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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
पिछले सप्ताहांत, प्योर लीफ नामक एक चाय कंपनी ने न्यूयॉर्क के एक व्यस्त चौराहे पर न्यूयॉर्कवासियों को मुफ्त आइस्ड टी दी। इसे एक व्यस्त चौराहे के बीच रखा गया, जहां लोग वॉक करते हैं और आसपास की नर्म हरी घास में आराम करते हैं।
उन्होंने वहां कुछ बड़े छाते लगाए और उनके नीचे सोफा लगा दिए। इस प्रकार गर्मी में कुछ मिनट बैठने के लिए छायादार जगह बन गई। वहीं उन्होंने अपनी वेंडिंग मशीन लगा दी, जो मुफ्त आइस्ड टी पेश कर रही थी। उस क्षेत्र में टहल रहे लोग पहले मुफ्त चाय लेने के लिए बटन दबाने की कोशिश करते। लेकिन इंटरेक्टिव मशीन मना कर देती। मशीन बार-बार कहती कि “अपना फोन मशीन के बाईं ओर लगे चार्जिंग पैड पर रखें।’ लोग बेमन से फोन चार्ज होने के लिए उस पैड पर रख देते। फिर मशीन कहती, “टी ब्रेक शुरू करने के लिए यहां दबाएं।’
विस्यमकारी तरीके से जैसे ही लोग उन शब्दों को दबाते, चार्जिंग पैड का लोहे का दरवाजा तुरंत लॉक हो जाता। फोन भी इसमें अंदर बंद हो जाता। लोग जोर लगा कर दरवाजा खोलने की कोशिश करते, लेकिन असफल रहते। वो चारों ओर देखते कि कुछ लोग चाय की बोतल से चुस्कियां लगाते हुए उनकी ओर मुस्करा रहे हैं। और उसी वक्त मशीन आइस्ड टी की एक बोतल बाहर निकाल देती।
लोग बिना इच्छा के बोतल लेते और इस चिंता के साथ सोफे पर बैठ जाते कि उनका फोन कब वापस मिलेगा? जैसे ही एक मिनट बीतता, नौ मिनट पहले अपना फोन चार्जिंग पैड पर रखने वाला कोई दूसरा व्यक्ति मशीन के सामने खड़ा होता और दसवें मिनट पर मशीन खुल जाती। उसका फोन वापस दे देती।
व्यक्ति कहता “वाह, क्या टी ब्रेक था’। आइस्ड टी पीने वाले 78% लोगों ने सप्ताह के अंतिम दिन फोन से दस मिनट का ब्रेक लेने के बाद बेहतर महसूस किया। और ब्रांड ने इस बात को समझाया कि गैजेट्स से दस मिनट का ब्रेक भी आपको तरोताजा कर सकता है।
यह न्यूयॉर्क में हाल ही किया गया एक मार्केटिंग कैम्पेन था, जिसमें वेंडिंग मशीनों का उपयोग करके लोगों को “वायर्ड’ (तकनीकी की) दुनिया से छोटा-सा ब्रेक लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया। यह कैम्पेन के संदेश से मेल खाता है कि आराम करने और रिफ्रेश होने के लिए समय निकालना फायदेमंद है। अंतत: इस ब्रांड प्रमोशन में इस बात पर जोर दिया गया कि छोटे-से ब्रेक का भी तंदुरुस्ती पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
मुझे यह उपाय बेहद कारगर लगा। इसे मैंने अपने कुछ दोस्तों से साझा किया, जो हैदराबाद में ऑफलाइन रीडिंग क्लब चला रहे हैं, ताकि डिजिटल एडिक्ट बच्चों को “डूम स्क्रॉलिंग’ से बचाया जा सके। इसे “डूम सर्फिंग’ भी कहते हैं और यह ऑनलाइन बहुत अधिक समय बिताने से संबंधित है। इस प्रक्रिया में न्यूज फीड और सोशल मीडिया पर लगातार स्क्रॉल किया जाता है।
मेरे दोस्त पहले पढ़ने की आदत को प्रोत्साहित करना चाहते थे। और वे कुछ लोगों को ऑनलाइन पुस्तकें पढ़ाने में सफल भी रहे। लेकिन पढ़ने के बजाय वो बातचीत करने लग जाते थे। इसलिए फिर वे ऑफलाइन मोड पर आ गए। पिछले सितंबर से वे सभी सदस्य हर रविवार की सुबह एक पार्क में एकत्रित होते हैं।
चिड़ियों की चहचहाहट के बीच व्यक्तिगत अध्ययन सत्र उन्हें नई जानकारियों और विचार-प्रक्रिया के साथ अगले सप्ताह के लिए तरोताजा कर देता है। ऐसे क्लब लोगों को कम से कम पढ़ने की आदत तो बनाए हुए है और उनकी स्क्रीन देखने की आदत कम कर रहे हैं।
ध्यान रखें कि हममें से अधिकतर किसी पुस्तक को केवल सरसरी नजर से देखकर दराज में रख देते हैं। हम उसकी विषयवस्तु को भी भूल जाते हैं। ऐसे में सभी सदस्यों द्वारा एक पुस्तक पढ़ने और हर रविवार उसके विचारों को साझा करने से क्लब सदस्यों को कम से कम 52 पुस्तकों के शीर्षक और उनकी विषयवस्तु तो याद रहेगी।
फंडा यह है कि किसी समस्या के समाधान के लिए आए उपाय को कभी भी अच्छे या बुरे में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। इसे सिर्फ ऐसे बांटा सकता है कि यह लागू करने योग्य है अथवा नहीं है। इसलिए हर साधारण से आइडिया पर भी प्रसन्न हों, उसका स्वागत करें।
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एन. रघुरामन का कॉलम: आप किसी आइडिया को अच्छा या बुरा नहीं बता सकते