उपलब्धि: बाजरे की दो किस्मों पर करनाल की बेटी ने किया शोध, मधुमेह और हृदय रोगों से करेगी बचाव


कर्मबीर लाठर, संवाद न्यूज एजेंसी, करनाल (हरियाणा)
Published by: अमर उजाला ब्यूरो
Updated Fri, 24 Jun 2022 02:36 AM IST

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केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल के पूर्व प्रवक्ता एसके शर्मा की वैज्ञानिक बेटी डॉ. निधि कौशिक ने अनुसंधान जगत में वैश्विक स्तर पर प्रतिभा का परचम फहराया है। उसने अपने शोध से यह साबित कर दिया कि बाजरे की कोदो और कुटकी किस्मों के सेवन से मधुमेह और हृदय रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है। यह मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए उपयोगी है। इसके लिए राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमशीलता एवं प्रबंधन संस्थान (निफ्टम) सोनीपत की बेसिक एंड अप्लाइड साइंस विभाग की शोधार्थी डॉ. निधि कौशिक को संस्थान के दीक्षांत समारोह में (शुक्रवार को) पीएचडी की उपाधि से अलंकृत किया जाएगा।

दरअसल, मध्यप्रदेश में पाई जाने वाली बाजरे की दोनों प्रजातियों में दाने से छिलका उतारने की प्रक्रिया में कठिनाई होती थी और कठोर परिश्रम के बाद भी उत्पादन कम मिलता था। इस वजह से इन गुणकारी किस्मों का किसानों ने त्याग कर दिया। समस्या समाधान के लिए शोधार्थी डॉ. निधि ने विश्व में पहली बार न्यूक्लियर रेडिएशन (परमाणु विकिरण) का प्रयोग किया।

उन्होंने रेडिएशन की एक निश्चित मात्रा ज्ञात की जिससे छिलका स्वत: उतर जाए। इस प्रक्रिया में एक भी दाना नहीं टूटा और उत्पाद शत-प्रतिशत मिला। शोध में यह भी पाया गया कि विकिरणों से बीज पर कोई असर नहीं पड़ता। इन बीजों का बिना विकिरण निकाले गए बीजों की तुलना में अंकुरण अच्छा होता है। वहीं बाजरे के स्वाद और गुणवत्ता पर शोध के लिए बिस्किट, ब्रेड व कुरकुरे इत्यादि उत्पाद बनाए।

इससे पहले बाजरे की उक्त दोनों किस्मों का प्रयोग चूहों पर किया गया। अध्ययन में पाया गया कि बाजरे की दोनों किस्मों के सेवन से डायबिटीज, मोटापा और हृदय संबंधी रोग ठीक हुए। इस संबंध में छह शोध पेपर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हो चुके हैं तथा चार और शोध प्रकाशित होने हैं। डॉ. निधि कौशिक ने मार्गदर्शन के लिए यूपीटीयू के पूर्व कुलपति एवं श्रीराम इंस्टीट्यूट फॉर इंडस्ट्रियल रिसर्च के पूर्व निदेशक डॉ. आरके खंडाल का आभार जताया।

प्रधानमंत्री मोदी की रुचि पर हुई पड़ताल
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने वर्ष 2014-15 में पोषणता की कमी को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश कर सभी देशों को मिलेट्स (बाजरे की किस्मों) की खेती करने की सलाह दी थी। आगाह किया कि ग्लोबल वार्मिंग व पर्यावरण परिवर्तन से बचने के लिए बाजरे की खेती ही उपाय है। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाजरे के विशिष्ट गुणों वाली किस्मों की पड़ताल करवाई। पता चला कि मध्यप्रदेश में आदिवासी क्षेत्रों में कोदो व कुटकी किस्में बोई जाती थीं, लेकिन अब किसानों ने इन्हें त्याग दिया है। उसके बाद मध्यप्रदेश सरकार ने इन किस्मों की खेती में किसानों के समक्ष आने वाली समस्याओं को ढूंढने और समाधान के लिए सर्वोत्तम उपाय तलाशने पर शोध के लिए प्रेरित किया। 2016 में इस पांच वर्षीय शोध प्रोजेक्ट का जिम्मा निफ्टम की वैज्ञानिक डॉ. मंजीत अग्रवाल और डॉ. कोमल ने लिया। इन वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में पीएचडी की शोधार्थी डॉ. निधि कौशिक ने यह प्रोजेक्ट संभाला और इसे अंजाम तक पहुंचाया।

