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एन. रघुरामन का कॉलम: एआई के जोखिम और संभावनाओं को समझना क्यों जरूरी है? Politics & News

एन. रघुरामन का कॉलम:  एआई के जोखिम और संभावनाओं को समझना क्यों जरूरी है? Politics & News

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4 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

यदि एआई कहे कि आपका आइडिया बहुत शानदार है, तो क्या भरोसा करोगे? पीजी कर रहे और एआई का बहुत ज्यादा उपयोग करने वाले छात्र दुर्भाग्य से इस पर भरोसा करते हैं। क्योंकि वे अपने प्रोजेक्ट्स पर अनुभवी प्रोफेसर्स के महत्वपूर्ण सुझाव नहीं लेना चाहते।

“एआई चाटुकारिता’ के छोटे किंतु गंभीर खतरों के प्रति शोधकर्ता चेतावनी दे रहे हैं। और वो सही हैं। हाल ही मैंने पढ़ा कि ओपन एआई ने माना है कि एलएलएम नाम से लोकप्रिय चैट जीपीटी के ताजा लार्ज लैंग्वेज मॉडल का लहजा चाटुकारिता भरा था। ये यूजर्स की चापलूसी करता है और सच की कीमत पर भी उनकी हां में हां मिलाता है।

ओपन एआई ने ये अपडेट वापस लेते हुए कहा कि वो इसे हल करने के लिए टेस्ट कर रहा है। पर शोध में पाया गया कि अत्यधिक सहमत होने का व्यवहार सभी एआई असिस्टेंट की बड़ी समस्या है। ये पूर्वग्रह मजबूत कर सकते हैं, सीखना कम कर सकते हैं, यहां तक कि एआई यूजर्स के निर्णय लेने के गुण में भी दखलंदाजी कर सकते हैं।

मैंने इसके गंभीर प्रभावों को इसी मंगलवार को तब महसूस किया जब मैं ग्रेजुएशन कर रहे भोपाल के कुछ स्टूडेंट्स से मिला, जो गर्मी की छुट्टियों के बाद वापस कॉलेज आए थे। उनमें से कुछ ने मुझे अपना परिचय इस प्रकार दिया कि वह ऐसे छात्र हैं, जो हमेशा समय पर अपना शोध कार्य पूरा करते हैं।

मैंने उनसे अनौपचारिक बातचीत की, जिसमें अकादमिक चर्चा नहीं थी। इसमें मैंने देखा कि उनमें से कुछ छात्रों में उस विशिष्ट जोश की कमी थी, जिसे अधिकांश नियोक्ता तलाशते हैं। वो मुझे दिखा रहे थे कि एआई क्या जवाब दे रहा है और इस पर तर्क भी कर रहे थे। वे इस बात को महसूस ही नहीं कर पा रहे थे कि तकनीक कैसे उन्हें गलत तरीके से संतुष्ट कर रही है।

मौजूदा विश्वविद्यालय की शिक्षा पर उनकी स्कूली शिक्षा हावी हो रही थी। मेरा मतलब है कि वे जॉब मार्केट प्रतिस्पर्धा के लिए पूरी तरह परिपक्व नहीं हुए थे, जहां व्यक्ति को विपरीत तर्कों को भी स्वीकारने और उन पर विचार करने की जरूरत होती है। और यही कारण है कि उनकी शोध विषय पर होमवर्क पूरा करने की क्षमता और परीक्षा में मिले अंकों के बीच बड़ी विसंगति होती है।

तब मुझे समझ आया कि ये एक ऐसी पीढ़ी है, जो तुरंत जवाब चाहती है। चूंकि ये छात्र, सीखने को बेहद आसान बनाने का वादा करने वाले चैट जीपीटी जैसे एलएलएम पर बहुत निर्भर हैं, इसलिए वे मशीन के पहले जवाब को ही मान लेते हैं और इस पर शोध करने में विफल रहते हैं। यही चीज उन्हें सीखने से रोकती है।

अमेरिका के कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान व निर्णय विज्ञान के प्रोफेसर डेनियल ओपेनहिमर का कहना है कि उनकी अपनी लैब में किए अध्ययन में भी उन्होंने देखा है कि जो छात्र अपने कार्य को पूरा करने के लिए एआई का उपयोग करते हैं, वो होमवर्क करने में तो बेहतर होते हैं, पर परीक्षा में उनका प्रदर्शन बेहद खराब होता है।

हालांकि साथ ही वह एआई को पूरी तरह खारिज करने के बारे में भी सावधान करते हैं। वह छात्रों को सलाह देते हैं कि वे एलएलएम द्वारा तैयार प्रारूप की आलोचना करें और इसे साबित करने के लिए उससे सवाल पूछें।

रोजमर्रा के विषयों में एलएलएम का उपयोग करने वाले 4500 विद्यार्थियों पर हुए शोध में शामिल पेन्सिलवेनिया के व्हार्टन स्कूल में मार्केटिंग प्रोफेसर शिरि मेलुमद का कहना है, ‘युवा सबसे पहले एलएलएम की ओर रुख कर रहे हैं। लेकिन यदि हम उन्हें जानकारी छांटना, इसकी व्याख्या करना नहीं सिखाते तो हम गहराई से सीखने की उनकी क्षमता को जोखिम में डाल रहे हैं।’ बेशक, एआई ने सीखना आसान किया है।

संभवत: बहुत अधिक, इसलिए हम रोजमर्रा में इसे उपयोग कर रहे हैं। पर इसने ना केवल कमजोर समझ और विषयों को लेकर कमतर ज्ञान को प्रदर्शित किया, बल्कि हमें विपरीत नजरिए को स्वीकार करना भी नहीं सिखाते। ये हमारे व्यवहार पर बहुत खराब प्रभाव डाल सकता है।

फंडा यह है कि ‘सेपियंस’ के लेखक युवाल नोआ हरारी कहते हैं ‘एआई और कुछ नहीं बल्कि एलियन इंटेलिजेंस है। यह होमोसेपियंस की दुनिया में धीमे-धीमे बढ़ रही नई प्रजातियां हैं।’ जितना जल्दी हम इसके जोखिम व संभावनाओं को समझ लेंगे, मानवता के लिए उतना ही बेहतर होगा।

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