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फरीदाबाद: अरावली की पहाड़ियों में स्थित कोट गांव के जंगलों में पाषाण काल के आदिमानवों की जीवनशैली के प्रमाण आज भी देखने को मिलते हैं. यहां आदिमानवों ने अपने दैनिक जीवन और कला के विकास के लिए ओखली का उपयोग शुरू किया. ओखली बनाने के लिए बलुआ पत्थर और गहरोक मिट्टी का उपयोग किया जाता था, जिसे जानवरों के खून के साथ मिलाकर पीसा जाता था. इन सामग्रियों का उपयोग गुफाओं में चित्र बनाने के लिए रंग तैयार करने में किया जाता था.
पुरातत्व विभाग से जुड़े तेजवीर मावी ने Local18 को बताया कि पाषाण काल में आदिमानवों ने अपनी कला को व्यक्त करने के लिए अनोखे तरीके अपनाए. बलुआ पत्थर और गहरोक मिट्टी के मिश्रण से तैयार रंगों का उपयोग करके उन्होंने गुफाओं में चित्र बनाए. इन चित्रों में जानवरों की आकृतियां और शिकार के दृश्य उकेरे गए थे. तेजवीर मावी ने बताया कि यहां अब तक करीब पांच ओखलियां खोजी गई हैं, जो रंग तैयार करने के लिए बनाई गई थीं.
जंगलों में मिली पाषाण काल की कलाकृति
इन ओखलियों के माध्यम से आदिमानव प्राकृतिक रंग तैयार करते थे. इस प्रक्रिया में पत्थरों के अंदर बनाई गई ओखलियों का विशेष योगदान था. इनसे प्राप्त रंगों का उपयोग गुफाओं में शिकार और सामाजिक जीवन से जुड़े चित्र बनाने में किया जाता था. विशेषज्ञों के अनुसार यह कला हजारों साल पुरानी है और पाषाण काल के आरंभिक चरणों की जानकारी प्रदान करती है.
इतिहास का अनमोल धरोहर
अरावली की पहाड़ियों में स्थित ये ओखलियां और गुफाचित्र इतिहास के महत्वपूर्ण अवशेष हैं. ये न केवल पाषाण काल की मानव सभ्यता के विकास को समझने में मदद करती हैं, बल्कि उस समय की कला, विज्ञान और तकनीकी क्षमता का भी परिचय कराती हैं. इन अवशेषों की डेटिंग कर उनके सही काल का निर्धारण किया जा सकता है, जिससे इतिहास की नई परतें खुल सकती हैं.
Tags: Faridabad News, Local18
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