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14 मिनट पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
हाल ही में मेरे एक दोस्त ने अपने काम से 10 महीने का ब्रेक लिया, कुछ वेतन के साथ और कुछ बिना वेतन के, क्योंकि वो अपने पांच साल के बेटे को कोचिंग दे रहा है और उसे ‘रेडशर्टिंग’ के लिए प्रोत्साहित किया है। बच्चे की मां ने भी उसके जन्म के समय एक साल की छुट्टी ली थी और अब उसके पांच वर्ष के होने पर पिता ने ली है, क्योंकि उसे लगता है बेटा औपचारिक शिक्षा के जगत में अब दूसरा जन्म लेने जा रहा है।
विकसित देशों में कुछ माता-पिता औपचारिक स्कूलिंग शुरू होने से पहले बेटियों को नहीं, बेटों को ‘रेडशर्टिंग’ कराते हैं। चलिए, ‘रेडशर्टिंग’ समझने से पहले जानते हैं कि माता-पिता ऐसा क्यों करते हैं? वहां हुए शोध में बताया कि लड़कियों की तुलना में लड़के अकादमिक-व्यवहारिक तौर पर कम तैयारी के साथ किंडरगार्टन (केजी) की शुरुआत करते हैं।
ये उनके दीर्घकालीन प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है। क्या आपको वो खबरें याद आ रही हैं जिनमें लिखा होता है, ‘लड़कियों ने लड़कों को मात दी?’ जी हां, आप सही सोच रहे हैं। इसलिए इन विकसित देशों में बेटे व बेटियों के बीच इस अंतर को पाटने के लिए माता-पिता ने बेटों की ‘रेडशर्टिंग’ शुरू की। इसका मतलब है कि बेटे, बेटियों की तुलना में एक साल बाद स्कूल शुरू करते हैं। अब मैं आपको ये कहते सुन सकता हूं कि ‘ओके, एक साल देरी से शुरू करना समझ आता है, पर ये ‘रेडशर्टिंग’ है क्या?
धैर्य रखिए, ‘रेडशर्टिंग’ शब्द स्पोर्ट्स इंडस्ट्री में अधिक लोकप्रिय है। कॉलेज खेलों में ‘रेडशर्टिंग’ का अर्थ है कि एथलीट छात्र आधिकारिक खेलों में अपनी भागीदारी एक सीजन टालता है, ताकि उसे अपने कौशल में विकास व अकादमिक स्थिति में सुधार के लिए अतिरिक्त समय मिल सके, फिर भी पूरे 4 वर्ष तक खेलने की पात्रता बरकरार रहे।
मैल्कम ग्लेडविल ने 2008 की पुस्तक ‘आउटलायर्स’ में इस शब्द को लोकप्रिय किया, जिसमें लिखा गया कि पेशेवर एथलीट अक्सर कॉलेज में अपनी कक्षा के लिहाज से उम्र में बड़े होते थे। फिर 2022 में रिचर्ड वी रीव्स ने पुस्तक ‘ऑफ बॉय एंड मैन: व्हाय द मॅाडर्न मेल इज स्ट्रगलिंग’ में इस विषय का जिक्र किया।

इसने युवा पैरेन्ट्स के बीच लोकप्रियता पाई, क्योंकि शिक्षा में भी बदलाव आ रहे थे। माता-पिता ने पहले प्रतिस्पर्धी होना शुरू किया कि बच्चे ने कितने अंक पाए, बजाय इसके कि कितना ज्ञान सीखा। दूसरा, स्कूलों ने बच्चों को परीक्षा के लिए तैयार करने पर अधिक समय देना शुरू किया और खेल के जरिए सीखने व अन्य बातों पर कम समय देने लगे। आखिरकार, वे परिपक्व दिमाग चाहते थे।
सभी जानते हैं कि लड़के थोड़ा देर से मैच्योर होते हैं। लड़कों की तुलना में लड़कियां करीब 18 महीने पहले यौवन में कदम रखती हैं, जिससे उनमें समय प्रबंधन-आत्मनियंत्रण जैसे कार्यकारी कौशल लड़कों से पहले आ जाते हैं। केजी में देखा गया ये कथित अंतर हाई स्कूल तक जारी रहता है, इसीलिए दुनिभाभर में लड़कों की कॉलेज जाने की दर कम है।
इसी से अमेरिका जैसे देशों में ‘रेडशर्टिंग’ का आइडिया आया। अमेरिका में 40 हजार विद्यार्थियों पर हुए शोध में सामने आया कि वे जितने युवा थे, उनमें ध्यान संबंधी विकार उतना ही अधिक था। ब्रिटेन में 10 लाख बच्चों पर किए अध्ययन में भी यही पैटर्न दिखा, तब उन्होंने कहा कि जब बच्चा औपचारिक शिक्षा में प्रवेश कर रहा हो तो ‘आयु मायने रखती है।’
उन्हें ये भी महसूस हुआ कि स्कूल में प्रवेश में देरी का ये मतलब नहीं कि लड़का समय बर्बाद करेगा। यदि आप बेटे को ‘रेडशर्टिंग’ कराने की योजना बना रहे हैं तो एक चेतावनी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि ‘रेडशर्टिंग’ का अतिरिक्त वर्ष कम समृद्ध वातावरण में बिताया तो उसके संभावित लाभ नहीं मिल सकते। मतलब बच्चे को समाज के विभिन्न पहलुओं से रूबरू कराने की जरूरत है, जिससे उनकी सोचने-समझने की क्षमता मजबूत हो सके। यही बिल्कुल वैसा है, जैसा न्यूजीलैंड का मेरा मित्र कर रहा है।
फंडा यह है कि यदि आपको लगता है कि आपका बेटा औपचारिक शिक्षा में अंक लाने की रेस में शामिल होने को तैयार नहीं है, तो क्या आप उसे ‘रेडशर्टिंग’ करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार होंगे? इस विचार पर आपका क्या कहना है, मेरे साथ साझा करें।
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एन. रघुरामन का कॉलम: क्या स्कूल भेजने से पहले हमें बेटों को ‘रेडशर्टिंग’ करने की जरूरत है?