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अमेरिका-ईरान आज रोम में न्यूक्लियर डील पर बात करेंगे: ईरान मंत्री बोले- हमें अमेरिका के इरादों पर शक, फिर भी बातचीत करेंगे Today World News

अमेरिका-ईरान आज रोम में न्यूक्लियर डील पर बात करेंगे:  ईरान मंत्री बोले- हमें अमेरिका के इरादों पर शक, फिर भी बातचीत करेंगे Today World News

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रोम14 मिनट पहले

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अमेरिका और ईरान के बीच आज इटली की राजधानी रोम में न्यूक्लियर डील पर बात होगी। इस बातचीत में अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकॉफ और ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराकची शामिल होंगे। दोनों के बीच डील पर बातचीत का यह दूसरा फेज है।

इससे पहले ईरानी विदेश मंत्री अराकची ने गुरुवार को रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से बात की। इस दौरान अराकची ने कहा कि अमेरिका के इरादों पर भरोसा नहीं है लेकिन फिर भी बातचीत करेंगे।

अमेरिका और ईरान के बीच 12 अप्रैल को दोनों देशों के ओमान में बीच पहली बातचीत हुई थी। इसकी मध्यस्थता ओमान के विदेश मंत्री बदर अल-बुसैदी ने की थी। यह दोनों देशों में एक दशक के बाद न्यूक्लियर डील पर होने वाली पहली आधिकारिक बातचीत थी।

इसमें अराकची और विटकॉफ ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम और ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाने से संबंधित मुद्दों पर बात की।

इसमें अराकची और विटकॉफ ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम और ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाने से संबंधित मुद्दों पर बात की।

ईरान को न्यूक्लियर प्रोग्राम छोड़ने की चेतावनी दे चुके हैं ट्रम्प

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ईरान को न्यूक्लियर प्रोग्राम नहीं छोड़ने पर खामियाजा भुगतने की धमकी दे चुके हैं। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लीविट के मुताबिक ट्रम्प की प्राथमिकता है कि ईरान कभी परमाणु हथियार हासिल न कर सके।

लीविट ने पिछले हफ्ते एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान बताया कि राष्ट्रपति ट्रम्प पहले भी साफ कर चुके हैं कि इस मामले में सभी विकल्प खुले हैं। ईरान के पास दो विकल्प हैं- या तो ट्रम्प की मांगों को माने, या गंभीर परिणाम भुगतने को तैयार रहे। यही इस मुद्दे पर ट्रम्प की दृढ़ भावना है।

ट्रम्प की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने शनिवार को कहा कि ईरान को ट्रम्प की बातें माननी पड़ेंगीं या परिणाम भुगतना पड़ेगा।

ट्रम्प की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने शनिवार को कहा कि ईरान को ट्रम्प की बातें माननी पड़ेंगीं या परिणाम भुगतना पड़ेगा।

ट्रम्प ने ईरान को दी 60 दिनों की मोहलत

पॉलिटिको की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रम्प ने ईरान को एक नई परमाणु डील पर सहमति के लिए 60 दिनों का समय दिया है, नहीं तो सैन्य कार्रवाई की चेतावनी दी है। यह चेतावनी एक चिट्‌ठी के जरिए ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को भेजी गई।

इस पत्र में साफ तौर पर कहा गया कि तेहरान को वाशिंगटन के साथ बातचीत के लिए तैयार रहना होगा, चाहे यह बातचीत सीधे ही क्यों न हो। नहीं तो ऐसे परिणाम भुगतने होंगे जो ईरानी सरकार की स्थिरता को खतरे में डाल सकते हैं।

ईरान पर बमबारी करने की धमकी दे चुके हैं ट्रम्प

इससे पहले 30 मार्च को ट्रम्प ने ईरान को धमकी दी थी कि अगर वह अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम पर किसी समझौते पर नहीं पहुंचता तो अमेरिका उस पर बमबारी कर सकता है। ट्रम्प ने ईरान पर सेकेंडरी टैरिफ लगाने की भी धमकी दी।

ट्रम्प ने NBC न्यूज को दिए इंटरव्यू में कहा,

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अगर वे कोई डील नहीं करते हैं तो बमबारी होगी। यह ऐसी बमबारी होगी, जैसी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी होगी।

