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- Abhijit Mitra Iyer’s Column Trump’s Focus Will Be On China Instead Of Europe And Ukraine
अभिजीत अय्यर मित्रा,सीनियर फेलो, आईपीसीएस
क्या यूक्रेन युद्ध खत्म होने की ओर अग्रसर है? पता नहीं। लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प ने वह जरूर हासिल कर लिया है, जो बाइडेन नहीं कर सके थे- पुतिन के साथ एक वर्किंग रिलेशनशिप। दोनों नेताओं के बीच फोन पर हुई बातचीत के बाद पुतिन ने ट्रम्प से अपने रिश्ते को ‘विश्वास से भरा’ बताया।
वे ऐसा बाइडेन या ओबामा या बुश के बारे में नहीं कह सकते थे। लेकिन इसके बावजूद शांति प्राप्त करना आसान नहीं है- इसका सीधा-सा कारण यह है कि यह यूक्रेन और रूस दोनों के लिए अस्तित्व का संघर्ष है और कम से कम एक पक्ष के लिए विनाशकारी परिणाम होंगे।
यहां समस्या यह है कि युद्ध के समापन के लिए रूस की न्यूनतम मांग यह है कि चार यूक्रेनी प्रांतों को वह हथिया ले : लुगांस्क, डोनेट्स्क, खेरसॉन और ज़ापोरोझिया। यह यूक्रेन का लगभग एक चौथाई हिस्सा हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि चार अन्य प्रांतों- दनीपरपेत्रोव्स्क, खार्किव, मिकोलायेव और ओडेसा में रूसी लोग बहुसंख्या में हैं।
ऐसे में रूस संभवतः यूक्रेन के लगभग आधे हिस्से की मांग करेगा- खासकर यदि वर्तमान यूक्रेनी राष्ट्रवादी सरकार जारी रहती है तो। दूसरी बड़ी मांग यह है कि यूक्रेन औपचारिक रूप से नाटो में शामिल होने का इरादा छोड़ दे।
इसके पीछे रूसी सोच स्पष्ट है- या तो यूक्रेन रूसी भाषा और उसके लोगों की यूक्रेन में केंद्रीयता को स्वीकार कर ले, या फिर रूसी बहुल क्षेत्रों को यूक्रेन से अलग होना पड़ेगा। रूस नहीं चाहता कि उसके लोग यूक्रेन में यूक्रेनी राष्ट्रवादियों के वीटो के अधीन दूसरे दर्जे के नागरिक बनकर रहें। साथ ही वो यह भी नहीं चाहता कि नाटो पूर्व की ओर आगे बढ़ सके।
तो अगर आप यूक्रेनी हैं, तो आपके सामने यही विकल्प रह जाते हैं कि या तो वे अपने देश का एक बड़ा हिस्सा खो दें, या एक यूक्रेनी जातीय पहचान बनाने की क्षमता गंवा दें या अपनी बाह्य सुरक्षा पर से उनका नियंत्रण स्थायी रूप से समाप्त हो जाए। लेकिन जेलेंस्की और उनके यूक्रेनी राष्ट्रवादियों के समूह के लिए इसकी कीमत और अधिक है।
उन्हें अपने देशवासियों को यह समझाने में बहुत मुश्किलें आएंगी कि युद्ध में हजारों जानें क्यों गईं और लाखों लोगों को क्यों विस्थापित होना पड़ा, जब वे पहले भी इन शर्तों पर सहमत हो सकते थे। संक्षेप में कहें तो यह यूक्रेन की गठबंधन सरकार के लिए राजनीतिक आत्महत्या होगी।

हालांकि इस कहानी में असली खलनायक तो यूरोप है। नॉर्वे, पोलैंड, लाटविया, लिथुआनिया और एस्टोनिया- ये पांच नाटो देश रूस के साथ लगभग 1300 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं। उनके बीच कोई बफर जोन नहीं है।
उनके लिए यह महत्वपूर्ण है कि नाटो की सीमा का विस्तार किया जाए, ताकि यदि कभी नाटो और रूस के बीच युद्ध छिड़ जाए तो रूस केवल उन पर ही ध्यान केंद्रित न करे। पिछले वर्ष फिनलैंड भी नाटो में शामिल हो गया, जिससे नाटो-रूस सीमा में और 1340 किलोमीटर की वृद्धि हो गई।
अब यदि यूक्रेन भी नाटो में शामिल हो जाता है तो इससे रूस से सटी नाटो सीमा का विस्तार 2000 किलोमीटर और हो जाएगा और रूस के लिए खतरा और बढ़ जाएगा। जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों के लिए इसका अर्थ होगा कई हजार अतिरिक्त वर्ग-किलोमीटर का बफर जोन।
ये सभी देश यूरोप के विशाल उत्तरी मैदानों पर स्थित हैं। हंगरी और स्लोवाकिया इस बफर जोन के विस्तार का विरोध करते हैं, क्योंकि वे उत्तरी मैदानों पर स्थित नहीं हैं और कार्पेथियन और टाट्रा पहाड़ों के कारण रूसी आक्रमण से सुरक्षित हैं।
उत्तरी क्षेत्र के शक्तिशाली स्कैंडिनेवियाई देश, जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड रूस की शर्तों पर निर्मित होने वाली शांति से सबसे अधिक खतरा महसूस करेंगे, जो रूसी खतरे को उत्तरी मैदानों पर केंद्रित रखेगी। इन देशों ने यूक्रेन को हथियार उपलब्ध नहीं कराए, लेकिन युद्ध जारी रखने के लिए पर्याप्त समर्थन दिया, ताकि रूस को ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो। यह ऐसी बात नहीं, जिसे रूस माफ कर देगा।
पिछले 30 वर्षों से अमेरिकी प्रशासन यूरोप के साथ कदम से कदम मिलाकर चलता रहा है। लेकिन ट्रम्प नहीं। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वे न तो रूस को दुश्मन मानते हैं, और न ही यूरोप को महत्व देते हैं। उनका ध्यान चीन के खतरे पर ज्यादा केंद्रित है। इसके अलावा, ट्रम्प रूस को एक ऐसे साझेदार के रूप में देखते हैं, जो चीन को नियंत्रित करता है।
यूक्रेन को वे बेकार का ध्यान भटकाने वाला मुद्दा मानते हैं। यूक्रेन की सरकार ने 2016 से 2020 तक ट्रम्प पर रूस से मिलीभगत के आरोप लगाकर उन्हें कमजोर करने की साजिश रची थी, जिससे वे यूक्रेन के प्रति और नकारात्मक हो गए हैं। बहुत सम्भव है कि वे रूस से लड़ाई में यूक्रेन को अकेला छोड़ देंगे। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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अभिजीत मित्रा अय्यर का कॉलम: ट्रम्प का फोकस यूरोप और यूक्रेन के बजाय चीन पर रहेगा