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एन. रघुरामन का कॉलम: आपके घर चाय बनाने की प्रक्रिया कितनी सुंदर है? Politics & News

एन. रघुरामन का कॉलम:  आपके घर चाय बनाने की प्रक्रिया कितनी सुंदर है? Politics & News

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43 मिनट पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

क्या आप वाकई इन सर्दियों में सुबह की चाय का मजा लेना चाहते हैं? आप में से हर कोई चाय बनाना जानता है, लेकिन आप में से कितने लोग जानते हैं कि चाय बनाने को एक उत्सव में कैसे बदला जाए?

आइए, मैं आपको एक ऐसी रसोई में ले चलता हूं, जहां मैंने दो दशक पहले यह कला सीखी थी। मैं निमंत्रण पर सुबह-सुबह उनके घर एक कप चाय के लिए गया था, उन्होंने केवल एक गलती की थी कि उन्होंने सोचा अधिकांश भारतीयों की तरह मैं समय पर नहीं आऊंगा।

लेकिन मैं सुबह ठीक 6.30 बजे पहुंच गया था, जैसा कि निमंत्रण में लिखा था। उन्होंने मुझे रसोई के प्रवेश द्वार पर खड़े होने के लिए बुलाया। उनकी चाय की केतली सिंक में थी। बर्तन के तल को रगड़ते समय उनका हाथ ऐसे बर्ताव कर रहा था, जैसे कोई विश्व-सुंदरी अपने रेशमी गालों पर मॉइस्चराइजर लगा रही हो।

जहां कहीं भी काले धब्बे थे, उन्होंने उसे ऐसे रगड़ा जैसे वह सुंदरी अपने मोतियों जैसे दांतों को साफ कर रही हो। इसका युवा दिखने या बाउंसर-​स्किन होने या झुर्रियों या दांतों की सड़न को समाप्त करने से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने नल को इस तरह खोला कि पानी बर्तन को नुकसान न पहुंचाए और नल बर्तन की सुंदरता का तब आनंद ले सके, जब वह अपने चेहरे को चारों ओर से दिखा रहा हो।

उन्होंने उसे तौलिए से ऐसे पोंछा, जैसे वह सुंदरी वेट-ट्रीटमेंट से पहले अपना चेहरा सुखा रही हो। फिर उन्होंने इसे पानी से भर दिया। उस दिन मैंने उन जापानी सज्जन से जो सीखा, वो यह था कि अंतिम परिणाम की चिंता मत करो, प्रक्रिया का आनंद लो, उसमें डूब जाओ।

मेरा मन अचानक से उस ओर गया, जब गैस बर्नर की लयबद्ध ‘क्लिक क्लिक क्लिक’ की ध्वनि ने लौ को पकड़ने की ‘हूश’ ध्वनि को जन्म दिया। मैंने देखा कि वे उस छोटे-से समुद्र का आनंद ले रहे थे, जो चूल्हे पर मौजूद मजबूत केतली में सिमटा हुआ था।कुछ ही क्षणों बाद चूल्हा बंद कर दिया गया, यहां तक कि गुड़गुड़ाहट की आवाज भी शांत हो गई।

उन्होंने केतली को ट्रे पर रखा, लेकिन पहले उसके नीचे एक कोस्टर रखना नहीं भूले, ताकि ट्रे को केतली की ज्यादा गर्मी महसूस न हो। फिर हम मेज पर चले गए। वह मेज भी खूबसूरती और सावधानी से तैयार की गई थी, मानो मेज भी चाय जितनी ही श्रद्धा की पात्र हो। वे मिट्टी के बर्तन में गर्म पानी उड़ेलते हैं और पाउडर वाली पत्तियों से उसे फेंटते हैं।

अचानक पूरा कमरा सुगंध से भर जाता है। औजारों को बेहतरीन देखभाल और इरादतन प्यार से संभाला जाता है। वहां कोई भी चीज निरी वस्तु नहीं है। प्रत्येक में कोई न कोई मूल्य निहित है।

एक बांस की व्हिस्क, एक गर्म केतली, एक चायदानी, मिट्टी के बर्तन, जिनसे चाय को चुपचाप, धीरे-धीरे और शांति से पीया जाता है और इसके साथ कंट्रास्ट के लिए एक छोटी-सी मिठाई भी होती है। क्रियाएं, बर्तन, यहां तक कि कपड़े के नैपकिन भी सम्मान के योग्य हैं, सिर्फ इसलिए कि उनका अस्तित्व है।

मैंने सबसे पहले उस गंधमयी प्रवाह को अपने भीतर लिया और सुगंधित धुएं का वह संकेत नाक के जरिए पेट तक पहुंचा कि सुबह का अमृत जल्द ही आने वाला है। चाय खुद सांस ले रही थी जैसे कि वह मुझसे कह रही हो, चिंता मत करो, मैं सुनिश्चित करूंगी कि तुम पूरे दिन चुस्ती-फुर्ती से अपना काम करो।

मेरा विश्वास कीजिए मैं महज चाय नहीं पी रहा था, बल्कि यह जैसे किसी दूसरी दुनिया से आया हुआ पेय पदार्थ था। अगर आप खूबसूरत चाय बनाने की इस प्रक्रिया को पूरी तरह से अनुभव करना चाहते हैं- वह भी घर पर- तो अगले बुधवार के बाद दो सप्ताह के लिए मेरे मुंबई वाले घर में आपका स्वागत है, जब मेरी पत्नी विदेश यात्रा पर जाएंगी। मेरा दृढ़ विश्वास है कि चाय बनाना कोई रोजमर्रा की आदत नहीं, बल्कि एक समारोह है।

फंडा यह है कि ‘चलो चाय पीते हैं’ जैसी सरल-सी रस्म को भी एक ऐसे उत्सव में बदलना संभव है, जिसे मेहमान जीवन भर याद रखेंगे।

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