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ट्रम्प ने आगे कहा- ईरान के पास एक मौका है, अगर वे ऐसा नहीं करते तो मैं उनपर 4 साल पहले की तरह सेकेंडरी टैरिफ लगाऊंगा। न्यूक्लियर प्रोग्राम पर अमेरिकी और ईरानी अधिकारी बातचीत कर रहे हैं। हालांकि, उन्होंने इस बारे में विस्तार से नहीं बताया।

ईरान के पास 6 परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त यूरेनियम

2018 में ट्रम्प के ईरान से ‎परमाणु करार रद्द करने के बाद ईरान की बम ‎बनाने की क्षमता में इजाफा हुआ है। अंतरराष्ट्रीय‎ परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अनुसार ईरान ने 60%‎ शुद्धता का 275 किलो यूरेनियम बना लिया है। ‎यह छह परमाणु बम बनाने के लिए काफी है।

‎अगर अमेरिका-ईरान के बीच कोई समझौता नहीं‎ होता है तो इस साल के अंत तक अमेरिका या‎ इजराइल या दोनों ईरान के परमाणु ठिकानों पर ‎बमबारी का फैसला ले सकते हैं। अमेरिकी, ‎इजराइली और अरब सूत्रों का कहना है कि ट्रम्प‎ कुछ माह तक बातचीत की प्रक्रिया जारी रखेंगे।‎

ट्रम्प ने नेतन्याहू को गड़बड़ न करने की चेतावनी दी

एक इजराइली सूत्र ने द इकोनॉमिस्ट से कहा कि ट्रम्प ने नेतन्याहू को अमेरिका-ईरान न्यूक्लियर डील पर बातचीत के दौरान कोई गड़बड़ी न करने की चेतावनी दी है। इजराइल ने अक्टूबर में‎ ईरानी मिसाइल हमले के जवाब में उसके एयर‎डिफेंस नेटवर्क को तबाह कर दिया था।

एक‎ इजराइली सैनिक अधिकारी ने कहा कि ईरान ‎इस समय बहुत ज्यादा कमजोर है। पहले नेतन्याहू ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले ‎का आदेश देने से हिचक रहे थे। अब ट्रम्प को ‎‎छोड़कर उनके पास पीछे हटने का कोई कारण ‎नहीं है।

इजराइली प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक तौर‎ पर दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपतियों की मर्जी के ‎खिलाफ जाकर देश में लोकप्रियता हासिल की‎ है। लेकिन ट्रम्प की इच्छा के खिलाफ जाना बेहद ‎मुश्किल है।‎

चार बड़े घटनाक्रमों से समझिए…आखिर ये दोनों देश झगड़ते क्यों रहते हैं?

1953 – तख्तापलट : यह वो साल था, जब अमेरिका-ईरान के बीच दुश्मनी की शुरुआत हुई। अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान में तख्तापलट करवाया। निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसाद्दिक को हटाकर ईरान के शाह रजा पहलवी के हाथ में सत्ता दे दी गई। इसकी मुख्य वजह था-तेल। मोसाद्दिक तेल के उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे।

1979 – ईरानी क्रांति : ईरान में एक नया नेता उभरा-आयतोल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी। खुमैनी पश्चिमीकरण और अमेरिका पर ईरान की निर्भरता के सख्त खिलाफ थे। शाह पहलवी उनके निशाने पर थे। खुमैनी के नेतृत्व में ईरान में असंतोष उपजने लगा। शाह को ईरान छोड़ना पड़ा। 1 फरवरी 1979 को खुमैनी निर्वासन से लौट आए।

1979-81 – दूतावास संकट : ईरान और अमेरिका के राजनयिक संबंध खत्म हो चुके थे। तेहरान में ईरानी छात्रों ने अमेरिकी दूतावास को अपने कब्जे में ले लिया। 52 अमेरिकी नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया। 2012 में इस विषय पर हॉलीवुड फिल्म-आर्गो आई। इसी बीच इराक ने अमेरिका की मदद से ईरान पर हमला कर दिया। युद्ध आठ साल चला।

2015 – परमाणु समझौता : ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति रहते समय दोनों देशों के संबंध थोड़ा सुधरने शुरू हुए। ईरान के साथ परमाणु समझौता हुआ, जिसमें ईरान ने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने की बात की। इसके बदले उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में थोड़ी ढील दी गई थी, लेकिन ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद यह समझौता रद्द कर दिया। दुश्मनी फिर शुरू हो गई।

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