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- N. Raghuraman’s Column Are You Talking To Teenagers About Money At The Right Time?
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
वार्षिक परिणाम आ चुके हैं। विश्वविद्यालय पांच वर्षीय एकीकृत पाठ्यक्रमों या तीन वर्षीय ग्रेड पाठ्यक्रमों के लिए स्वीकृति-पत्र भेज रहे हैं। अचानक मध्यम वर्ग के परिवार भविष्य की शिक्षा के खर्चों को पूरा करने के लिए तंग वित्तीय रस्सी पर चलते दिखाई देने लगे हैं। मुझे इसका एहसास तब हुआ, जब एक पिता-पुत्र ने मदद के लिए मुझसे संपर्क किया।
पिता इस बात को लेकर स्पष्ट थे कि उन्होंने कॉलेजों में पढ़ाई की वर्तमान लागत का केवल 30% ही आकलन लगाया था और बीते वर्षों में उसी के अनुसार बचत की थी। “अगर मैं दूसरे बच्चे के लिए बचाई राशि को भी बड़े बच्चे के लिए खर्च कर देता हूं तो मेरे लिए स्नातक की साधारण पढ़ाई और विवाह के खर्चों को भी पूरा करना मुश्किल हो जाएगा,’ पिता ने दु:ख जताते हुए मुझसे कहा।
उन्होंने आगे कहा, “इसलिए मैं उससे अनुरोध कर रहा हूं कि वह अपनी शिक्षा के खर्चों में समझदारी से काम ले।’ और तब, गुरुवार रात हम कॉलेज में प्रवेश लेने जा रहे उस युवा लड़के के लिए वित्तीय योजना बनाने बैठे। दोनों से बात करते हुए मुझे एहसास हुआ कि उन परिवारों के विपरीत- जो फीस के कुछ या सभी पैसों का भुगतान करते हैं- यह परिवार चाहता था कि पिता की बचत के शुरुआती पैसों के अलावा छात्र अपनी शिक्षा के लिए खुद ही जिम्मेदार हो।
मैंने लड़के से एक्सेल चार्ट तैयार करवाया। चार्ट देखते हुए स्वयं पैरेंट्स होने के नाते हम समझ गए कि यह कितना महंगा है, लेकिन एक टीनएजर के लिए वो आंकड़ा ज्यादा मायने नहीं रखता था। मेरा काम एक बाहरी व्यक्ति के रूप में उसे वह समझाना था। मैंने उसके पिता के साथ पूरे साल के खर्च का एक और चार्ट बनवाया। दोनों चार्ट की तुलना करके पाया कि वह अपनी शिक्षा के लिए परिवार की आय में से कितना प्रतिशत पैसा लेने जा रहा था।
इसके अलावा, मैंने बताया कि उस किशोर के चार्ट में ट्यूशन फीस, आवास लागत और भोजन-व्यय जैसे खर्चों का कोई विस्तृत ब्योरा नहीं था। ये तीन ऐसे प्रमुख क्षेत्र हैं, जिनमें मासिक आमदनी का 80% खर्च होता है। वह जिस जगह पर रहेगा, उनका किराया भी अलग-अलग होता है। अगर वह विश्वविद्यालय छात्रावास में रहने का फैसला करता है तो अपने घर में जिन सुविधाओं के साथ वह बड़ा हुआ है, उससे उसे समझौता करना होगा।
पिछले 10 वर्षों में जो भी विश्वविद्यालय खुले हैं, वे मुख्य शहर से दूर हैं, और उनमें पढ़ाई करने की एक परिवहन-लागत है, जो कुल खर्च का लगभग 20% है। उस युवा लड़के ने अपने चार्ट में इसे भी शामिल नहीं किया था।
तमाम खर्चे तय होने के बाद हमने भुगतान के शेड्यूल पर चर्चा की। उसके पिता ने बताया कि वे इसमें कितना योगदान दे सकते हैं। इस बेसलाइन को लिखने के बाद हमने खर्चों को प्रबंधित करने के अन्य तरीकों पर चर्चा की। इनमें बैंक से उधार लेने से लेकर रिश्तेदारों के योगदान तक कई अन्य उपाय शामिल थे। मैं देख सकता था कि उस टीनएजर का चेहरा कठोर और अधिक गंभीर होता जा रहा था।
यही वह समय था, जब मैंने उससे पूछा कि क्या 18 की उम्र के बाद तुम्हारे लिए दिन में पांच घंटे किसी जगह काम करना संभव होगा? वह तुरंत तैयार हो गया। फिर हमने एक और चार्ट बनाया, जिसमें हमने उसके स्किल-सेट को लिखा, जिसकी मदद से बाजार से पैसे पाए जा सकते थे।
उसके पिता ने आखिरकार उससे पूछा कि नौकरी मिलने तक दो सालों में वह अपने किन खर्चों में कटौती कर सकता है। फिर एक कॉस्ट-कटिंग चार्ट बनाया गया और तीन घंटे की बातचीत के अंत में जाकर किशोर को इस बात का ठीक-ठाक अंदाजा हो गया था कि फाइनेंस क्या होता है और एक-एक रुपया कमाना कितना मुश्किल है। तभी पिता ने कहा कि अगर वह समय के साथ भुगतान करने का वादा करता है तो वे पूरे कोर्स के लिए उसकी वित्तीय-सहायता करेंगे।
फंडा यह है कि भले ही आप अपने बच्चों की उनके विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों के लिए पूरी तरह से सहायता कर रहे हों, लेकिन उनकी पढ़ाई पर होने वाले खर्चों के ब्योरों में उन्हें भी शामिल करना जरूरी है। यह निश्चित रूप से उन्हें अपनी पढ़ाई को और गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित करेगा।
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एन. रघुरामन का कॉलम: क्या आप टीनएजर्स से सही समय पर पैसों के बारे में बात कर रहे हैं?