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एन. रघुरामन का कॉलम: गणितीय ज्ञान की कमी के कारण हम पर कौन हावी होगा? Politics & News

एन. रघुरामन का कॉलम:  गणितीय ज्ञान की कमी के कारण हम पर कौन हावी होगा? Politics & News

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16 मिनट पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

क्या आपको याद है जब पूरी प्राथमिक कक्षा एक सुर में ‘एक एकम एक, एक दूनी दो’ से लेकर ‘16 एकम 16, 16 दूनी 32’ तक दोहराती थी। वास्तव में उस वक्त वो 1 से 16 तक के पहाड़े याद कर रही होती थी। जब तक हम 1 से 16 तक के पहाड़े याद करने में पारंगत नहीं हो जाते थे, उन दिनों में हमारे गणित के टीचर ब्लैक बोर्ड पर कुछ भी नहीं लिखते थे। और इसका नतीजा आज हम देख रहे हैं।

उस बुनियाद के बल पर ही हम यह गणना तत्काल कर लेते हैं कि राशन वाले को कितने पैसे देने हैं और य​दि किसी वस्तु पर 23% छूट है तो हम कितनी बचत कर लेंगे। फिर कैलकुलेटर आए। धीरे-धीरे बच्चे हमसे सवाल करने लगे कि पहाड़े क्यों पढ़ें?

जोर-जोर से पहाड़ों का दोहराना खत्म हो गया। फिर हाल ही चैटबॉट आया, जो यदि आप अपनी मातृभाषा में भी कुछ बड़बड़ाओ, तो भी आपकी पसंद की भाषा में वाक्य बना देगा। अब वो दिन दूर नहीं, जब अगली पीढ़ी सवाल करेगी कि वे भाषा भी क्यों पढ़ें।

अब सीधे जुलाई 2025 पर आते हैं। ये हैरतअंगेज आंकड़ा है कि नवीं कक्षा के 63% विद्यार्थी अंकों का सामान्य पैटर्न पहचानने में भी विफल रहे हैं। उन्हें भिन्न व पूर्णांक जैसे सामान्य अंकों की समझ नहीं है। भारत में छठी कक्षा के स्कूली छात्र पुस्तकों के मुख्य पाठों को ही नहीं समझ पाते।

पिछले साल दिसंबर में शिक्षा मंत्रालय की ओर से कराए ‘परख’ राष्ट्रीय सर्वे में ये निष्कर्ष निकला है, जिसे पूर्व में राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण कहते थे। सर्वे में 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 781 जिलों में स्थि​त 74,229 स्कूलों के तीसरी, छठी और नवीं कक्षा के 21,15,022 विद्यार्थियों का आकलन किया गया।

इसमें पाया गया कि छठी कक्षा के 54% विद्यार्थी पूर्णांकों की तुलना करने और बड़ी संख्याओं को पढ़ने में असफल रहे। यह देश की शिक्षा प्रणाली में सीखने की कमजोरी को दर्शाता है। सर्वे में कहा गया कि छात्रों को 7 के गुणज, 3 की घात, अभाज्य संख्याएं पहचानने और रोजमर्रा की जरूरतों के लिए प्रतिशत व भिन्न की गणना करने में भी परेशानी होती है।

तो फिर हमारी खरीद के भुगतान, वेतन, ओवरटाइम की गणना करते वक्त हमारे जीवन पर कौन हावी होने जा रहा है? बेशक, एआई? यह कहकर इसे खारिज मत कर देना कि एआई को हमारे रोजमर्रा के जीवन में दखल देने में अभी बहुत समय लगेगा।

याद करो कि कैसे 1835 में घोड़ा गाड़ी मालिकों ने 1830 में यूके में लिवरपूल से मैनचेस्टर तक शुरू हुई दुनिया की पहली रेल के प्रभाव को खारिज किया था। उन्होंने कहा कि रेल यातायात कभी भी उनके व्यवसाय पर भारी नहीं पड़ेगा। और रेल ने ना सिर्फ उनके व्यवसाय को खत्म कर दिया, बल्कि कुछ वर्षों में ही पूरे विश्व में औद्योगिक क्रांति को भी गति दी।

‘सेपियन्स’ के लेखक युवाल नोआ हरारी से जब मीडिया ने पूछा कि क्या एआई के युग में मानव की क्षमता कम हो जाएगी? उन्होंने जवाब दिया कि ‘मुझे लगता है, जिन क्षेत्रों में हम सबसे पहले बड़े बदलाव देखेंगे, उनमें वि​त्तीय प्रणाली शामिल है।’ क्योंकि वित्त शुद्ध रूप से एक सूचना संबंधी क्षेत्र है।

सेल्फ ड्राइविंग वाहन आधुनिक जीवन पर अभी बहुत असर नहीं छोड़ पाए हैं, क्योंकि वे अभी पैदल चलने वालों की आदतें (बुरी आदतें) और गड्ढों के बारे में सीख रहे हैं। पर वित्त के मामले में ये ‘इंफॉर्मेशन इन’ और ‘इंफॉर्मेशन आउट’ का मामला ही है। इसीलिए इस क्षेत्र पर नियंत्रण कर लेना एआई के लिए बहुत आसान होगा।

हरारी का पूर्वानुमान है कि एक बार एआई वित्त क्षेत्र में हावी हुआ तो यह उन उपकरणों में निवेश शुरू कर देगा, गणितीय जटिलताओं के कारण मानव मस्तिष्क जिनसे निपटने में अक्षम है। अब ऊपर बताए पहाड़ों को देखें, जिन्हें दोहराना बंद करने के कारण हमारे बच्चे अंकों के साथ मजबूत रिश्ता नहीं बना पाए। मोबाइल ने नंबर्स याद रखने की हमारी मेमोरी छीन ली। कोई भी ये मानने से इनकार नहीं कर सकता कि एआई गणना कर सकने वाला एक एजेंट तो है, लेकिन ऐसा औजार नहीं जिसका नियंत्रण हमारे हाथों में हो।

फंडा यह है कि हम जितना गणित से दूर भागेंगे, एआई उतना ही रोजमर्रा की जिंदगी पर काबू पा लेगा। अब आप तय करिए कि हम अगली पीढ़ी को न्यूमेरिकल इंटेलिजेंस देना चाहते हैं या नहीं?

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