आजादी के बाद भी मूलभूत सुविधाएं ‘बंधक’


गांव लूखी में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की जर्जर हालत।

गांव लूखी में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की जर्जर हालत।
– फोटो : Rewari

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कोसली। प्रदेश में जब स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र आता है तो जिले के गांव लूखी को सबसे पहले याद किया जाता है। स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान के बाद भी उनका गांव विकास की बाट जोह रहा है। 39 स्वतंत्रता सेनानियों वाला गांव आज भी सरकार और प्रशासन का दंश झेल रहा है। आजादी के बाद यहां मूलभूत सुविधाएं ‘बंधक’ हैं।
आलम यह है कि स्वतंत्रता सेनानियों की याद में बनवाए गए पार्क तक की सुध नहीं ली जा रही है। पार्क में बने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति के चारों तरफ बड़े झाड़ियाें ने कब्जा कर रखा है। गांव में पशु अस्पताल और पीएचसी तक नहीं होने से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 8 वर्ष पूर्व मुख्यमंत्री ने पशु अस्पताल शुरू करने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक यह सुविधा लोगों को नहीं मिली है। ग्रामीणों का कहना है कि 46 लोगों ने स्वतंत्र आंदोलन में भाग लिया था, लेकिन गांव में लगे पत्थर पर 39 लोगों के नाम अंकित है। उन्होंने बताया कि स्वतंत्र सेनानियों ने चंदा एकत्रित करके गांव की 1 कनाल पंचायत भूमि पर गत 24 दिसंबर 1998 को स्वतंत्रता सेनानियों ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस का स्मारक बनवाया हुआ है।
गांव में वह कुआं भी आज उसी हालत में संजो कर रखा है जिससे ग्रामीण महिलाएं आजादी के समय से नेजू डोल से पानी खींच कर पीते थे। पूर्व मंत्री की घोषणा के बाद भी ग्रामीणों को पेयजल आपूर्ति नहीं हो रही है। वर्ष 1938 -39 में देश की आजादी के लिए आंदोलन में भाग लेने के लिए गांव लूखी के करीब एक दर्जन ग्रामीण हैदराबाद के लिए रवाना हो गए गांव वासियों ने मान लिया था, कि वह जिंदा लौट कर नहीं आएंगे । हैदराबाद में इन ग्रामीणों को गिरफ्तार कर लिया गया तथा दो दो साल की सजा हो गई। दो माह बाद ही हैदराबाद के राजा निजाम ने अपने जन्मदिन पर इन्हें रिहा कर दिया।
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यह रहे स्वतंत्रता संघर्ष संग्राम के सिपाही:
गांव के रामजीलाल आजाद ,जगमाल, भूप सिंह, उमराव सिंह तुलाराम, चंदगी राम, रामजीलाल, जगराम, हरिराम, हरद्वारी लाल, सोहनलाल, तोखराम, चुन्नीलाल, रूपराम, भीमसेन, यशपाल, लाजपत राय, माडूराम, हरद्वारी लाल, धर्मचंद, खेमराम, धर्मेंद्र, देवदत्त, धर्मचंद, सुल्तान सिंह, मनोहर लाल, विखरम , जयपाल, रघुवीर सिंह, राम सिंह ,चिरंजीलाल, दीनदयाल, अमर सिंह धुरेंद्र सिंह, सुल्तान सिंह, बदलुराम ,बोहतराम, यादवेंद्र, अमर सिंह, भगवान सिंह, गोपाल, रतीराम, सोहनलाल, भानाराम ,मुरली राम, शिवलाल ने स्वतंत्रता संघर्ष में देश की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज में शामिल होकर नेताजी का सहयोग किया था।
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क्या कहना है गांव के प्रबुद्ध लोगों का :
– भले ही उनका गांव देश भर में स्वतन्त्रता सेनानियों के नाम पर जाना जाता है, लेकिन इसके बाद भी गांव में मूलभूत सुविधाएं नहीं है। सेवानिवृत्त मास्टर दयानंद, सेवानिवृत्त शिक्षक
-उनका गांव स्वतंत्रता सेनानियों के नाम से जाना जाता है । लेकिन गांव में ना स्वास्थ्य सेवाएं है ना ही पीने का पानी है । लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरह रहे हैं। -जगतवीर, पूर्व हेड शिक्षक
-गांव स्वतंत्रता सेनानियों के साथ-साथ प्रदेश में सबसे अधिक शिक्षक देने का गौरव प्राप्त किया हुआ हो, लेकिन गांव मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। सुशील कुमार, पूर्व हेड शिक्षक
– गांव देशभर में सबसे अधिक स्वतंत्रता सेनानी देने वाला गांव है। इसके साथ प्रदेश भर में सबसे अधिक शिक्षक दिए हैं। इस ऐतिहासिक गांव में लोगों को पीने तक का पानी मुहैया नहीं हो रहा है। सतीश प्रधान, लूखी गांव

