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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
वह दृश्य याद करें, जिसमें नायिका अपने कमरे में बिस्तर के इधर-उधर भाग-दौड़ रही है और बेचैन हो रही है। अचानक दृश्य बदलता है और हमें उस चट्टान पर ले जाता है, जहां नायक खड़ा वायलिन बजा रहा है। हम फिर से नायिका के बेडरूम में लौटते हैं और पाते हैं कि अब वह शांत हो चुकी है और खुद को एक सपनों की दुनिया में ले गई है, जहां वह और उसका प्रेमी गाना शुरू कर देते हैं : “बाजीगर ओ बाजीगर, तू है बड़ा जादूगर।’
यकीनन, प्यार आपके अंदर आग भड़का देता है लेकिन वायलिन आपमें शांति ले आती है और आपको सुकून देती है। हममें से ज्यादातर लोग जब वायलिन के बारे में सोचते हैं, खासकर बॉलीवुड में, तो सबसे पहले जो दृश्य हमारे दिमाग में आता है, वह निश्चित रूप से “मोहब्बतें’ फिल्म में शाहरुख खान का है।
मुझे नहीं पता कि वायलिन क्यों इतनी लोकप्रिय हुई- क्योंकि शाहरुख उस फिल्म में वायलिन सिखा रहे थे या वे हेडमास्टर को चुनौती देने की कोशिश कर रहे थे- लेकिन फिल्म के बाद यह साज प्यार और रोमांस का प्रतीक बन गया।
“मोहब्बतें’ के लगभग 25 और “बाजीगर’ के लगभग 32 साल बाद बेंगलुरु के अनीश विद्याशंकर और राम चरण ने शाहरुख के आइडिया को अपनाया, लेकिन अभिनेता की शैली की नकल नहीं की। ज्यादातर युवा वायलिन बजाकर अपने प्रिय को लुभाना चाहते हैं।
लेकिन इन दोनों ने “वॉकिंग वायलनिस्ट्स’ बनकर शादियों में संगीत का जादू रचने और उनमें शामिल होने वाले तमाम प्रेमी जोड़ों के दिलों के तार झनझनाने का फैसला किया, न कि केवल उस जोड़े के जो उस दिन एक हो रहे हैं।
आज एक अनुमान के मुताबिक युवा आईटी पेशेवरों के उस शहर में होने वाली लगभग 70 प्रतिशत शादियों में अनीश और राम जैसे लोग समारोह स्थलों पर अपनी धुनों से मेहमानों को लुभाते हैं। वे अब किसी बड़े-से वेडिंग हॉल के एक कोने में सिमटे बैंड का हिस्सा भर नहीं हैं।

जब वे आपके पास से होकर गुजरते हैं और उनकी धुन आपके कानों में पड़ती है, तो कई अन्य भावनाएं आपके दिमाग को झनझना जाती हैं। लोइंग गाउन, चमचमाती कांजीवरम साड़ियां और जगमगाती रोशनी भावनाओं को नए आयाम देती हैं क्योंकि आपके कानों में भी प्यार की धुन गूंजने लगती है।
याद रखें कि शाहरुख के लिए किसी फिल्म के सेट पर चलते-फिरते वायलिन बजाना आसान हो सकता है, क्योंकि पृष्ठभूमि में हुनरमंद कलाकार संगीत बजा रहे होते हैं और शाहरुख केवल अभिनय कर रहे होते हैं। लेकिन अनीश और राम के लिए ऐसा करते समय संगीत की गुणवत्ता बनाए रखना जरूरी है।
वायलिन के लिए बहुत सधे हुए हाथों की आवश्यकता होती है और चलते हुए वायलिन बजाने के लिए उसे स्थिर रखना बहुत मुश्किल है। इसके लिए वर्षों के रियाज की जरूरत है और खासतौर पर अनीश 2013 में इस पेशे में प्रवेश करने से पहले 25 वर्षों से अभ्यास कर रहे थे।
कॉर्पोरेट इवेंट में जो काम करता है, वह जरूरी नहीं कि शादी में भी कारगर हो, इसलिए कलाकारों को इवेंट के अनुसार अपना कार्यक्रम तैयार करना पड़ता है। अनीश के पिता विद्या शंकर- जो खुद भी संगीतकार थे- ने उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत को मूवमेंट के साथ जोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
यह एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि इससे संगीत की पेचीदगियां और बढ़ जाती थीं। 500 से ज्यादा शादियों में परफॉर्मेंस दे चुके राम को भी लगता है कि उनका पेशा आसान नहीं है। लेकिन उनका मानना है कि महत्वाकांक्षी वायलिन वादकों को मेहनत करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
पिछले कुछ सालों में वॉकिंग वायलिन वादकों का कौशल अब एक पूर्ण विकसित पेशा बन गया है। कई युवाओं के लिए यह पहला करियर विकल्प है, क्योंकि कम से कम हमारे देश में तो शादी-ब्याह एक प्रमुख उद्योग है।
फंडा यह है कि आप मूल विचार की नकल करने के बावजूद मौलिक होते हुए अपनी स्टाइल अलग रख सकते हैं। आपके हाथों का हुनर न केवल जादू करता है, बल्कि कई दिलों को सुकून भी देता है। इससे आप लोकप्रिय होते हैं और आपको धनराशि मिलती है सो अलग।
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एन. रघुरामन का कॉलम: आइडिया को भले कॉपी कर लें, लेकिन स्टाइल को नहीं