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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
मैं हाल ही में कार की आगे की सीट पर बैठकर 14 साल के एक लड़के के साथ जा रहा था। दिल्ली में नेहरु प्लेस से लेकर आईआईटी कैंपस तक हम पूरे 25 मिनट साथ रहे, हालांकि दूरी सिर्फ 10 मिनट थी, लेकिन ट्राफिक के कारण देर लगी। ये लड़का कार में सन शील्ड के पास लगे शीशे में हर दो-तीन मिनट में देखता जैसे कोई महिला कार से उतरने से पहले उस शीशे में अपनी शक्ल देखती है।
उस दौरान उसने तीन बार हाथों पर मॉइश्चराइजर लगाया और अपने सफाई से मैनिक्योर किए नाखूनों की ओर देखा। उसने दुनिया की विभिन्न परफ्यूम्स के बारे में पूछताछ की। जब मैंने पूछा कि वह परफ्यूम्स के बारे में इतनी जानकारी क्यों ले रहा है, तो उसने कहा कि मैं अपनी सिग्नेचर परफ्यूम के रूप में एक दुर्लभ परफ्यूम चुनना चाहता हूं!
उससे बात करके मुझे अपने माता-पिता के साथ यात्रा कर रहे 13 से 15 साल के कुछ बच्चों का ख्याल आया, जो कि एयरपोर्ट की ड्यूटी-फ्री शॉप पर अपना ज्यादातर समय परफ्यूम वाले हिस्से में बिता रहे थे, ना कि किताबों वाले सेक्शन में।
वह लड़का इंटेलिजेंट था और बहुत आत्मविश्वास के साथ मुझसे बातचीत की, लेकिन अपने शरीर को लेकर उसका आत्मविश्वास बिल्कुल उलट था। मैंने ऐसा इसलिए सोचा क्योंकि उसकी बॉडी लैंग्वेज के अलावा, मुझसे बातचीत में उसे आत्मविश्वास आने के बाद, उसकी बाद की अधिकांश बातचीत शरीर की छवि और आत्मसम्मान के इर्द-गिर्द घूमती रही।
अचानक, क्या आप गौर कर रहे हैं कि किशोरवय उम्र के बच्चे बाथरूम में ज्यादा समय बिताने लगे हैं? बचपन की तुलना में खुद को आईने में ज्यादा बार देखने लगे हैं? हां, एक पूरी पीढ़ी है, जो अपनी लंबाई बढ़ाने के लिए पुल-अप करने की कोशिश कर रही है और अक्सर यह सुनिश्चित करने के लिए शीशा देखती है कि उनके दांत सही हैं या नहीं, स्किन क्लियर है कि नहीं और जैसा टीवी पर दिखाते हैं, वैसा बॉडी फैट तो नहीं है।
ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि बाहर एक दुनिया आकार ले रही है, जिसे ‘लुकमैक्सिंग’ कहा जा रहा है- मतलब अपने शारीरिक आकर्षण को अधिकतम करना। लुकमैक्सर्स (बेहतर-आकर्षक लुक एडवाइजर्स) की ओर से उनकी स्किनकेयर, हेयर स्टाइलिंग, डाइट या फिटनेस रिजीम के बारे में बहुत सारे संदेश दिए जा रहे हैं और सामान्य रूप से सोशल मीडिया ऐसी जगह है, जहां अगर आप विशेष नहीं दिख रहे हैं, तो आपकी कोई वैल्यू नहीं है और बाहर जाने के लिए किसी का साथ नहीं मिलेगा। ‘लुक्समैक्सिंग’ का मूल विचार गर्लफ्रेंड पाने में मदद करने के लिए था। ये विचार लगभग एक दशक से है। हालांकि, हाल के वर्षों में ये विकसित हुआ है और तेजी से डिजिटल दुनिया में फैल गया है।
डव की नई वैश्विक रिपोर्ट, द रियल स्टेट ऑफ ब्यूटी ने पाया कि 10-17 आयु वर्ग के 59% लड़कों पर शारीरिक रूप से आकर्षक दिखने का दबाव था और 60% से अधिक ने सोशल इवेंट मिस कर दिया क्योंकि वे अपने चेहरे-मोहरे को लेकर अलग महसूस करते थे।
लड़कियों के साथ भी ऐसी ही कहानी थी, रिपोर्ट में पाया गया कि 63% लड़कियां अपने लुक्स को लेकर स्कूल में आत्मविश्वास महसूस नहीं करती। रिपोर्ट से जुड़े और इंग्लैंड के वेस्ट विश्वविद्यालय में सेंटर ऑफ अपीयरेंस रिसर्च के साथ काम करने वाले एक वरिष्ठ शोध साथी, जिन्होंने डव रिपोर्ट पर काम किया था, उनका कहना है कि “कम उम्र से एक खास तरीके से दिखने का दबाव दीर्घकालिक चिंता और अवास्तविक सौंदर्य अपेक्षाओं को जन्म दे सकता है।
जब किशोर बच्चों का ध्यान शारीरिक आत्मविश्वास बनाने की ओर होने लगता है, तो हमें उन्हें खेल, पढ़ाई, प्रतियोगिताओं के साथ समाज में बौद्धिक लोगों के साथ मिलने में उन्हें व्यस्त कर देना चाहिए और उन्हें समाज में पेशेवर रूप से सफल लोगों के साथ मोहब्बत करना सिखाना चाहिए। इससे अंततः अपने चेहरे-मोहरे पर ज्यादा ध्यान देने में कमी आएगी।
फंडा यह है कि जब किशोर बच्चों में शारीरिक आत्मविश्वास कम हो, तो उन्हें ज्ञान अर्जित करने और नए प्रोफेशन में व्यस्त कर दें।
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एन. रघुरामन का कॉलम: क्या किशोर बच्चों में बॉडी कॉन्फिडेंस कम नजर आ रहा है?