कोसली। प्रदेश में जब स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र आता है तो जिले के गांव लूखी को सबसे पहले याद किया जाता है। स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान के बाद भी उनका गांव विकास की बाट जोह रहा है। 39 स्वतंत्रता सेनानियों वाला गांव आज भी सरकार और प्रशासन का दंश झेल रहा है। आजादी के बाद यहां मूलभूत सुविधाएं ‘बंधक’ हैं।

आलम यह है कि स्वतंत्रता सेनानियों की याद में बनवाए गए पार्क तक की सुध नहीं ली जा रही है। पार्क में बने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति के चारों तरफ बड़े झाड़ियाें ने कब्जा कर रखा है। गांव में पशु अस्पताल और पीएचसी तक नहीं होने से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 8 वर्ष पूर्व मुख्यमंत्री ने पशु अस्पताल शुरू करने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक यह सुविधा लोगों को नहीं मिली है। ग्रामीणों का कहना है कि 46 लोगों ने स्वतंत्र आंदोलन में भाग लिया था, लेकिन गांव में लगे पत्थर पर 39 लोगों के नाम अंकित है। उन्होंने बताया कि स्वतंत्र सेनानियों ने चंदा एकत्रित करके गांव की 1 कनाल पंचायत भूमि पर गत 24 दिसंबर 1998 को स्वतंत्रता सेनानियों ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस का स्मारक बनवाया हुआ है।

गांव में वह कुआं भी आज उसी हालत में संजो कर रखा है जिससे ग्रामीण महिलाएं आजादी के समय से नेजू डोल से पानी खींच कर पीते थे। पूर्व मंत्री की घोषणा के बाद भी ग्रामीणों को पेयजल आपूर्ति नहीं हो रही है। वर्ष 1938 -39 में देश की आजादी के लिए आंदोलन में भाग लेने के लिए गांव लूखी के करीब एक दर्जन ग्रामीण हैदराबाद के लिए रवाना हो गए गांव वासियों ने मान लिया था, कि वह जिंदा लौट कर नहीं आएंगे । हैदराबाद में इन ग्रामीणों को गिरफ्तार कर लिया गया तथा दो दो साल की सजा हो गई। दो माह बाद ही हैदराबाद के राजा निजाम ने अपने जन्मदिन पर इन्हें रिहा कर दिया।

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यह रहे स्वतंत्रता संघर्ष संग्राम के सिपाही:

गांव के रामजीलाल आजाद ,जगमाल, भूप सिंह, उमराव सिंह तुलाराम, चंदगी राम, रामजीलाल, जगराम, हरिराम, हरद्वारी लाल, सोहनलाल, तोखराम, चुन्नीलाल, रूपराम, भीमसेन, यशपाल, लाजपत राय, माडूराम, हरद्वारी लाल, धर्मचंद, खेमराम, धर्मेंद्र, देवदत्त, धर्मचंद, सुल्तान सिंह, मनोहर लाल, विखरम , जयपाल, रघुवीर सिंह, राम सिंह ,चिरंजीलाल, दीनदयाल, अमर सिंह धुरेंद्र सिंह, सुल्तान सिंह, बदलुराम ,बोहतराम, यादवेंद्र, अमर सिंह, भगवान सिंह, गोपाल, रतीराम, सोहनलाल, भानाराम ,मुरली राम, शिवलाल ने स्वतंत्रता संघर्ष में देश की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज में शामिल होकर नेताजी का सहयोग किया था।

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क्या कहना है गांव के प्रबुद्ध लोगों का :

– भले ही उनका गांव देश भर में स्वतन्त्रता सेनानियों के नाम पर जाना जाता है, लेकिन इसके बाद भी गांव में मूलभूत सुविधाएं नहीं है। सेवानिवृत्त मास्टर दयानंद, सेवानिवृत्त शिक्षक

-उनका गांव स्वतंत्रता सेनानियों के नाम से जाना जाता है । लेकिन गांव में ना स्वास्थ्य सेवाएं है ना ही पीने का पानी है । लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरह रहे हैं। -जगतवीर, पूर्व हेड शिक्षक

-गांव स्वतंत्रता सेनानियों के साथ-साथ प्रदेश में सबसे अधिक शिक्षक देने का गौरव प्राप्त किया हुआ हो, लेकिन गांव मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। सुशील कुमार, पूर्व हेड शिक्षक

– गांव देशभर में सबसे अधिक स्वतंत्रता सेनानी देने वाला गांव है। इसके साथ प्रदेश भर में सबसे अधिक शिक्षक दिए हैं। इस ऐतिहासिक गांव में लोगों को पीने तक का पानी मुहैया नहीं हो रहा है। सतीश प्रधान, लूखी गांव

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