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इजराइल से जंग के बाद ईरान ने अफगान नागरिकों को तेजी से बाहर करना शुरू कर दिया।
ईरान में जनवरी से अब तक 14 लाख से ज्यादा अफगानों को जबरन निकाल दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र (UN) की शरणार्थी एजेंसी के मुताबिक ईरान और अफगानिस्तान की सीमा पर हर दिन करीब 20 हजार अफगान शरणार्थी जबरन वापस भेजे जा रहे हैं।
ये सिलसिला पिछले महीने ईरान-इजराइल के बीच 12 दिन के युद्ध के बाद तेजी से बढ़ा। ईरान ने 24 जून से 9 जुलाई के बीच यानी महज 16 दिनों में 5 लाख से ज्यादा अफगान नागरिकों को देश से बाहर कर दिया।
ईरान ने मार्च 2025 में ऐलान किया था कि अवैध रूप से रह रहे अफगान प्रवासी 6 जुलाई तक देश छोड़ दें, नहीं तो उन्हें जबरन निकाला जाएगा। ईरानी अधिकारियों ने दावा किया कि अफगानी इजराइल और अमेरिका के लिए जासूसी, आतंकी हमले और ड्रोन बनाने में शामिल हैं।
ईरान में अफगानों को निशाना बनाया जा रहा है। कई अफगानों ने मीडिया को बताया की उनके साथ मार-पीट की गई और पैसे भी छीन लिए गए। वहीं, कई नाबालिग बच्चों को बिना बड़ों के ही अफगान भेज दिया गया।

अफगान अधिकारियों ने वापस लौटने वालों को खीरे और दूसरे खाद्य सामग्री के बैग बांटे।

अफगान-ईरान सीमा पर इंतजार करते शरणार्थी।

अफगानों को सीमा पार करने के बाद इस्लाम कला में पंजीकरण कराना पड़ता है।
शरणार्थी बोले- हमें कूड़े की तरह फेंक दिया गया
न्यूयॉर्क टाइम्स को लोगो ने बताया कि उनके पास न तो पर्याप्त सामान है और न ही भविष्य की कोई उम्मीद। 42 साल तक ईरान में मजदूरी करने वाले मोहम्मद अखुंदजादा ने कहा, “मैंने 42 साल तक ईरान में मेहनत की, मेरे घुटने टूट गए, और अब मुझे क्या मिला?”
ईरान से निर्वासित हुए एक अफगान शरणार्थी बशीर ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि अधिकारियों ने उससे 17 हजार रुपए मांगे। फिर दो दिन डिटेंशन सेंटर में रखा। इस दौरान न खाना दिया गया और न ही पानी। बशीर के मुताबिक अधिकारी उसे गालियां देते थे।
एक दूसरे युवक ने बताया कि उसके पिता को जासूसी के आरोप में पकड़कर कैद कर दिया गया। उन्हें खाना-पानी नहीं दिया गया और बाद में डिटेन करके अफगानिस्तान भेज दिया।
द गार्जियन से बात करते हुए एक अफगान महिला ने बताया कि, ईरानी अधिकारी रात में आए। उन्होंने बच्चों के कपड़े तक नहीं लेने दिए। हमें कूड़े की तरह फेंक दिया। रास्ते में बैंक कार्ड से पैसे निकाल लिए। पानी की बोतल के 80 रुपए और सैंडविच के 170 रूपए वसूले।
ईरान में अफगानों के खिलाफ नस्लीय हमले बढ़े
इजराइल के साथ युद्ध के बाद ईरान में अफगानों के खिलाफ नस्लीय हमले बढ़ गए हैं। कई अफगानों ने बताया कि उन्हें गालियां दी गईं, चाकू से हमले हुए और उनकी मजदूरी तक छीन ली गई।
बैंकों, स्कूलों, अस्पतालों और दुकानों ने भी अफगानों को सेवा देने से मना कर दिया है। एब्राहिम कादेरी ने मीडिया को बताया कि वो तेहरान में एक कार्डबोर्ड फैक्ट्री में काम करते थे, वहां कुछ लोगों ने उन्हें गंदा अफगान कहकर पीटा और चाकू से घायल कर दिया।
उनकी मां गुल दास्ता फजिली ने कहा कि चार अस्पतालों ने उनके बेटे का इलाज करने से इनकार कर दिया क्योंकि वह अफगान था। 35 साल की फराह, जो तेहरान में कंप्यूटर इंजीनियर हैं, ने बताया कि पड़ोस के युवकों ने उन पर और उनके 4 साल के बेटे पर हमला किया।

ईरान में चाकू से हुए हमले में घायल इब्राहिम कादरी का चार ईरानी अस्पतालों के डॉक्टरों ने इलाज करने से मना कर दिया था।
बिना मां-बाप के नाबालिगों को निकाल रहा ईरान
ईरान से निकाले गए लोगों में सैकड़ों नाबालिग बच्चे हैं, जिनमें कई अनाथ और अकेले हैं। UN के अनुसार, हर हफ्ते सैकड़ों बच्चों को बिना अभिभावकों के सीमा पर पाया जा रहा है।
अफगानिस्तान के पश्चिमी सीमा पर इस्लाम काला नामक शहर में एक भीड़भाड़ वाला प्रोसेसिंग सेंटर है, जहां निकाले गए लोगों को रखा जा रहा है।
इन शरणार्थियों की वापसी से अफगानिस्तान की पहले से खराब अर्थव्यवस्था और बिगड़ रही है। ईरान में रहने वाले अफगान अपने परिवारों को पैसा भेजते थे, जो अब बंद हो गया है।
अफगानिस्तान की 4.1 करोड़ आबादी में से आधी से ज्यादा पहले ही मानवीय सहायता पर निर्भर है। बेरोजगारी, आवास और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी ने हालात को और गंभीर बना दिया है।
इस्लाम काला में हर दिन 20,000 से 25,000 लोग सीमा पार कर रहे हैं। अफगान अधिकारियों और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां मदद करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन संसाधनों की भारी कमी है।
लोग घंटों कतार में खड़े होकर रजिस्ट्रेशन और थोड़ा-सा आपातकालीन नकद सहायता ले रहे हैं।

