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- N. Raghuraman’s Column Don’t Judge The Behaviour Of Today’s Employees, Their Work Protocol Is Different
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
रविवार सुबह 4.45 बजे जयपुर एयरपोर्ट की पहली मंजिल पर महिलाओं के सामान बेचने वाली “सितारा’ नामक शॉप के बाहर उसकी एक युवा, आकर्षक और अच्छी पोशाक पहने सेल्स-गर्ल सेल्फी ले रही थी। वह एक सेल्फी लेने में दो मिनट का समय ले रही थी, यह सुनिश्चित करते हुए कि उसका लुक, लिपस्टिक और बाल सब ठीक हैं।
शायद वह अपनी दोपहिया गाड़ी चलाकर इस ठंडे मौसम में काम के लिए जल्दबाजी में आई होगी। इतने तड़के ऐसा करना उन “जॉन्बी-पैसेंजर्स’ को चकित करता है, जो या तो बिना दाढ़ी बनाए यात्रा कर रहे होते हैं, या नहाए नहीं होते हैं और उड़ान में अपनी नींद जारी रखना चाहते हैं।
मैंने ऐसे ही एक यात्री की टिप्पणी सुनी, जिसमें उन्होंने कहा- “देखो, तड़के 4.45 बजे भी आज की पीढ़ी सेल्फी के लिए दीवानी रहती है।’ चूंकि यह बात जोर से कही गई थी, इसलिए इसे उस लड़की ने सुन लिया। वह शायद सुबह 3.30 बजे उठी होगी, नहाई होगी, अच्छे कपड़े पहने होंगे और ड्यूटी के समय से पहले कार्यस्थल पर पहुंच गई होगी।
मैंने उसे इशारे से शांत किया और उन यात्री को स्पष्ट करते हुए बताया कि “आज कर्मचारियों से अपेक्षा की जाती है वे कार्यस्थल पहुंचकर वहां से एक सेल्फी नियोक्ता को वॉट्सएप पर भेजें। यह हमारे समय में कामकाज के प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं था, इसलिए इस तरह की टिप्पणी करना गलत है।’
हममें से कई लोग यह नहीं समझते हैं कि जब बॉस को इस तरह की सेल्फी भेजी जाती है, तो बॉस सेल्स-पर्सन के दृष्टिकोण से भी अपनी कर्मचारी के हुलिए का जायजा लेता है। चूंकि लड़की को इन अपेक्षाओं को पूरा करना था, इसलिए उसने सेल्फी लेने में कुछ समय लिया। मेरे ऐसा कहने पर यात्री को अपनी गलती का अहसास हुआ, उन्होंने मुझसे माफी मांगी और आगे बढ़ गए।
मैं देख सकता था कि वह लड़की अपनी खुश आंखों से मुझे धन्यवाद दे रही थी। फिर मैं मुंबई के लिए एआई2566 में सवार हो गया। नगीना नामक एक एयर-होस्टेस विमान की आपातकालीन पंक्ति में बैठे “जॉन्बी-पैसेंजर्स’ को ब्रीफ करने के लिए तैयार थी।
नागरिक उड्डयन महानिदेशक (डीजीसीए) का नियम है कि आपातकालीन सीटों पर बैठे हर यात्री को बताना अनिवार्य है पानी में आपातकालीन लैंडिंग की स्थिति में वे सभी यात्रियों को निकालने में चालक-दल की मदद कैसे कर सकते हैं। एयर-होस्टेस ने चार आपातकालीन निकास-द्वारों के बगल में बैठे यात्रियों को जगाने की कोशिश की। उसने विनम्र लहजे में उन्हें “सर’ और “मैडम’ कहकर पुकारा।
उन्होंने उसकी मद्धम आवाज पर ध्यान नहीं दिया, इसलिए उसने अपनी आवाज थोड़ी ऊंची कर दी। ऐसे में जाहिर तौर पर चेहरा थोड़ा सख्त हो जाता है। वे उठे, अनिच्छा से उसके निर्देशों को सुना और वापस सो गए।
लेकिन उनमें से एक ने भद्दी टिप्पणी करते हुए कहा- “सांप फुंफकारकर चला गया।’ जो लोग “नगीना’ को “नागिन’ कहने में छिपे व्यंग्य को समझ गए वे हंसे, वहीं बाकी के लोग इस पर अचरज करने लगे। फिर वे सब सो गए। मुझे नहीं पता कि होस्टेस ने यह बात सुनी या नहीं, लेकिन जिस तरह से वह आगे बढ़ी, बिना किसी व्यवधान के अपने काम पर ध्यान केंद्रित किया, उसकी मैं सराहना करता हूं।
अलबत्ता जिस व्यक्ति ने वह तथाकथित “रचनात्मक’ (लेकिन जहरीली) टिप्पणी की थी, वह शायद ही उसकी ब्रीफिंग के महत्व को समझ पाया हो, क्योंकि यह अनिवार्य है कि इसे हर उड़ान में और हर यात्रियों को समझ आने वाली भाषा में बताया जाना चाहिए।
अगर वह उस प्रोटोकॉल का पालन नहीं करती है, तो उसे डी-रोस्टेड किया जा सकता है और फिर से प्रशिक्षण के लिए भेजा जा सकता है। आज नौकरी के लिए कुछ ऐसे प्रोटोकॉल की आवश्यकता होती है, जिनके बारे में हममें से कई लोग या तो जानते नहीं या हम उसके अभ्यस्त नहीं हैं।
फंडा यह है कि आज के युवा कर्मचारी ग्राहकों के बदलते व्यवहार को हैंडल करने में बहुत अच्छे हैं। किसी पर केवल इसलिए भद्दी टिप्पणी करने- क्योंकि हमने टिकट खरीदा है- के बजाय उनकी कड़ी मेहनत की सराहना करें। याद रखें, आधुनिक वर्क-शेड्यूल थकाऊ और बहुत डिमांडिंग होते हैं।
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एन. रघुरामन का कॉलम: आज के कर्मचारियों के व्यवहार को जज न करें, उनके काम का प्रोटोकॉल अलग है