एचएसवीपी ने इस प्लान को धरातल पर लाने के लिए करीब 20 करोड़ रुपये का एस्टिमेट तैयार कर लिया। इस जमीन की तारबंदी करवा दी। कुछ महीनों पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश जारी किए थे कि अरावली प्लांटेशन की जमीन वन क्षेत्र का हिस्सा है। इसमें किसी तरह का निर्माण प्रतिबंधित है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद एचएसवीपी का प्लान अटक गया। अब एचएसवीपी ने डीसी के समक्ष मामले को रखा है, जिसमें आग्रह किया है कि इस जमीन को अरावली प्लांटेशन से बाहर किया जाए। मौजूदा समय में इस जमीन पर करीब 60 हजार अलग-अलग प्रजाति के पेड़ लगे हैं, जिसमें अधिकांश कीकर हैं। वन विभाग के राजस्व रिकॉर्ड में यह जमीन अरावली प्लांटेशन में शामिल है, जिसमें किसी तरह का निर्माण नहीं हो सकता है।
वन विभाग के रेकॉर्ड में यह जमीन अरावली प्लांटेशन का हिस्सा है। एचएसवीपी ने डीसी के समक्ष इस जमीन को निजी बताते हुए अरावली प्लांटेशन से बाहर करने की बात कही है। राजस्व रेकॉर्ड की जांच के बाद इस मामले में कुछ बोला जा सकता है। –
राजीव तेजयान, डीएफओ, वन विभाग
क्या है अरावली प्लांटेशन : अरावली प्लांटेशन की जमीन पर सिर्फ जंगल विकसित किया जा सकता है। किसी तरह का निर्माण इस जमीन पर प्रतिबंधित है। वन विभाग के मुताबिक साल 1991 में जापान सरकार के जायका फंड से अरावली प्लांटेशन प्रॉजेक्ट शुरू हुआ था। करीब 10 साल तक यह परियोजना चली। इसके तहत करीब 82000 एकड़ जमीन पर पौधरोपण किया गया था। साल 2000 तक अरावली पर्वत श्रृंखला और अरावली प्लांटेशन का दायरा ठीक रहा। इसके बाद यह उजड़ना शुरू हो गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने अरावली प्लांटेशन दायरे को वन क्षेत्र घोषित कर दिया है।
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