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अभय कुमार दुबे का कॉलम: नौकरीपेशा मध्यवर्गीय वोटरों की आवाज मायने रखती है Politics & News

अभय कुमार दुबे का कॉलम:  नौकरीपेशा मध्यवर्गीय वोटरों की आवाज मायने रखती है Politics & News

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4 घंटे पहले

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अभय कुमार दुबे, अम्बेडकर विवि, दिल्ली में प्रोफेसर

चुनाव परिणामों की कोई भी समीक्षा मतदाताओं के विशिष्ट चरित्र पर रोशनी डाले बिना नहीं की जा सकती। देश के पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के मुताबिक प्रत्येक 100 लोगों की आबादी पर हमारे यहां 22 लोग ही ऐसे हैं, जिन्हें नियमित वेतन मिलता है। लेकिन दिल्ली इसका अपवाद है।

यहां हर 100 पर 56 वेतनभोगी हैं- फिर चाहे वे निजी कंपनियों में काम करते हों, सरकारी विभागों में या स्कूल-कॉलेजों में। यह है दिल्ली का खाता-पीता मध्यवर्ग। (देश में 13 करोड़ वेतनभोगी हैं, जिनका चौथाई हिस्सा दिल्ली में रहता है!) इस आबादी में देश के मुकाबले अमीर लोगों का प्रतिशत भी संख्यात्मक रूप से उल्लेखनीय है।

2020 के बाद पिछले 5 साल में इस तबके की संख्या साढ़े 6 फीसदी बढ़ गई है। लोकसभा चुनावों में भाजपा को दिल खोलकर वोट करने के बाद पिछले दो विधानसभा चुनावों से इसी खुशहाल वोटर का एक अच्छा-खासा हिस्सा आप के पास खिसक आता था।

कम आय वाले वर्ग के दिल-खोल समर्थन के साथ मिलकर आप का वोट प्रतिशत 50 के पार चला जाता था। इस बार भाजपा ने इन वोटरों को कमोबेश अपने पास रोकने में कामयाबी हासिल की। भाजपा के वोटों में जो लगभग 8 फीसदी (38 से 45.56 प्रतिशत) और कांग्रेस के वोटरों में लगभग 2 फीसदी (4.25 से 6.34 प्रतिशत) की बढ़ोतरी हुई है, वह यहीं से आती दिखाई देती है। आप के लगभग 10 फीसदी वोट ही गिरे हैं। उसे जो 43.5 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए, वे दिल्ली के गरीबों (मुसलमानों और दलितों समेत जो मोटे तौर पर निम्न आय वर्ग से ताल्लुक रखते हैं) के हैं।

इस वर्ग का समर्थन अपने पास बनाए रखने का काम केंद्र सरकार के पिछले ढाई साल में किए गए चार हस्तक्षेपों ने किया। पहला हस्तक्षेप वह था, जब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले को पलटकर केंद्र सरकार ने अफसरों और कर्मचारियों की नियुक्तियों- तबादलों का अधिकार चुनी हुई सरकार से छीनकर गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करने वाले उपराज्यपाल को दे दिया।

इसके लिए उसने पहले अध्यादेश जारी किया, और फिर कानून बनाया। इसने आप सरकार को पंगु कर दिया। वह स्कूल खोल सकती थी, पर शिक्षक नियुक्त नहीं कर सकती थी। मुहल्ला क्लिनिक खोल सकती थी, पर डॉक्टर-कम्पाउंडर नियुक्त करने का अधिकार उसके पास नहीं था।

यही कारण था कि वह पहले कार्यकाल में बनी डिलीवरी करने वाली सरकार की छवि खो बैठी। नौकरीपेशा मध्यवर्ग की व्यवहार-बुद्धि ने सोचा कि अगर उसने फिर से आप को जिताया तो उसे उपराज्यपाल फिर से काम नहीं करने देंगे।

यह ऐसी एंटी-इनकम्बेंसी थी जिसका तोड़ भविष्य में वादे पूरे करने के किसी आश्वासन से नहीं किया जा सकता था। नई दिल्ली नगर महापालिका का चुनाव जीतना भी आप के िखलाफ गया। भाजपा की रणनीति के कारण एनडीएमसी में दो साल हंगामा चलता रहा। इस कारण शहरी गवर्नेंस आश्वासन पूरा नहीं किया जा सका।

केंद्र सरकार ने दूसरा हस्तक्षेप केंद्रीय जांच एजेंसियों (ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स) के जरिए किया। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में किसी भी राजनीतिक दल के िखलाफ ऐसी कार्रवाई कभी नहीं हुई। ढाई साल से निरंतर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों ने मध्यवर्ग के मानस में इस पार्टी की छवि को नकारात्मक अवश्य किया होगा। गिरफ्तारियों व जमानत का संभवत: इतना संगीन असर नहीं भी पड़ा हो, पर मुख्यमंत्री के आवास पर खर्च किए जाने वाले करोड़ों रुपयों का आरोप मतदाताओं का मन खट्टा करने के लिए काफी था।

तीसरा और चौथा हस्तक्षेप चुनावी मुहिम के दौरान किया गया। आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा ने सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी दूर करने की भूमिका निभाई। लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली, आरके पुरम और दिल्ली केंट निर्वाचन क्षेत्रों में बसे केंद्र सरकार के कर्मचारियों ने भाजपा के खिलाफ वोट किया था। लेकिन बजट में आयकर की ऐतिहासिक छूट ने सरकारी और निजी- दोनों वेतनभोगियों का दिल जीत लिया।

आप की सबसे बड़ी गलती थी अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं और दिल्ली राज्य को शहरी गवर्नेंस देने की जिम्मेदारियों के बीच घालमेल कर देना। केजरीवाल को चाहिए था कि वे स्वयं को राष्ट्रीय राजनीति के लिए मुक्त रखते और दिल्ली का कामकाज किसी के हवाले कर देते।

इस हार के बावजूद आप के पास 43.5 फीसदी का स्वस्थ समर्थन-आधार है, जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी उसका साथ दिया है। उसके पास एनडीएमसी है, पंजाब है और विपक्ष की जुझारू राजनीति करने के लिए पूरे 5 साल पड़े हैं।

आठवें वेतन आयोग के गठन ने सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी दूर की और बजट में आयकर की ऐतिहासिक छूट ने सरकारी और निजी- दोनों वेतनभोगियों का दिल जीत लिया। भाजपा की जीत में इन फैक्टर्स का भी बड़ा योगदान रहा है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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