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आरती जेरथ राजनीतिक टिप्पणीकार
दिल्ली में 27 वर्षों के बाद भाजपा की सरकार बनी है, लेकिन इसका नेतृत्व करने के लिए एक महिला का चयन पार्टी के लिए बहुत सिर खपाने वाला नहीं रहा होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों और चुनाव अभियानों में महिला सशक्तीकरण या ‘नारी शक्ति’ 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही एक केंद्रीय थीम रही है।
दिल्ली चुनावों में भाजपा की जीत के साथ ही मोदी को अवसर मिल गया कि राजनीति में तेजी से महत्वपूर्ण होते जा रहे महिला मतदाता-वर्ग से अपना वादा पूरा कर सकें। मध्य वर्ग की बढ़ती आकांक्षाओं वाली दिल्ली में पहले ही तीन महिला मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। इनमें से एक-एक उन तीनों दलों से रही हैं, जिनका यहां की राजनीति पर दबदबा रहा है।
इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भाजपा आलाकमान ने दिल्ली के 48 विधायकों में से एक महिला को चुना, और प्रवेश वर्मा जैसे दिग्गज नेता को नजरअंदाज कर दिया, जिन्होंने आप के अरविंद केजरीवाल को उनके ही गढ़ में हराया था।
नवनियुक्त रेखा गुप्ता दिल्ली का नेतृत्व करने वाली चौथी महिला होंगी। उनके 50 वर्षीय कंधों पर (भारतीय राजनीतिक मानकों के हिसाब से युवा!) अपने पूर्ववर्तियों की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है, विशेष रूप से कांग्रेस की शीला दीक्षित की- जिनके 15 साल के शासन ने दिल्ली की सूरत बदल दी थी।
हालांकि उनके नाम का चयन करके भाजपा आलाकमान केवल महिला-वर्ग में अपनी पैठ ही नहीं बढ़ाना चाहता था। भाजपा कार्यकर्ताओं को भी उतना ही शक्तिशाली संदेश दिया गया है कि कड़ी मेहनत और समर्पण का फल अवश्य मिलता है।
रेखा गुप्ता ने एबीवीपी की छात्र-राजनीति से लेकर भाजपा महिला विंग में संगठनात्मक पदों पर रहते हुए, दिल्ली नगर निगम में तीन बार पार्षद और एक बार महापौर के रूप में काम करते हुए धीरे-धीरे शीर्ष तक तरक्की की है।
पार्टी आलाकमान के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वे अपने कार्यकर्ताओं को आश्वस्त करें कि अगर वो निर्विवाद निष्ठा के साथ सेवा करते हैं तो उन्हें पुरस्कार जरूर मिलेगा। यह लोकसभा चुनाव से सीखा गया सबक है, जिसमें भाजपा के औसत प्रदर्शन के लिए मुख्य रूप से कार्यकर्ताओं में बेचैनी और नाराजगी को जिम्मेदार ठहराया गया था। टिकट-वितरण और प्रतिद्वंद्वी दलों से हाल ही में शामिल हुए नेताओं को प्राथमिकता दिए जाने से कार्यकर्ता नाखुश था।
फिलहाल तो रेखा गुप्ता के सामने दो मोर्चों पर काम है। पहला, दिल्ली में चुनाव अभियान के दौरान भाजपा द्वारा किए सभी वादों को पूरा करना। इनमें से कई समस्याएं स्वच्छता, पेयजल, सीवेज, सड़क और ड्रेनेज जैसी नागरिक चुनौतियों से संबंधित हैं।
वहीं यमुना के पानी को साफ करने तथा भीषण वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पड़ोसी राज्यों के साथ ही केंद्र सरकार से सहयोग की भी आवश्यकता होगी। लेकिन दिल्ली का विकास बेतरतीब तरीके से हुआ है। रेखा गुप्ता को बेहतर शहरी नियोजन के लिए एक दृष्टिकोण विकसित करना होगा ताकि दिल्ली वास्तव में विकसित भारत की राजधानी जैसी बन सके।
रेखा के पास राजनीति में महिलाओं के भविष्य की पटकथा लिखने का अवसर है। यदि वे मुख्यमंत्री के रूप में अच्छा प्रदर्शन करती हैं, तो वे न केवल भाजपा बल्कि अन्य दलों में भी बदलाव की हवा ला सकती हैं। हाल में हुए तमाम चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि अब महिलाएं भारी तादाद में मतदान करने आ रही हैं और कई राज्यों में तो वे पुरुषों से भी आगे निकल रही हैं।
मतदान के बाद के अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि महिलाएं अब अपने परिवार के पुरुषों के निर्देशों को स्वीकार नहीं करते हुए अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट दे रही हैं। बेशक, भारत में महिलाओं का नेतृत्व कोई नई बात नहीं- महिला प्रधानमंत्री से लेकर कई राज्यों में ताकतवर महिला मुख्यमंत्री रही हैं।
अंतर यह है कि चाहे इंदिरा गांधी हों या जयललिता, मायावती या ममता बनर्जी, वे अपनी-अपनी पार्टियों का नेतृत्व भी करती थीं, जबकि भाजपा में नेतृत्व की कमान किसी महिला के हाथों में नहीं होने के बावजूद महिला नेत्रियों को निरंतर अवसर दिए जा रहे हैं।
रेखा गुप्ता के रूप में एक तुलनात्मक रूप से लो-प्रोफाइल नेता का चयन भाजपा के उस ट्रेंड के अनुरूप भी है, जिसके तहत हाल ही में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भजन लाल शर्मा, विष्णु देव साय और मोहन यादव का मुख्यमंत्री के रूप में चयन किया गया था। महिला राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू का नाम भी इसी कड़ी में लिया जा सकता है।
अब महिलाएं भारी तादाद में मतदान करने आ रही हैं और कई राज्यों में तो वे पुरुषों से भी आगे निकल रही हैं। वे अब अपने परिवार के पुरुषों के निर्देशों को स्वीकार नहीं करते हुए अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट भी दे रही हैं। (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)
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आरती जेरथ का कॉलम: अब महिला मतदाताओं पर है भाजपा का फोकस