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- N. Raghuraman’s Column Do Comparisons Kill Your Happiness Or Increase Your Pride?
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
जब मैं बिजली गुल होने के बाद अंधेरे आसमान को ताक रहा था और तारे गिन रहा था तो पिता ने रूखे स्वर में मुझसे कहा, “देखो, वह मोमबत्ती की रोशनी में भी कितनी लगन से पढ़ता है।’ उस रात नागपुर के सीताबर्डी के पूरे इलाके में बिजली गुल हो गई थी।
मेरे घर से तीन घर दूर एक लड़का मोमबत्ती के उजाले में होमवर्क कर रहा था, जिसे देख पिता ने मुझसे वो शब्द कहे थे। लेकिन उन्हें एहसास नहीं हुआ कि उनके शब्दों ने मुझे 1970 के दशक की शुरुआत की उस कड़ाके की ठंड वाली रात से भी ज्यादा चोट पहुंचाई थी।
मैंने बस पलटकर उनसे कहा, “मैं तो समझता था हम लोग दूसरों से अपनी तुलना नहीं करते हैं।’ मेरे बोलने के बाद घर में अचानक सन्नाटा छा गया। ऐसा इसलिए, क्योंकि पिता ने ही मुझसे कहा था कि हमारे परिवार की स्थिति की तुलना दूसरे परिवारों से न करें।
मेरे पिता को मेरी बात का जवाब न देते देख मां- जो यह बातचीत सुन रही थीं- ने मुझे रसोई में बुलाया। नौवीं कक्षा का क्रोधित बालक (यानी मैं) पिता की ओर ऐसी नजर डालते हुए आगे बढ़ गया, जिसका मतलब था- “अब आप मुझे जवाब क्यों नहीं दे पा रहे हैं?’ और इसके बाद मैं मां की मदद करने रसोई में चला गया।
मां ने मुझसे कहा कि “तुम्हें अपने पिता से इस तरह से बात नहीं करनी चाहिए। हालांकि मैं तुम्हारी इस बात से सहमत हूं कि इस तरह तुलना करने ने तुमसे आकाश को निहारने की खुशी को छीन लिया होगा। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है।’ मैं रोने लगा और कहा, “उनके शब्द मेरी आकांक्षाओं और रचनात्मकता को सीमित करते हैं।’
उन्होंने मेरे बालों को सहलाया और मुझे गले लगाकर कहा, “तुम बड़े हो गए हो और मेरे साथ मनोविज्ञान की बहुत सारी किताबें पढ़ रहे हो। क्या तुम नहीं समझते कि तुलना करना पूरी दुनिया के मनुष्यों की विशेषता है? याद रखो बचपन में हमारा व्यवहार ही हमारे मन में विकसित होता है, तब भी जब तुम ऐसा नहीं चाहते। और यह हमारे परिवार की आमदनी के बावजूद सच है।
मैं जानती हूं कि तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है। तुम अमित के साथ चटर्जी अंकल के व्यवहार की तुलना कर रहे हो (चटर्जी अंकल हमारे पारिवारिक मित्र थे, लेकिन हमसे ज्यादा अमीर थे। उनके पास अपना घर और बजाज स्कूटर था। अमित मुझसे एक साल छोटा था और कॉन्वेंट में पढ़ता था)।
याद रखो एक रेलवे कर्मचारी के रूप में तुम्हारे पिता की अपनी सीमाएं हैं। उनकी तुलना उनके दोस्तों से धन के मामले में नहीं की जा सकती। लेकिन एक पिता के रूप में उनकी ख्वाहिश है कि उनका बेटा उनसे आगे निकले और जीवन में बहुत अच्छा करे। यही कारण है कि वे हर पल तुम पर नजर रखते हैं।
एक पिता कभी भी अपने बच्चे की तुलना उसे कमतर महसूस कराने के लिए नहीं करेंगे। वे वह तुलना बेटे को यह एहसास दिलाने के लिए करते हैं कि वह अपने पिता के सपनों को जी सकता है। एक दिन जब तुम कुछ बनोगे तो पिता के उन शब्दों को याद करोगे और उन पर गर्व महसूस करोगे। उन्होंने आज के लिए यह बात नहीं कही, उनका मन लगातार तुम्हारे भविष्य के लिए प्रार्थना करता है।
‘तब मुझे एहसास हुआ कि आपसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले किसी व्यक्ति से आपकी तुलना करना आपमें तभी ईर्ष्या और निराशा की भावना पैदा कर सकता है, जब आप उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो उनके पास हैं और आपके पास नहीं हैं (जैसे कि अमित के पास लग्जरी थीं और मेरे पास नहीं)।
लेकिन अगर आप तुलनाओं को प्रेरणा के स्रोत के रूप में उपयोग करते हैं, तो वे आपके लिए इस तरह से ऊर्जावान और प्रेरणादायक हो सकती हैं कि अगर वे इसे हासिल कर सकते हैं, तो मैं भी कर सकता हूं।
फंडा यह है कि हमारे बच्चों को तुलनाओं की बारीकियां सिखाना महत्वपूर्ण है। वे अपने बारे में कैसा महसूस करते हैं, यह न केवल जिससे उनकी तुलना की जा रही है, उस पर निर्भर करता है, बल्कि इस पर भी निर्भर करता है कि वे उस तुलना के बारे में क्या सोचते हैं।
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एन. रघुरामन का कॉलम: क्या तुलनाएं करने से आपकी खुशी खत्म होती है या गर्व बढ़ता है?

