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- Abhijit Iyer Mitra’s Column How Uncontrollable The Situation Will Become Depends On Iran
अभिजीत अय्यर मित्रा,सीनियर फेलो, आईपीसीएस
ईरान ने युद्धनीति के एक महत्वपूर्ण सिद्धांत का उल्लंघन किया- यह कि खेल में कभी भी सीधे तौर पर शामिल न हों। अगर हम इजराइल द्वारा अब तक किए हमलों को देखें, चाहे वह तेहरान में हमास नेता इस्माइल हनीये की हत्या हो या लेबनान में पेजर और वॉकी-टॉकी विस्फोट- तो इजराइल ने इनमें से किसी की जिम्मेदारी नहीं ली है। खेल के नियम यही कहते हैं कि फुल-स्केल युद्ध से बचने के लिए अप्रमाणित हमलों का जवाब भी अप्रमाणित तरीकों से ही दिया जाता है।
तो फिर ईरान को नियम तोड़कर इजराइल पर बड़ा हमला करने की जरूरत क्यों महसूस हुई? इसका कारण उसकी घबराहट है। हमले की स्थिति में पहला कदम यह उठाया जाता है कि नेतृत्व को तितर-बितर कर दिया जाए। यही कारण है कि जब 9/11 हुआ, तो राष्ट्रपति बुश को एक अलग स्थान पर ले जाया गया, उपराष्ट्रपति चेनी को अलग स्थान पर और मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों को विभिन्न स्थानों पर।
ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सभी एक साथ हमले की चपेट में न आएं। लेकिन 17 सितम्बर को जब लेबनान में लगभग 5000 पेजर एक साथ फटे तो हिजबुल्ला ने अगले ही दिन सामूहिक कफन-दफन किया, जहां उनके सुरक्षा बल और नेता इकट्ठे हुए। इस बार वॉकी-टॉकी में विस्फोट की घटना हुई और हिजबुल्ला के कुछ और सदस्य मारे गए।
कोई भी सोच सकता था कि अब तो हिजबुल्ला अपने नेताओं को एक जगह इकट्ठा करने से परहेज करेगा? लेकिन नहीं। उन्होंने अपनी एलीट स्पेशल मिशन फोर्स रिदवान के पूरे नेतृत्व को एक कमरे में इकट्ठा किया, जिस पर तुरंत एक इजराइली विमान ने बमबारी की और सभी को मार डाला। इसके बावजूद हसन नसरल्ला सहित पूरे हाईकमान की एक बैठक बुलाई गई और उस बैठक पर भी बम से हमला कर दिया गया, जिसमें नसरल्ला की मौत हो गई।
यह तथ्य कि ईरान को खुलेआम इजराइल पर हमला करना पड़ा, ये बताता है कि हिजबुल्ला की क्षमता इतनी कम हो गई थी कि ईरान को दखल देने के लिए मजबूर होना पड़ा। इजराइल यही चाहता था ताकि उसे ईरान पर सीधे हमला करने के लिए ठोस बहाना मिल जाए। तो अब इजराइल क्या करेगा?
शुरू में इजराइली नेतृत्व ने संकेत दिया कि वह ईरान के परमाणु-केंद्रों पर हमला करने जा रहा है। लेकिन अमेरिकी दबाव में अब वह उसके तेल-केंद्रों सहित उसके नेतृत्व पर निशाना साधने की योजना बना रहा है। इजराइल ने यह भी कहा है कि अगर जवाबी हमला होता है तो परमाणु-प्रतिष्ठानों पर बमबारी की जाएगी। यह लड़ाई को बढ़ाने का जिम्मा ईरान पर डाल देना है। ईरान को सार्वजनिक रूप से बता दिया गया है कि उसके परमाणु-प्रतिष्ठान निशाने पर हैं।

ऐसा करने के लिए तीन रास्तों पर बातचीत की जा रही है। पहला यह कि सभी इजराइली पनडुब्बियां अब अरब सागर की ओर जा रही हैं। दूसरा, सऊदी और अमीरात के साथ उनकी हवाई सीमा और संभवत: उनके ईंधन भरने वाले विमानों के इस्तेमाल के लिए बातचीत की जा रही है।
यहां चिंता यह थी कि ईरान इसे सऊदी-अमीरात-इजराइल का संयुक्त हमला समझेगा और बदले में दोनों अरब देशों पर हमला करेगा। इससे बचने के लिए तीसरा रास्ता साफ किया जा रहा है- सीरियाई हवाई क्षेत्र। इजराइली वायुसेना के जेट-विमान पूरे दक्षिणी सीरिया में सीरियाई हवाई सुरक्षा को नष्ट कर रहे हैं। इराकी सुरक्षा को गंभीर नहीं माना जाता है और इसलिए उसे नुकसान नहीं पहुंचाया गया है, भले ही हमला संभवतः इराकी क्षेत्र से होकर गुजरेगा और फिर सऊदी अरब के ऊपर से होते हुए घर वापस लौटेगा।
युद्ध से तेल की कीमतों को झटका लगभग तय है। लेकिन यूक्रेन युद्ध शुरू होने की तरह यह दौर एक-दो महीने चलेगा और फिर कम हो जाएगा। असली वृद्धि तब होगी, जब ईरान जवाबी हमला करने का विकल्प चुनेगा। ईरान के लंबी दूरी के हमले ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाते हैं। लेकिन अगर इजराइल ईरान के परमाणु-संयंत्रों पर हमला करता है, तो इसका मतलब मध्य-पूर्व में भारी रेडिएशन होगा, जो चेर्नोबिल से कहीं अधिक होगा। लेकिन इसका मतलब ईरान के परमाणु-कार्यक्रम का अंत भी होगा।
दूसरी ओर, हमले से बचने वाले वैज्ञानिकों और सामग्रियों का इस्तेमाल तेजी से हथियार बनाने के लिए किया जा सकता है और रूस या चीन की मदद के कुछ ही महीनों के भीतर ईरान खुद को परमाणु-शक्ति घोषित कर सकता है।
पश्चिम ने रूस को जिस तरह से अलग-थलग कर दिया है, उसे देखते हुए रूसी इस अवसर को जाने नहीं देंगे। चीजें किस हद तक बेकाबू होंगी, यह ईरान पर निर्भर करता है। लेकिन घबराहट में लोग समझदारी भरे फैसले अमूमन नहीं लेते!
ईरान के लंबी दूरी के हमले ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाते। पर यदि इजराइल ईरान के परमाणु-संयंत्रों पर हमला करता है, तो इसका मतलब मध्य-पूर्व में भारी रेडिएशन होगा। यह ईरान के परमाणु-कार्यक्रम का अंत भी होगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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अभिजीत अय्यर मित्रा का कॉलम: हालात कितने बेकाबू होंगे, यह ईरान पर निर्भर करता है