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केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल के पूर्व प्रवक्ता एसके शर्मा की वैज्ञानिक बेटी डॉ. निधि कौशिक ने अनुसंधान जगत में वैश्विक स्तर पर प्रतिभा का परचम फहराया है। उसने अपने शोध से यह साबित कर दिया कि बाजरे की कोदो और कुटकी किस्मों के सेवन से मधुमेह और हृदय रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है। यह मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए उपयोगी है। इसके लिए राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमशीलता एवं प्रबंधन संस्थान (निफ्टम) सोनीपत की बेसिक एंड अप्लाइड साइंस विभाग की शोधार्थी डॉ. निधि कौशिक को संस्थान के दीक्षांत समारोह में (शुक्रवार को) पीएचडी की उपाधि से अलंकृत किया जाएगा।

दरअसल, मध्यप्रदेश में पाई जाने वाली बाजरे की दोनों प्रजातियों में दाने से छिलका उतारने की प्रक्रिया में कठिनाई होती थी और कठोर परिश्रम के बाद भी उत्पादन कम मिलता था। इस वजह से इन गुणकारी किस्मों का किसानों ने त्याग कर दिया। समस्या समाधान के लिए शोधार्थी डॉ. निधि ने विश्व में पहली बार न्यूक्लियर रेडिएशन (परमाणु विकिरण) का प्रयोग किया।

उन्होंने रेडिएशन की एक निश्चित मात्रा ज्ञात की जिससे छिलका स्वत: उतर जाए। इस प्रक्रिया में एक भी दाना नहीं टूटा और उत्पाद शत-प्रतिशत मिला। शोध में यह भी पाया गया कि विकिरणों से बीज पर कोई असर नहीं पड़ता। इन बीजों का बिना विकिरण निकाले गए बीजों की तुलना में अंकुरण अच्छा होता है। वहीं बाजरे के स्वाद और गुणवत्ता पर शोध के लिए बिस्किट, ब्रेड व कुरकुरे इत्यादि उत्पाद बनाए।

इससे पहले बाजरे की उक्त दोनों किस्मों का प्रयोग चूहों पर किया गया। अध्ययन में पाया गया कि बाजरे की दोनों किस्मों के सेवन से डायबिटीज, मोटापा और हृदय संबंधी रोग ठीक हुए। इस संबंध में छह शोध पेपर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हो चुके हैं तथा चार और शोध प्रकाशित होने हैं। डॉ. निधि कौशिक ने मार्गदर्शन के लिए यूपीटीयू के पूर्व कुलपति एवं श्रीराम इंस्टीट्यूट फॉर इंडस्ट्रियल रिसर्च के पूर्व निदेशक डॉ. आरके खंडाल का आभार जताया।

प्रधानमंत्री मोदी की रुचि पर हुई पड़ताल

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने वर्ष 2014-15 में पोषणता की कमी को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश कर सभी देशों को मिलेट्स (बाजरे की किस्मों) की खेती करने की सलाह दी थी। आगाह किया कि ग्लोबल वार्मिंग व पर्यावरण परिवर्तन से बचने के लिए बाजरे की खेती ही उपाय है। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाजरे के विशिष्ट गुणों वाली किस्मों की पड़ताल करवाई। पता चला कि मध्यप्रदेश में आदिवासी क्षेत्रों में कोदो व कुटकी किस्में बोई जाती थीं, लेकिन अब किसानों ने इन्हें त्याग दिया है। उसके बाद मध्यप्रदेश सरकार ने इन किस्मों की खेती में किसानों के समक्ष आने वाली समस्याओं को ढूंढने और समाधान के लिए सर्वोत्तम उपाय तलाशने पर शोध के लिए प्रेरित किया। 2016 में इस पांच वर्षीय शोध प्रोजेक्ट का जिम्मा निफ्टम की वैज्ञानिक डॉ. मंजीत अग्रवाल और डॉ. कोमल ने लिया। इन वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में पीएचडी की शोधार्थी डॉ. निधि कौशिक ने यह प्रोजेक्ट संभाला और इसे अंजाम तक पहुंचाया।

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