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- N. Raghuraman’s Column Educators Should Also Know About ‘Panshet, Parsahi And Pa Shape’
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
मॉनसून शुरू हुए एक माह बीत चुका है। मेरे जैसे अधिकतर मुम्बईकर और पड़ोसी पुणेकर सह्याद्री पर्वतमाला की गोद में वीकेंड के आनंद लेने के लिए उत्साहित हैं। यहां का एक छोटा सा कस्बा पानशेत वीकेंड के लिए आदर्श जगह है। यह मुम्बई से चार घंटे की और पुणे से एक घंटे की दूरी पर है।
2023 में इसी गांव में पुणे जिला परिषद ने अपना पहला क्लस्टर स्कूल शुरू किया था। आप सोच रहे हैं कि क्लस्टर स्कूल क्या चीज है? इस अवधारणा ने तब गति पकड़ी जब शिक्षा विभाग ने फैसला किया कि कम विद्यार्थी संख्या वाले स्कूल हानिकारक हो रहे हैं, क्योंकि बच्चों को संसाधनों की कमी के चलते सहशिक्षण और अन्य पाठ्येत्तर गतिविधियों का अवसर नहीं मिलता है।
कुछ स्कूलों में एक या दो संसाधन हैं, जबकि अन्य के पास कोई नहीं है। जब से विभाग ने आस-पास के छोटे स्कूलों से विद्यार्थियों को मिलाना शुरू किया, अधिकारियों ने सुविधाएं बेहतर करने के लिए धन दिया और इस क्लस्टर स्कूल के लिए अधिक शिक्षक आवंटित हो पाए। इस प्रकार यह स्थानीय प्रशासन और लाभार्थी, दोनों के लिए फायदेमंद बना।
यह अकेले झारखंड राज्य के करीब 8000 एकल शिक्षक स्कूलों के विपरीत है। यदि आप इस राज्य के परसाही नामक गांव में जाओ और पूछो कि शिक्षक कहां है तो वे एक सुर में चिल्लाएंगे कि ‘मास्टर जी केला लाने गए हैं बाजार।’ और फिर वे मिड-डे मील के लिए घरों से लाई गई थालियों और बर्तनों से खेलना शुरू कर देंगे, जबकि बाकी उद्देश्यहीन इधर-उधर घूमते रहेंगे।
परसाही से 10 किलोमीटर दूर दुंदू पंचायत के बिछलीदग में एक स्कूल है, राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय। यह घने जंगल के बीच है, जहां पहली से आठवीं कक्षा के कम से कम 144 बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा एक पैराटीचर पर है।
इन दो कम ज्ञात स्थानों से दूर तमिलनाडु ने स्कूलों में ‘पा-शेप’ में बैठने की नई व्यवस्था लागू की है। सोच रहे हैं कि यह शेप क्या है? चलिए, मैं समझाता हूं। यह ‘पा’ एक तमिल अक्षर है, जो अंग्रेजी के ‘U’ अक्षर या अर्धवृत्त के आकार से मिलता-जुलता है। जाहिर है कि इस व्यवस्था का उद्देश्य विद्यार्थी और शिक्षकों के बीच बेहतर संवाद और दृश्यता को बढ़ावा देना है।
इसका मुख्य लक्ष्य कक्षा में आपसी संवाद को बढ़ाना और यह सुनिश्चित करना है कि सभी विद्यार्थी शिक्षक और ब्लैकबोर्ड को स्पष्ट देख सकें। शिक्षक की निगरानी सुविधाजनक हो सके। तमिलनाडु स्कूल शिक्षा विभाग ने अपने सभी स्कूलों को इस व्यवस्था को अपनाने का निर्देश दिया है।
इस बैठक व्यवस्था का प्रयोजन ‘बैकबैंचर्स’ की कुंठा को समाप्त करना और सभी विद्यार्थियों के बीच समानता को बढ़ावा देना है। रोचक यह है कि इस कदम के पीछे प्रेरणा केरल के उन कुछ स्कूलों से मिली, जिन्होंने एक मलयालम फिल्म देख कर इस प्रकार की बैठक व्यवस्था को अपनाया।
तमिलनाडु के स्कूल शिक्षा निदेशक द्वारा कक्षाओं में अर्धवृत्ताकार बैठक व्यवस्था अनिवार्य करने का परिपत्र जारी करने के कुछ ही घंटों बाद इन निर्देशों की पालना रोक दी गई। क्योंकि शिक्षाविदों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और राजनेताओं ने इसकी तीखी आलोचना की।
खासतौर पर सोशल मीडिया पर। एक न्यूरोसर्जन ने एक्स पर पोस्ट किया कि ‘बगल में बैठे छात्रों को सप्ताह में पांच दिन, कई घंटों तक अपनी गर्दन मोड़ कर रखनी पड़ेगी। इससे 50 प्रतिशत विद्यार्थियों में गर्दन संबंधी गंभीर विकास हो सकते हैं। 15 प्रतिशत को अत्यधिक गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
उन्होंने विद्यार्थियों की आंखों पर जोर पड़ने की चेतावनी भी दी, खासतौर पर चश्मा पहनने वाले छात्रों में, क्योंकि उनको ऑप्टिक सेंटर के बजाय लैंसों के किनारे से देखना होगा। इससे उन्हें आंखों में परेशानी और सिरदर्द होगा। मैंने देखा है कि ज्यादातर स्कूलों में कक्षा कक्ष लंबे होते हैं और ऐसी अर्द्धवृत्ताकार बैठक व्यवस्था के लिए चौड़े कक्षों की आवश्यकता होती है।
फंडा यह है कि यदि हम एक शिक्षक हैं तो शिक्षा के क्षेत्र में दीर्घकालिक प्रभाव डालने के लिए जरूरी है कि हमारा इस पेशे के सभी पहलुओं पर 360 डिग्री दृष्टिकोण हो। ताकि भविष्य के विद्यार्थियों को ज्ञानवान और आत्मविश्वास से भरा बनाया जा सके।
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