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- N. Raghuraman’s Column: Even Educated People Are Returning To Studies
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
2027 में नासिक में होने वाले कुम्भ से पहले महाराष्ट्र सरकार के कौशल शिक्षा विभाग ने एक महीने का कोर्स शुरू किया है। इसका मकसद ऐसे ‘पुरोहित’ तैयार करना है, जो इस आयोजन में धार्मिक सेवाएं दे सकें। मैं ऐसे कम से कम तीन आध्यात्मिक प्रवृत्ति के लोगों को जानता हूं, जिन्हें इस सेवा से पैसा कमाने की जरूरत नहीं- लेकिन उन्होंने 16 दिसंबर 2025 से शुरू इस कोर्स में दाखिला लिया है।
यहां उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान के साथ बड़े पैमाने के धार्मिक आयोजनों का व्यावहारिक अनुभव मिलेगा। उनका मानना है कि इससे वे बिना लोन लिए अपनी पसंद की कार खरीदने लायक पैसा तो कमा सकेंगे।
यह मुझे एक विश्वविद्यालय के कुछ सीनियर प्रोफेसरों की याद दिलाता है, जो हर शाम एक साइबर क्लास में जा रहे हैं। वे सीख रहे हैं कि जिस रिसर्च सब्जेक्ट को वे पढ़ाते हैं, उसमें ऑनलाइन सुविधाएं कैसे जोड़ी जाएं। वे अपने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन में बार कोड डालकर विद्यार्थियों से सवाल पूछने की कला में महारत हासिल करना चाहते हैं।
वे चाहते हैं कि छात्र क्लास में स्मार्ट स्क्रीन पर दिख रहे बार कोड को स्कैन कर सवाल को समझें और उसका जवाब दें। ये प्रोफेसर तकनीक की मदद से छात्रों को मार्केट सर्वे सिखा रहे हैं और उन्हें मोबाइल फोन के जरिए क्लास से जोड़े रख रहे हैं।
डॉक्टरेट कर चुके मेरे एक मित्र अपने विषय में सर्वश्रेष्ठ हैं। उनके रिटायरमेंट में अभी पांच साल शेष हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि यदि वे टेक-सैवी नहीं हुए तो युवा प्रोफेसर्स उनकी जगह ले लेंगे। इसी वजह से उन्होंने तीन महीने का एक क्रैश कोर्स जॉइन किया है, जिसमें छात्रों को क्लास में जोड़े रखने वाले टूल्स सिखाए जाते हैं।
निस्संदेह, कठिन जॉब मार्केट और एआई का खतरा मिडलाइफ के करीब पहुंच चुके कई लोगों को या तो करियर में बड़े बदलाव के लिए मजबूर कर रहा है या फिर दोबारा क्लासरूम की ओर लौटा रहा है। मैं एक युवती को जानता हूं, जिसने पारिवारिक मजबूरियों के चलते स्कूल के बाद छत्तीसगढ़ में एक मल्टीनेशनल फास्ट-फूड आउटलेट में दो साल काम किया।
अब उसने ग्रेजुएशन के लिए भिलाई की रूंगटा स्किल यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया है। क्योंकि उसे लगा कि स्टोर ऑपरेशन अब रोबोट्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के हवाले हो रहे हैं और उसकी नौकरी खतरे में है।
इसी विश्वविद्यालय में मेरी मुलाकात तीन साल के बच्चे की मां से भी हुई, जो एमबीए कर रही हैं। उन्हें लगता है कि भविष्य में महज पति की एक तनख्वाह में उनका परिवार मौजूदा लिविंग स्टैंडर्ड से नहीं रह पाएगा। उनकी सोच साफ थी।
उन्होंने मुझसे कहा कि ‘शादी से पहले मैं अपनी ग्रेजुएशन डिग्री और मेहनत के दम पर लीडरशिप रोल्स तक पहुंची, लेकिन पिछले करियर में मैं टॉप एग्जीक्यूटिव पद तक नहीं जा पाई। शादी और मातृत्व ने मुझे उस दौड़ से बाहर कर दिया। अब मैं मास्टर्स डिग्री के साथ वापसी करना चाहती हूं, क्योंकि उसके बिना टॉप पोजिशन पाना सच में कठिन है- चाहे मैं कितनी भी सक्षम क्यों न होऊं।’
कई मिडिल एज लोग महसूस कर रहे हैं कि जीवन के इस पड़ाव पर शारीरिक ताकत के बजाय दिमाग का इस्तेमाल ज्यादा उपयुक्त है। बढ़ती महंगाई व्हाइट कॉलर जगत में लोगों को ज्यादा कमाई और बेहतर जॉब सिक्योरिटी तलाशने के लिए प्रेरित कर रही है, जहां कई युवा तो कॉलेज डिग्री की उपयोगिता पर ही सवाल उठा रहे हैं।
भारत के सबसे पढ़े-लिखे वर्ग में भी मैं नया ट्रेंड देख रहा हूं। ये लोग अमेरिका की हार्वर्ड जैसी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज से 8 हफ्तों के शॉर्ट-टर्म कोर्स कर रहे हैं। वे इसे पिछले दो सालों का सबसे बेहतर निवेश बता रहे हैं।
फंडा यह है कि जब पढ़े-लिखे लोग दोबारा स्कूल लौटकर अपनी इंटेलिजेंस पर नई परत चढ़ा रहे हैं तो हमें खुद को अपग्रेड करने से कौन रोक रहा है? खासकर तब, जब एआई हमारी मौजूदा प्रोफाइल के लिए खतरा बन रहा है।
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एन. रघुरामन का कॉलम: एजुकेटेड लोग भी दोबारा पढ़ाई की ओर लौट रहे हैं

