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अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन 6 जनवरी को भारत आए थे। नई दिल्ली में विदेश मंत्री एस जयशंकर से उनकी मुलाकात हुई थी।
अमेरिका ने बुधवार को 3 भारतीय परमाणु संस्थाओं पर 20 साल से लगा प्रतिबंध हटाया। इसमें भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR) और इंडियन रेयर अर्थ (IRE) के नाम हैं।
वहीं, अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चाइना की 11 संस्थाओं को प्रतिबंध की लिस्ट में जोड़ा है। यूनाइटेड स्टेट्स ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्री एंड सिक्योरिटी (BIS) ने इसकी पुष्टि की है।
अमेरिका का फैसला अमेरिकी NSA जेक सुलिवन के 6 जनवरी के हुए भारत दौरे के बाद आया। सुलिवन ने दिल्ली आईआईटी में कहा था कि अमेरिका उन नियमों को हटाएगा जो भारतीय परमाणु संस्थाओं और अमेरिकी कंपनियों के बीच सहयोग में बाधा डाल रहे हैं।
उन्होंने कहा था कि लगभग 20 साल पहले पूर्व राष्ट्रपति बुश और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने परमाणु समझौते की एक दूरदर्शी सोच की नींव रखी थी, जिसे हमें अब पूरी तरह हकीकत बनाना है।
दरअसल, भारत ने 11-13 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण किए थे। इस परीक्षण को ऑपरेशन शक्ति के नाम से जाना गया था। इन परीक्षण के कारण कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। अमेरिका ने तब 200 से अधिक भारतीय संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिए।
अमेरिका NSA जैक सुलिवान ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से दिल्ली में मुलाकात की थी।
मनमोहन सरकार में हुआ था ऐतिहासिक समझौता जुलाई 2005 में मनमोहन सिंह ने अमेरिका का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को एक परमाणु करार पर सहमत कराया। हालांकि इसके लिए अमेरिका ने भारत से 2 शर्तें रखी थीं।
पहली- भारत अपनी सैन्य और नागरिक परमाणु गतिविधियों को अलग-अलग रखेगा। दूसरी- परमाणु तकनीक और सामग्री दिए जाने के बाद भारत के परमाणु केंद्रों की निगरानी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) करेगा।
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश।
भारत दोनों शर्तों से सहमत हो गया। इसके बाद मार्च 2006 में अमेरिकी राष्ट्रपति भारत दौरे पर आए। इसी दौरे में भारत और अमेरिका के बीच ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
हालांकि विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध कर दिया था। लेफ्ट पार्टियों का कहना था कि इस समझौते का भारत की विदेश नीति पर असर पड़ेगा।
लेफ्ट पार्टियों के समर्थन वापस लेने के बाद मनमोहन सिंह ने संसद में बहुमत साबित किया। इसके बाद 8 अक्टूबर 2008 को अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने इस समझौते पर दस्तखत कर आखिरी औपचारिकता पूरी कर दी।
हालांकि इस डील के दौरान जो नए रिएक्टर लगाने को लेकर समझौते हुए थे, अब तक नहीं लग पाए हैं। हालांकि, इस डील का भारत को फायदा ये हुआ कि उसने लिए दुनियाभर का परमाणु बाजार खुल गया।
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