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अमेरिकी विदेश मंत्री ने दक्षिण अफ्रीका G-20 का बायकॉट किया: कहा- वह देश बहुत बुरे काम कर रहा, प्राइवेट प्रॉपर्टी कब्जा रहा Today World News

अमेरिकी विदेश मंत्री ने दक्षिण अफ्रीका G-20 का बायकॉट किया:  कहा- वह देश बहुत बुरे काम कर रहा, प्राइवेट प्रॉपर्टी कब्जा रहा Today World News

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वॉशिंगटन9 मिनट पहले

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अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो का कहना है कि साउथ अफ्रीका के अमेरिका विरोधी रुख की वजह से यह फैसला ले रहे हैं।

अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने बुधवार को दक्षिण अफ्रीका में 20-21 फरवरी को आयोजित होने वाली G-20 समिट का बायकॉट किया है। मार्को रुबियो का कहना है कि वह साउथ अफ्रीका सरकार की भूमि अधिग्रहण नीतियां और अमेरिका विरोधी रुख की वजह से यह फैसला ले रहे हैं।

X पोस्ट में रुबियो ने कहा-

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मैं जोहान्सबर्ग में होने वाले G-20 शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लूंगा। दक्षिण अफ्रीका बहुत बुरे काम कर रहा है। प्राइवेट प्रॉपर्टी पर कब्जा कर रहा है। G-20 का इस्तेमाल एकजुटता, समानता और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए कर रहा है। दूसरे शब्दों में यह DEI और क्लाइमेट चेंज प्रोग्राम है।

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उन्होंने कहा कि मेरा काम अमेरिका के राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देना है न कि टैक्स देने वालों का पैसा बर्बाद करना और अमेरिका विरोधी भावना को बढ़ावा देना।

दक्षिण अफ्रीका दिसंबर 2024 से नवंबर 2025 तक G-20 की अध्यक्षता कर रहा है। इसी वजह से इस साल 20-21 फरवरी को जोहान्सबर्ग में जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा।

क्या है DEI प्रोग्राम

अमेरिका में विविधता, समानता और समावेशी (DEI) प्रोग्राम भेदभाव खत्म करने के लिए चलाया जाता था। इस प्रोग्राम का उद्देश्य महिला, अश्वेत, अल्पसंख्यक, LGBTQ+ और अन्य कम प्रतिनिधित्व वाले ग्रुप्स के लिए अवसरों को बढ़ावा देना था। ट्रम्प का कहना था कि यह प्रोग्राम गोरे अमेरिकी लोगों से भेदभाव करता है।

वहीं जलवायु परिवर्तन को ट्रम्प एक धोखा कह चुके हैं। उनका कहना है कि चीन बेरोकटोक प्रदूषण फैला रहा है, अमेरिका अपने उद्योगों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

अमेरिका में ब्लैक लोगों के साथ भेदभाव लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। हालांकि कुछ लोगों का आरोप है कि इस मुद्दे की आड़ में गोरे लोगों के अधिकारों की अनदेखी की जाती है।

अमेरिका में ब्लैक लोगों के साथ भेदभाव लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। हालांकि कुछ लोगों का आरोप है कि इस मुद्दे की आड़ में गोरे लोगों के अधिकारों की अनदेखी की जाती है।

ट्रम्प कर चुके हैं साउथ अफ्रीका की आलोचना

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी हाल ही में तरफ से साउथ अफ्रीका सरकार की भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर आलोचना की थी। दरअसल ट्रम्प ने आरोप लगाया था कि साउथ अफ्रीका की सरकार जबरदस्ती लोगों की जमीन पर कब्जा कर रही है और वहां कुछ चुनिंदा लोगों को परेशान कर रही है।

ट्रम्प ने सोशल मीडिया ट्रुथ पर लिखा-

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दक्षिण अफ्रीका सरकार लोगों की जमीन जब्त कर रही है और कुछ वर्गों के साथ बहुत बुरा व्यवहार कर रही है। अमेरिका इसे बर्दाश्त नहीं करेगा, हम कार्रवाई करेंगे। मैं मामले की जांच पूरी होने तक दक्षिण अफ्रीका को भविष्य में मिलने वाली सभी फंडिंग रोक दूंगा!

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दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद और भूमि अधिग्रहण लंबे समय से विवादित मुद्दा रहा है।

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद और भूमि अधिग्रहण लंबे समय से विवादित मुद्दा रहा है।

दक्षिण अफ्रीका बोला- मनमाने तरीके से जमीन जब्त नहीं होगी

रॉयटर्स के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने हाल ही में एक भूमि अधिग्रहण बिल पारित किया है। इस बिल में प्रावधान है कि सरकार सार्वजनिक हित में बिना किसी मुआवजे के लोगों की जमीन पर कब्जा कर सकती है।

वहीं दक्षिण अफ्रीकी सरकार का कहना था कि वो मनमाने तरीके से जमीन जब्त नहीं कर रही है, बल्कि इसके लिए पहले भूमि मालिकों से बात की जाएगी। दक्षिण अफ्रीका में भूमि सुधार और रंगभेद लंबे समय से विवादित मुद्दा बना हुआ है।

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा का कहना है कि जमीन अधिग्रहण से पहले किसानों से बात की जाएगी, मनमाने ढंग से जमीन अधिग्रहण नहीं होगा।

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा का कहना है कि जमीन अधिग्रहण से पहले किसानों से बात की जाएगी, मनमाने ढंग से जमीन अधिग्रहण नहीं होगा।

मस्क भी दे चुके हैं दक्षिण अफ्रीका को चेतावनी

रॉयटर्स के मुताबिक अमेरिका ने 2023 में दक्षिण अफ्रीका को स्वास्थ्य कार्यक्रमों, आर्थिक विकास और सुरक्षा सहयोग के लिए लगभग 3.82 हजार करोड़ रुपए की मदद दी थी। ट्रम्प के इस फैसले के बाद अब दक्षिण अफ्रीका को मिलने वाली फंडिंग जल्द रुक सकती है और अमेरिका सरकार मानवाधिकार उल्लंघनों के मामले की जांच भी कर सकती है।

डोनाल्ड ट्रम्प के सहयोगी और दक्षिण अफ्रीका में जन्मे अरबपति इलॉन मस्क ने चेतावनी दी है कि रामफोसा की इस पॉलिसी से वैसा ही असर हो सकता है जैसा 1980 के दशक में जिम्बाब्वे में भूमि जब्ती के बाद हुआ था। जिसे जिम्बाब्वे की आर्थिक बर्बादी का कारण माना जाता है।

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