ईरान से निकाले गए लोगों में सैकड़ों नाबालिग बच्चे भी शामिल हैं।

अफगानिस्तान के सीमा पर इस्लाम काला में प्रोसेसिंग सेंटर है, जहां निकाले गए लोगों को रखा जा रहा है।
ईरान ने अफगानों को सिर्फ 10 इलाकों में रहने की इजाजत
ईरान में करीब 40 लाख अफगान शरणार्थी रहते हैं, जो दुनिया की सबसे बड़ी शरणार्थी आबादी में से एक है। ईरान का कहना है कि यह संख्या 60 लाख के करीब है।
ईरान ने अफगानों को केवल 10 प्रांतों में रहने और मेहनत-मजदूरी जैसे कम वेतन वाले काम करने की इजाजत दी है। ईरान की अपनी आर्थिक तंगी और प्राकृतिक संसाधनों की कमी के चलते सरकार का कहना है कि वह अब और शरणार्थियों को नहीं रख सकता।
पिछले महीने इजराइल के साथ युद्ध के बाद ईरान ने अफगानों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी। सुरक्षा बलों ने शहरों में छापेमारी की, चेक-पॉइंट लगाए और हजारों अफगानों को हिरासत में लेकर निर्वासन केंद्रों में भेजा।
ईरान ने 6 जुलाई तक देश छोड़ने को कहा था
ईरान ने मार्च में ऐलान किया था कि गैर-कानूनी अफगानों को देश छोड़ना होगा और 6 जुलाई तक की समय सीमा दी थी, लेकिन युद्ध के बाद यह कार्रवाई और तेज हो गई।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वैध दस्तावेज वाले अफगानों के कागजात फाड़कर उन्हें भी निर्वासित किया जा रहा है। 36 साल के अली ईरान में ही पैदा हुए और वैध निवासी थे, उन्होंने बताया कि एक चेकपॉइंट पर उनकी रेजिडेंसी कार्ड फाड़ दी गई और उन्हें निर्वासन शिविर में भेज दिया गया।
ईरान के आंतरिक मंत्री इस्कंदर मोमेनी ने दावा किया कि 2025 की शुरुआत से अब तक 8 लाख अफगान देश छोड़ चुके हैं, जिनमें 70% स्वेच्छा से गए।
सरकारी प्रवक्ता फातिमा मोहाजेरानी ने कहा कि अवैध अफगानों का जाना जनता की मांग है और यह आर्थिक व्यवस्था के लिए जरूरी है, क्योंकि ईरान में कई सेवाएं सब्सिडी पर दी जाती हैं।
ईरान से लौटने वाली महिलाओं का भविष्य खतरे में
अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना महिलाएं करती हैं। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान में लड़कियों की छठी कक्षा से ऊपर की पढ़ाई पर रोक है। वहीं, देश में बाल विवाह की घटनाएं बढ़ने के साथ उन्हें लेकर सामाजिक सहमति भी बनती जा रही है।
लड़कियों की शिक्षा और काम पर पाबंदी के चलते कई परिवार बेटियों को बोझ मानकर उनकी जल्दी शादी कर दे रहे हैं। UN वुमेन की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के महिला-विरोधी कानूनों के चलते देश में बाल विवाह में 25% और किशोरियों के गर्भधारण में 45% की वृद्धि हुई है।
तालिबान ने महिलाओं के लिए तेज आवाज में इबादत करने पर भी रोक लगा दी थी। अफगानिस्तान में महिलाओं के अकेले घूमने, गाड़ी चलाने, नौकरी करने और जिम जाने पर भी रोक है।

अफगानिस्तान में महिलाएं पढ़ने, अकेले घूमने, गाड़ी चलाने, नौकरी करने, जिम जाने जैसी चीजों पर रोक का सामना करती है।
UN- तालिबान सरकार शरणार्थियों को संभालने में सक्षम नहीं
अफगानों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ रही है। UN के मुताबिक तालिबान सरकार के पास इतनी बड़ी संख्या में लौटने वालों को संभालने की क्षमता नहीं है। अफगानिस्तान में पहले से ही विदेशी सहायता में कटौती हो चुकी है और 400 से ज्यादा स्वास्थ्य केंद्र बंद हो चुके हैं।
अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री मुहम्मद हसन अखुंद ने ईरान से निर्वासन में नरमी बरतने की अपील की है, ताकि दोनों देशों के बीच तनाव न बढ़े। संयुक्त राष्ट्र की माइग्रेशन एजेंसी की अफगानिस्तान निदेशक मिया पार्क ने कहा कि ईरान को अफगानों के साथ मानवीय और सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए।
पाकिस्तान से भी अफगानी नागरिकों की वापसी तेज
ईरान और पाकिस्तान से मिलाकर 2025 में अब तक 16 लाख अफगान वापस भेजे गए हैं। UNHCR को आशंका है कि यह आंकड़ा साल के अंत तक 30 लाख तक जा सकता है।
UNHCR अफगानिस्तान प्रतिनिधि अराफात जमाल के मुताबिक अफगानिस्तान इतने बड़े पलायन को संभालने के लिए तैयार नहीं है। वहां पर न रहने की जगह है, न रोजगार है, न ही सुरक्षा।
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