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अभिजीत मित्रा अय्यर का कॉलम: पाकिस्तान की कमजोरियां बलूचों ने उजागर कर दी हैं Politics & News

अभिजीत मित्रा अय्यर का कॉलम:  पाकिस्तान की कमजोरियां बलूचों ने उजागर कर दी हैं Politics & News

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2 घंटे पहले

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अभिजीत मित्रा अय्यर सीनियर फेलो, आईपीसीएस

पाकिस्तान में जाफर एक्सप्रेस की हाईजैकिंग के निहितार्थ काफी महत्वपूर्ण हैं। पाकिस्तान में इस तरह के अपहरण नई बात नहीं हैं। बलूच विद्रोहियों ने अतीत में पाकिस्तानी फौज के कई महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों पर कब्जा किया है और 1998 में पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस की उड़ान 544 को भी कुछ समय के लिए अपहृत कर लिया था।

क्वेटा और पेशावर के बीच 1600 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली जाफर एक्सप्रेस नामक ट्रेन के मामले में हम कभी नहीं जान पाएंगे कि कितने बंधकों को विद्रोहियों ने मारा या वे बचाव अभियान के दौरान फौज के हाथों मारे गए। अपहर्ताओं के लिए किसी ट्रेन को हाईजैक करने के कई नफे-नुकसान हैं। उनके लिए सबसे बड़ा फायदा यह है कि ट्रेन में विमान से कई गुना अधिक लोग सवार होते हैं।

लेकिन इसका नकारात्मक पहलू उनके लिए यह है कि दक्षिण एशिया में ट्रेन का उपयोग करने वाले अधिकांश लोग विमान का उपयोग करने वाले लोगों की तुलना में कम महत्वपूर्ण और गरीब होते हैं। दूसरे शब्दों में उनका जीवन राज्यसत्ता के लिए इतना महत्वपूर्ण नहीं होता। इसके अलावा, जहां विमानों को आसानी से अपहृत करके देश के बाहर ले जाया जा सकता है, वहीं ऐसा ट्रेन के साथ नहीं किया जा सकता।

नतीजतन, ट्रेन-अपहरण हमेशा सरकार के पक्ष में ज्यादा होगा, जबकि विमान अपहरण में लगभग हमेशा अपहरणकर्ताओं का पक्ष मजबूत होता है। भारतीय विमानों के कम से कम 6 अपहरणों के लिए पाकिस्तानी नागरिक जिम्मेदार माने गए थे और उन्हें पाकिस्तान में नायक और स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया जाता है। ऐसे में अब पाकिस्तानी बलूच विद्रोहियों को कैसे आतंकवादी करार दे सकते हैं?

सामरिक रूप से यह घटना उनके लिए एक दुःस्वप्न है। पाकिस्तान की लंबी रेलवे पटरियां अत्यंत शुष्क, निर्जन और दुर्गम इलाकों से होकर गुजरती हैं, जिनकी चौबीसों घंटे और पूरी दूरी तक रखवाली करना असंभव है। इसके अलावा, भारत में जहां रेलवे स्मॉल-डायमंड पैटर्न में पूरे देश से होकर गुजरती हैं, वहीं पाकिस्तान रेलवे के पास उत्तर में पेशावर से दक्षिण में कराची तक चलने वाली केवल एक मुख्य उत्तर-दक्षिण धुरी है। यह एकमात्र ऐसी लाइन है, जहां ट्रेनें दोनों दिशाओं में यात्रा कर सकती हैं।

असल में अगर आप क्वेटा से पेशावर जाना चाहते हैं तो आपको पहले लगभग 700 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में रोहड़ी जाना होगा, फिर उत्तर की ओर पेशावर जाना होगा। इसका मतलब है कि बलूच विद्रोहियों के पास न केवल क्वेटा को काटने, बल्कि बेहतर रसद के साथ पाकिस्तान की उत्तर-दक्षिण धुरी को गंभीर रूप से बाधित करने के कई विकल्प हैं।

यही कारण है कि इस हाईजैकिंग ने अफगान तालिबान और बलूच विद्रोहियों- दोनों को पाकिस्तान की एक बड़ी कमजोरी दिखा दी है। इसकी मरम्मत करने के लिए पाकिस्तान सरकार को भारी निवेश करना होगा। अनुमान है कि इस घटना में 200 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि तालिबान और बलूची जितनी ज्यादा रेलगाड़ियों को रोकने में सफल होंगे, पाकिस्तानी सेना की प्रतिक्रिया उतनी ही घातक होगी।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वही सेना है जिसने बांग्लादेश में नरसंहार किया था और जो 2015 तक बलूच विद्रोह के जवाब में बलूच गांवों को जलाने के लिए एफ-16 लड़ाकू विमानों और 1000 किलोग्राम के बमों का इस्तेमाल कर रही थी। दु:खद हकीकत यह है कि ये बलूच लोग ही अब पाकिस्तानी फौज की नाकामी और बलूच विद्रोहियों के दु:साहस की कीमत चुकाएंगे।

दिलचस्प बात यह है कि बलूच विद्रोही नेतृत्व का बड़ा हिस्सा अफगानिस्तान में है। अगर रिपोर्टों पर यकीन किया जाए तो अफगानिस्तान में रहने वाला उमर मजीद इस पूरे ऑपरेशन का को-ऑर्डिनेशन कर रहा था। जहां बलूचों का दावा है कि यह बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सैन्य अभियानों का प्रतिशोध था, वहीं यह भी संभव है कि अफगान तालिबान ने हाल ही में संभवतः आईएसआई द्वारा अपने नेताओं की हत्याओं के जवाब में इस ऑपरेशन का समर्थन किया हो।

क्या इसका मतलब यह है कि भविष्य में पाकिस्तान के जवाबी हमले सिर्फ बलूच नागरिकों को ही नहीं, बल्कि अफगानिस्तान को भी सीमा पार से निशाना बनाएंगे और एक बड़े युद्ध को जन्म देंगे? यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि क्वेटा वास्तव में बलूच बहुसंख्यक नहीं पश्तून बहुसंख्यक है और कई पश्तून खुले तौर पर पाकिस्तान की अफगानिस्तान से सहभागिता के खिलाफ हैं।

  • पाकिस्तान में रेलगाड़ी की हाईजैकिंग ने अफगान तालिबान और बलूच विद्रोहियों- दोनों को पाकिस्तान की एक बड़ी कमजोरी दिखा दी है। इसकी मरम्मत करने के लिए पाकिस्तान सरकार को भारी निवेश करना होगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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