह, सजा जैसे नकारात्मक पहलू पर बात करके आपकी सुबह खराब नहीं करना चाहता। इसलिए मैं आपको साल 2024 में लेकर चलता हूं। आज, वह पूरे मीडिया में छाया है, जानना चाहते हैं कैसे?
उसने किसी तरह मान लिया था कि वह जिन मौजूदा स्थितियों में हैं, उन्हें बदला नहीं जा सकता और उसने यहीं से आगे बढ़ने का फैसला किया। पहली चीज उसने सोची कि ये उसकी जिंदगी का अंत नहीं है। जून 2023 में उसने सबसे पहले सोलर पावर से चलने वाली इलेक्ट्रिक साइकिल बनाई, जिसका इस्तेमाल जेल वॉर्डन जेल परिसर में राउंड लगाने के लिए करने लगे।
अपनी खोज को इस्तेमाल में आता देख उसे और भी कुछ करने की प्रेरणा मिली। उसने अधिकारियों से सौर ऊर्जा चलित ऑटो रिक्शा के डिजाइन व निर्माण के लिए सौर पैनल, बैटरी सहित सामग्री की आपूर्ति का अनुरोध किया। जब वे मान गए, तब उसने नवंबर 2024 में असली सोलर ऑटो रिक्शा बना दिया।
बैटरी फुल चार्ज होने के बाद ये रिक्शा 200 किमी तक चल सकता है। इसकी अधिकतम गति 35 किमी प्रति घंटा है और आठ लोग बैठ सकते हैं और इसमें ऑडियो सिस्टम भी है। सोलर पैनल को गाड़ी के ऊपर लगाया गया है। इस वाहन की कीमत 1.25 लाख रुपए के आसपास है।
ट्रायल रन में अच्छे परिणाम आने के बाद कोयंबटूर केंद्रीय जेल ने कैदियों से मिलने के लिए आने वाले परिजनों की मदद के लिए ऑटो का उपयोग करने का फैसला किया। जेल व सुधार सेवाओं के डीजी महेश्वर दयाल ने कुछ दिन पहले जब केंद्रीय कारागार का दौरा किया, तब उन्होंने इस वाहन का मुआयना किया।
उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि सोलर से चलने वाले ठीक ऐसे ही ऑटो-रिक्शा का उत्पादन करके राज्य की बाकी केंद्रीय जेलों में पहुंचाए जाए। बात यहीं नहीं रुकी। जेल अधिकारी अब इस 32 वर्षीय कैदी वी युग अदिथन की प्रतिभा का उपयोग नई परियोजनाओं के लिए करने की योजना बना रहे हैं, जहां वह जेल के उपयोग के लिए एक इलेक्ट्रिक एम्बुलेंस विकसित करने पर काम करेगा।
इस कहानी से मुझे सबसे बड़ा सबक मिला कि वो कोने में बैठकर पश्चाताप नहीं करता रहा, जो शायद शुरू में किया होगा। उसने आगे बढ़ने का फैसला किया। विज्ञान में इसे रेटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम (आरएएस) कहते हैं। यह मस्तिष्क तंत्र में नर्व्स का एक बंडल है जो अनावश्यक जानकारी फिल्टर करता है।
आरएएस वह जानकारी लेता है, जिस पर आप ध्यान देते हैं और इसके लिए फिल्टर बनाता है। यह डेटा के जरिए गैर-जरूरी चीजें हटा देता है और केवल वही बताता है, जो आपके लिए महत्वपूर्ण है। जाहिर है, ये सब आपके गौर किए बिना होता है। जब आप सक्रिय रूप से कुछ नहीं कर रहे होते, तब भी आरएएस आपके पक्ष में काम करने के लिए खुद को प्रोग्राम करता है।
कितना अद्भुत है ना? बिल्कुल ऐसे ही आरएएस ऐसी जानकारी चाहता है जो आपके विश्वासों को मान्यता देे। ये आपके द्वारा दिए मापदंडों के जरिए दुनिया को फिल्टर करता है, और आपके विश्वास उन मापदंडों को आकार देते हैं। अगर आपको लगता है कि आप स्पीच में बुरे हैं, तो आप शायद होंगे।
यदि आपको लगता है कि आप कुशलता से काम करते हैं, तो आप ऐसा कर पाते हैं। और अदिथन के साथ यही हुआ। आरएएस वह चीज दिखाने में आपको मदद करता है, जो आप वाकई देखना चाहते हैं और ऐसा करते हुए आपके एक्शंस को प्रभावित करता है। आप अवचेतन विचारों को लेकर और उन्हें सचेत विचारों से मिलाकर आरएएस को प्रशिक्षित कर सकते हैं। कई लोग इसे “अपने इरादा तय करना” कहते हैं।
फंडा यह है कि यदि आप अपने लक्ष्यों पर कड़ी मेहनत करते हैं, तो आपका आरएएस ऐसे लोगों, सूचनाओं और अवसरों को आपके सामने लाकर रख देगा, जो लक्ष्य पाने में आपके मददगार साबित होंगे। इसलिए अपने मानक ऊंचे रखते हुए बदलावों का स्वीकार करिए।
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एन. रघुरामन का कॉलम: जब आप बदलाव स्वीकार कर लेते हैं तो दिमाग भी आगे बढ़ जाता है