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- N. Raghuraman’s Column: Workplace Rules Won’t Deter Gen G From Their Priorities
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
मिस्टर-ए शाम 5 बजे के बाद ईमेल का जवाब देने के लिए अतिरिक्त प्रयास नहीं करते। मिस-बी काम वाली रात में देर तक रुकने की चिंता नहीं करतीं। मिस-सी अपने बॉस को वॉइस मैसेज भेजती हैं कि जब वह वीकनाइट पिकलबॉल प्रैक्टिस पर जाएंगी तो रीचेबल नहीं रहेंगी। इन्हें लाड़-प्यार में पली पीढ़ी या अमीर पिता की संतान कहकर खारिज न करें।
ये सभी अपने करियर की शुरुआत में हैं और उन्हें नौकरी की जरूरत भी है। लेकिन धीमे होते रोजगार के बाजार के बावजूद वे वर्क-लाइफ बैलेंस के लिए प्रतिबद्ध हैं। अब यह कहते हुए खारिज ना करें कि ‘ओह, विकसित दुनिया में कहीं ऐसा हो रहा होगा, भारत में तो नहीं।
यहां मैनेजर हमें गन्ने जैसा मानते हैं, जिसे कई बार मशीन में डाला जाता है। जैसे ऑफिस में मैनेजर चाय-समोसा ऑफर करते हैं, वैसे ही नींबू-अदरक डालकर बचा-खुचा निकालने के लिए फिर कुचला जाता है। खून की आखिरी बूंद निकालने के बाद घर जाने देते हैं।’ यदि आप बड़बड़ा रहे हैं कि ‘इतने निचोड़े जाते हैं कि घर पर कुछ करने की ताकत ही नहीं बचती तो किस वर्क-लाइफ बैलेंस की बात करें?’- तो आप जेन-जी नहीं हैं।
जेन-जी सदियों पुरानी वह ऑफिस कल्चर बदल रहे हैं, जहां दफ्तरी काम के लिए ‘ऑलवेज ऑन’ रहा जाता था। वे सिर्फ ‘राइट टु डिस्कनेक्ट’ की बात नहीं कर रहे, बल्कि सरकार पर नए विधेयक के लिए दबाव भी डाल रहे हैं, जिसमें निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को ‘कार्य-समय के बाद के कॉल्स और ईमेल’ से बचाने का प्रावधान हो। और यह हमारी नाक के नीचे हो रहा है। हैरान हैं कि कहां पर? तो आगे पढ़ें।
जब हम बड़े हो रहे थे तो अपने माता-पिता को काम के प्रति खुद को समर्पित करते देखा। क्योंकि वो सोचते थे कि ‘घर की नैया पार करने’ के लिए यह उनकी प्रतिबद्धता है। हम भी उनके नक्शेकदम पर चले और जीवन में सुविधा लाने के लिए ग्राइंडर और वॉशिंग मशीन जैसी मशीनों की मदद ली।
फिर भी हम खप गए, शायद पिछली पीढ़ी से थोड़ा धीरे। नौकरी ने कइयों की जान ले ली। हम माता-पिता की तुलना में जेन-जी काम के साथ अलग तरीके का रिश्ता चाहते हैं। काम की वजह से उनके स्कूल फंक्शन्स में हमारी गैर मौजूदगी ने उनके मन पर गहरा घाव छोड़ा है।
मैं उन्हें बार-बार कहते सुनता हूं, ‘काम कभी आपको आजाद नहीं करने वाला इसलिए खुद को काम से आजाद करना पड़ेगा।’ जैसे हम कमजोर होते जॉब मार्केट में खुद को अपरिहार्य साबित करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करते रहे, युवा पेशेवरों को यह डर नहीं सताता कि वर्क-लाइफ बैलेंस पर जोर देने से उन्हें नौकरी गंवानी पड़ेगी।
हम बुजुर्गों को जब भी नौकरी जाने के डर ने घेरा, हमने खुद को और ज्यादा खपा दिया। यही माता-पिता ने हमें सिखाया था। लेकिन जेन-जी अपने मैनेजर से अपेक्षा करते हैं कि वे कार्यस्थल पर बिताए समय से ज्यादा परिणाम का मूल्यांकन करे।
केरल ‘राइट टु डिस्कनेक्ट बिल 2025’ पेश करने जा रहा है। इसका उद्देश्य कानूनी तौर पर निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को कार्य-समय के बाद की मांगों से बचाना है। यह वर्क-लाइफ बैलेंस को फिर से परिभाषित कर सकता है। भारतीय श्रम कानून औद्योगिक कार्यबल के लिए बने थे। अब डिजिटल कार्यबल में ज्यादा लोग होने से उन्हें महसूस हुआ कि पुराना कानून आधुनिक कार्यस्थल की हकीकतों से पिछड़ गया है।
विधेयक में अपने पद के दुरुपयोग समेत छंटनी और कॉस्ट-कट्स की निगरानी, कार्य घंटों के उल्लंघन की जांच, कार्य-समय के बाद दबाव पर अंकुश और कार्यस्थल निगरानी की समीक्षा के प्रस्ताव शामिल हैं। भविष्य में आपका युवा कर्मचारी यदि शाम 5 बजे या कार्य-समय के बाद लैपटॉप के पास नहीं दिखे तो उन्हें तलाश कर कोई स्पष्टीकरण ना मांगें। मैं भरोसा दिला सकता हूं कि वे देंगे भी नहीं।
फंडा यह है कि आने वाले दिनों में जेन-जी नियोक्ताओं को व्यस्त रहने का महिमामंडन नहीं करने देंगे, बल्कि चाहेंगे कि वे उनके काम की सराहना करें। यही मानसिकता उनके लिए वर्क-लाइफ बैलेंस बनाने के दरवाजे खोलेगी।
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एन. रघुरामन का कॉलम: कार्यस्थल के नियम जेन-जी को प्राथमिकताओं से नहीं डिगा पाएंगे

