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एन. रघुरामन का कॉलम: एकल परिवारों में मेंटल लोड के अधिकांश काम महिलाएं ही करती हैं Politics & News

एन. रघुरामन का कॉलम:  एकल परिवारों में मेंटल लोड के अधिकांश काम महिलाएं ही करती हैं Politics & News

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12 मिनट पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

महीने का दूसरा शनिवार होने के बावजूद उसके दफ्तर में अर्जेंट काम था, क्योंकि ये वित्त वर्ष खत्म होने का समय भी था। वह सुबह 5 बजे उठी, शानदार खाना बनाया, दोनों बच्चों के लिए लंच पैक किया, ताकि फुटबॉल क्लास के लिए जाते समय वे लंच साथ ले जा सकें और वह चली गई, जबकि पति उसके जाने के समय उठा।

वह उससे बात नहीं कर सकी क्योंकि उसे देर हो रही थी। टैक्सी पहले ही आ चुकी थी और इसलिए वो चली गई। टैक्सी में बैठे-बैठे वह अपने पति को वाट्सएप पर मैसेज करती है कि आपकी कार की नंबर प्लेट अभी भी टूटी हुई है, पुलिस के फाइन से पहले इसे ठीक करवा लो।

वॉशिंग मशीन अगले दस मिनट में कपड़े धो देगी, मेड से कह दो कि कपड़े रस्सी पर डाल दे। लॉन्ड्री के लिए बाकी कपड़े पैक करके सीढ़ियों पर रखे हैं। बाहर जाते हुए इन्हें साथ में ले जाना मत भूलना। रोहन का हेयरकट कराना है। अपने हेयरड्रेसर के पास उसे मत ले जाना। उसे वो पसंद नहीं।

तीसरी लेन वाले हेयरड्रेसर के पास ले जाना और उसे अपने हिसाब से बाल कटवा लेने देना। इस पर कोई बवाल मत करना। बच्चों को फुटबॉल खेलने के लिए छोड़ते समय उनके लंच बॉक्स लेना मत भूलना। मैंने उनके लिए सरप्राइज रखा है। बाथरूम में कपड़े का हैंगर ठीक कर देना, कील निकल गई है। कुत्ते को टहलाने वाले को पैसे देने होंगे। तुम पिछले हफ्ते पैसे देना भूल गए थे।

मैसेज भेजने के बाद दस मिनट तक वह ऑफिस के फोन-कॉल पर रही और तभी उसके पति का दुखी इमोजी के साथ ‘ओके’ लिखा जवाब आया। उसने उसे एक रिमाइंडर भेजा, “आज ही सब कुछ निपटा लो, नहीं तो कल भारत और न्यूजीलैंड के बीच होने वाले क्रिकेट फाइनल देखते समय तुम्हें परेशानी होगी।”

उसका कोई जवाब नहीं आया, लेकिन वह जानती थी कि उसने मैसेज पढ़ लिया है, क्योंकि इस पर नीला निशान था। उसने मन ही मन में यह नोट कर लिया कि अगले हफ्ते वो उसे सीसीटीवी कैमरा ठीक करने और घर की रंगाई-पुताई करवाने के लिए कहेगी, जिसके बारे में वे बात कर रहे थे।

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ऐतिहासिक रूप से एकल परिवारों में महिलाओं ने मानसिक बोझ का सारा भार उठाया हुआ है, जिसे कॉग्निटिव हाउसहोल्ड लेबर भी कहा जाता है। यह पर्दे के पीछे का काम है, जो अक्सर दिखता नहीं हैं, लेकिन इन्हीं कामों से घर चलता है।

बात सिर्फ काम की नहीं है या इसकी भी नहीं कि कौन करेगा, बात इस काम के बारे में सोचने की है और हर समय इसको लेकर सतर्क रहने की है। ये काम कितना जरूरी है, इसे परिभाषित करना मुश्किल है और यह अदृश्य लेकिन अंतर्निहित काम का पहाड़ होता है।

वहीं परिवार की अपेक्षाओं और परंपराओं के चलते माना जाता है कि महिलाओं को ही घर के कामकाज संभालने चाहिए। बात सिर्फ काम करने की नहीं है, काम को भांपना, याद रखना, अहसास होना और आखिर में उसे करना या किसी को सौंपना होता है।

सिर्फ इतना भर नहीं है कि बच्चों और पति के लिए लंच पैक कर दिया, बाजार से सब्जियां-अनाज लाना, उसे पकाना होता है, यह भी देखना होता है कि लंच बॉक्स धुले हैं या नहीं, मेड ने सुखाए हैं या नहीं और यह भी देखना होता है कि हर खाना पोषण भरा हो और तीनों सदस्यों की अलग-अलग चॉइस के हिसाब से हो।

यह काम अक्सर अवैतनिक होता है और इसकी कोई सराहना भी नहीं मिलती। कई लोगों को लगेगा कि आजकल के दंपति घरेलू जिम्मेदारियों को आधा-आधा बांटने की कोशिश करते हैं, और इस तरह मानसिक बोझ समान रूप से बंट जाता है।

हालांकि रिसर्च कुछ और ही बयां करती है। पिछले वर्ष प्रकाशित एक अमेरिकी अध्ययन के अनुसार मानसिक बोझ वाले 10 कामों में से सात मांओं द्वारा किए जाते हैं। ऑस्ट्रेलिया में हुए अन्य अध्ययनों से पता चलता है कि परिवार में वृद्धों और विकलांगों की जरूरतों का ख्याल ज्यादातर महिलाएं ही रखती हैं।

फंडा यह है कि किसी भी काम को करना नहीं बल्कि उसे याद रखना महत्वपूर्ण है, जो आमतौर पर घर की महिलाएं ही करती हैं। इसलिए हमें उनकी मानसिक क्षमताओं का सम्मान करना चाहिए। कम से कम इस महिला दिवस पर तो उन्हें उनकी अद्वितीय क्षमता के लिए सम्मानित करें।

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