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- N. Raghuraman’s Column Haven’t You Experienced This Pain Of Customer Service?
2 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
पहला दर्द : आप चंद सामान के साथ कैश काउंटर पर पहुंचते हैं क्योंकि आप जल्दी बाहर जाना चाहते हैं। काउंटर संभाल रहा नौजवान अपने फोन में कुछ देख रहा होता है। एक मिनट बाद उसे अहसास होता है कि आप अभी भी भौहें ऊंची करके खड़े हैं। वह तुरंत सिरी से कहता है, “मैं तुम्हें वापस फोन करता हूं, मेरे पास एक ग्राहक है।’
दूसरा दर्द : आप एक चलायमान दुकान पर पहुंचते हैं। मशीन कहती है, वेटिंग टाइम 45 मिनट है। फिर भी आप वही लाल टी-शर्ट पहने किसी के पास जाते हैं और कहते हैं, ‘अच्छा, मेरा एक झटपट सवाल है, जिसका तुम शायद जवाब दे सको।’ वह ये कहकर बीच में बात काट देता है, ‘मैं कोई प्रश्न नहीं ले सकता क्योंकि वेटिंग टाइम 45 मिनट है।’ आप विनती करते हैं कि सिर्फ हां या ना कहने की जरूरत है। और वह कहता है, “कृपया कतार में आएं, पंजीयन कराएं और 45 मिनट बाद आएं और वह कान बंद कर लेता है।’
तीसरा दर्द : काफी जद्दोजहद के बाद आपको कॉल सेंटर का नंबर मिलता है, आप फोन करते हैं। चैटबॉट ये कहकर स्वागत करता है, आप 9xxxxxx117 नंबर से फोन कर रहे हैं, अगर हां तो 1 दबाएं। आप सोचते हैं कि जब उसे नंबर पता है, तो सत्यापन की क्या जरूरत है। आपके पास 1 दबाने के अलावा विकल्प नहीं। फिर असली परीक्षा शुरू होती है। यह नौ विकल्प देता है और 1 से 9 के बीच दबाने को कहता है- जबकि वे आपके लिए फिजूल हैं।
फिर चैटबॉट थककर कहता है, अगर आप ग्राहक संपर्क अधिकारी से बात करना चाहते हैं, तो 0 दबाएं। 0 दबाते ही ये झट से कहता है, हमें आपके वक्त की कद्र है, पर दुर्भाग्य से वेटिंग टाइम 30 मिनट है। हर तीन मिनट में वही संदेश दोहराता है और 28वें मिनट कोई इंसान आकर आपसे हैलो बोलता है और उम्मीद करता है कि 2 मिनट जल्दी आने के लिए आप उसे धन्यवाद कहें। 28 मिनट इंतजार के लिए कोई माफी नहीं!
अगर आप कहेंगे कि आपके साथ ऐसा एक भी बार नहीं हुआ, तो मुझे आपकी बात पर बिल्कुल यकीं नहीं होगा। स्थिति इतनी खराब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा कि उनका प्रशासन चाहता है कि रोज़मर्रा के सिरदर्द-परेशानियों पर नकेल कसें जो प्रतीक्षा समय, कागजी कार्रवाई व अन्य बाधाओं के कारण अमेरिकियों के समय और धन बर्बाद करते हैं।
कस्टमर केयर मेजरमेंट एंड कंसल्टिंग द्वारा ग्राहकों के गुस्से पर किए सालाना सर्वे के अनुसार स्वचालित फोन सिस्टम और कंपनी का संपर्क तलाशने में आने वाली कठिनाई, ऐसे प्रमुख मुद्दे हैं, जो ग्राहकों को परेशान कहते हैं।
सर्वे कहता है कि शिकायत के दौरान ज्यादातर ग्राहक पैसे नहीं चाहते बल्कि उन्हें गरिमा व स्पष्टीकरण चाहिए होता है। इस कंसल्टिंग कंपनी के सीईओ और प्रेसिडेंट स्कॉट ब्रोट्ज़मैन का कहना है, “सर्विसेस अपनी आत्मा खो चुकी हैं। इसका वास्तव में क्या अर्थ है, कोई शिष्टता नहीं बची है।’
एक और परेशान करने वाला आंकड़ा शिकायत दर्ज कराने के दौरान ग्राहकों का बढ़ता गुस्सा और अशिष्टता है। सर्विस से जुड़ी शिकायत में 43% ग्राहक चिल्लाते हैं या ऊंची आवाज में बात करते हैं, 2013 से ये 8% की वृद्धि है।
कई लोगों ने बताया कि कोई कदम उठाने पर या बुरी सर्विस पर कार्रवाई की कोशिश में उन्हें खराब लगता है, थक जाते हैं और चिंता भी लगती है। कोई लोग भड़ास निकालने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं और न्याय की मांग करते हैं, आर्थिक निष्पक्षता के लिए यह बहुत जरूरी है।
अब आखिर में आप पूछेंगे कि दोष किसे दें, तो जवाब है आप और हम, क्योंकि हम लोग कीमत के पीछे भागते हैं। हम सबसे सस्ता उत्पाद देखते हैं। इसलिए कंपनियां भी उसी हिसाब से जवाब देती हैं और कस्टमर सर्विस में कटौती करती हैं। कम दाम की उम्मीद करना और खरीदने के बाद किसी सपोर्ट की उम्मीद करना कोरी-कल्पना है।
फंडा यह है कि स्थानीय दुकानों से खरीदी करें, त्योहारी मौसम में संबंध बनाएं। याद रखें, आप ऑनलाइन से महज थोड़ा ही ज्यादा पैसा चुका रहे हैं। पर सिर्फ एक फोन में ये स्थानीय दुकानदार यथाशीघ्र आपके दरवाजे पर होते हैं, क्योंकि आपको उनका नाम, पता, नंबर मालूम होता है।
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एन. रघुरामन का कॉलम: ग्राहक सेवा के इस दर्द को क्या आपने अनुभव नहीं किया है?