एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
क ल्पना करें, अगर स्कूल कहे कि उसने अपने किंडरगार्टन की कक्षाओं में ‘चिड़िया उड़’ (वही भारतीय खेल, जिसे घर के अंदर हम सब खेलते थे) को अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बना लिया है, क्योंकि यह खेल मानसिक फुर्ती और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करता है, इसके अलावा ज्ञान भी देता है कि कौन-सी चीज उड़ती है और कौन-सी नहीं, साथ ही यह उनमें लीडरशिप के गुण बेहतर करे, तो आप क्या सोचेंगे?
कैलिफोर्निया में शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिकांश शिक्षक कक्षा के समय को “उपदेशात्मक निर्देश’ में बिता रहे हैं, मतलब स्वतंत्र सोच व खेल को प्रोत्साहित करने के बजाय छात्रों को जानकारी व निर्देश देना। उनके पास भले ‘चिड़िया उड़’ न हो, पर इसकी बराबरी का खेल होगा।
उन्हें लगता है, कक्षा में सबसे आगे खड़े शिक्षक से अक्षर-संख्याएं सीखने के बजाय, छोटे बच्चों को कक्षा के चारों ओर दौड़ना चाहिए, खेल खेलना चाहिए और कल्पनाशील तरीकों से वही नंबर्स, लैटर्स सीखने के लिए सामग्री खोजनी चाहिए। जैसे पांच साल के बच्चे के दिमाग के लिए सामान्य जोड़ से गणित का सबक देखें।
शिक्षक बच्चों को आठ रंगीन भालू वाले खिलौनों के साथ बगीचे में ले जाता है और उन्हें बताता है कि ये भालू टहलने जा रहे हैं और अगली इमारत से दो और भालू साथ शामिल हो जाते हैं। बाद में शिक्षक पूछते हैं, टहलने के लिए कितने भालू गए? यकीनन ये वर्कशीट पर लिखी संख्या से अलग होगी।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में एजुकेशन के प्रोफेसर डेबोरा स्टिपेक का मानना है कि अमेरिका वास्तव में छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक तैयार नहीं कर रहा। यही कारण है कि कैलिफोर्निया ने साल 2020 की पब्लिक एजुकेशन में ऐतिहासिक विस्तार करते हुए ‘टीके’ नाम से नई ग्रेड जोड़ी है, जिसका अर्थ है ‘ट्रांजिशनल किंडरगार्टन’, जहां शिक्षकों को ये समझने का प्रशिक्षण देते हैं कि चार साल के बच्चे का दिमाग कैसे सीखता है और वो सब सिखाते हैं, जो उन्हें खेल में बच्चों को सिखाने की जरूरत होती है।
अगले साल से, कैलिफोर्निया सुनिश्चित करेगा कि ‘टीके’ कक्षाओं में सभी प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को बचपन की शिक्षा पर निर्धारित कक्षाओं के साथ ठीक से ट्रेन्ड किया जाए। ‘टीके’ में अकादमिक रूप से ध्यान देने के लिए शिक्षक कोई एक थीम चुन सकता है, जैसे पेड़, जहां छात्र पिक्चर बुक्स (साक्षरता) से विभिन्न पेड़ों के नाम सीख सकते हैं, उन्हें प्रकृति (विज्ञान) में देख सकते हैं, विभिन्न पत्तियों (गणित, विज्ञान) की गिनती व तुलना कर सकते हैं और फिर उनके चित्र (कला) बना सकते हैं।
ताज्जुब नहीं कि अब अधिकांश माता-पिता व शिक्षक चाहते हैं कि स्कूल बच्चों के लिए उल्लास से भरी जगहें हों और उन्हें उम्मीद है कि खेल पर आधारित सीखने की प्रक्रिया वाला नया सिस्टम तीसरी कक्षा तक अनिवार्य हो।
इस अवसर को देखते हुए कैलिफोर्निया की सैन जोस स्टेट यूनिवर्सिटी, प्री-स्कूल से थर्ड ग्रेड तक के लिए एक क्रेडेंशियल लॉन्च करने वाली पहली संस्था बन गई है और सितंबर से शुरू हुई कक्षाओं में 20 विद्यार्थी हैं, जो भविष्य के ‘टीके’ टीचर्स होंगे। वहां “भावनात्मक विकास” जैसे विषय हैं, जो इस पाठ्यक्रम का प्रमुख फोकस है और अधिकांश प्रीस्कूल प्रोग्राम का एक प्रमुख फोकस है।
जब कुछ ऐसा होता है, जहां उन्हें बच्चों की प्रतिक्रिया नहीं पता होती है, ऐसी स्थितियों में उन्हें बच्चों को संभालना सिखाया जाता है। उदाहरण के लिए जब कोई बच्चा किसी के हाथ से खिलौना छुड़ा लेता है, तो यह उन्हें एकदम से कोई झटका जैसा हो सकता है।
मैं उनकी बात से पूरी तरह सहमत हूं क्योंकि आज का खिलौने कल कॉर्पोरेट स्तर पर पदोन्नति हो सकता है। कल को जब दफ्तर में क्यूबिकल साझा करने की नौबत आए, तो आज नाज़ों से पले इन इकलौते बच्चों का व्यवहार एक मुद्दा हो सकता है। कॉर्पोरेट में मुझे आधे से ज्यादा मुद्दे इंटेलिजेंस के बजाय इमोशनल ज्यादा नजर आते हैं।
फंडा यह है कि अगर हमारे स्कूल बच्चों की भावनात्मक बुद्धिमत्ता को संभालने में पर्याप्त सक्षम हैं, तो हमें ‘केजी’ को ‘टीके’ में बदलने की जरूरत नहीं है, लेकिन अगर एेसा करने में कुछ भी अच्छा है, तो फिर बेहतर भविष्य के लिए इस आइडिया को यहां लागू करने में कुछ भी गलत नहीं है।
एन. रघुरामन का कॉलम: क्या ‘केजी’ को ‘टीके’ में रिपैकेजिंग करना चाहिए?