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अभय कुमार दुबे का कॉलम: चीन की नाजायज हरकतों पर हम चुप्पी क्यों साधे हैं? Politics & News

अभय कुमार दुबे का कॉलम:  चीन की नाजायज हरकतों पर हम चुप्पी क्यों साधे हैं? Politics & News

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  • Abhay Kumar Dubey’s Column Why Are We Silent On China’s Illegal Activities?

11 मिनट पहले

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अभय कुमार दुबे, अम्बेडकर विवि, दिल्ली में प्रोफेसर

यह देखकर ताज्जुब होता है कि टीवी के खबरिया चैनलों और समाचार मीडिया में चल रहे राजनीतिक विमर्श से इस समय ‘चीन’ शब्द तकरीबन गायब है। सोशल मीडिया पर जरूर इस लफ्ज की कुछ-कुछ आहट सुनी जा सकती है।

यह अचरज उस समय और संगीन लगने लगता है, जब स्वयं भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल द्वारा जनवरी के पहले हफ्ते में हमें जानकारी दी जाती है कि चीन ने होटन प्रिफेक्चर नामक अपने इलाके में लदाख की काफी भारतीय जमीन ‘गैरकानूनी रूप से हड़पते’ हुए अपनी दो नई काउंटियां (हेकांग और हेआन) स्थापित कर दी हैं।

काउंटियां यानी प्रशासनिक इकाइयां, जहां दफ्तर होते हैं, इमारतें होती हैं, पुल बनाए जाते हैं, लोग रहते हैं, काम करते हैं और जहां चीन की प्रभुसत्ता भी बसेगी। यानी अब चीन यहां से पीछे नहीं जा सकता है। वह जाएगा तो केवल आगे ही जाएगा।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह भी जानकारी दी है कि चीन यारलुंग सांगपो नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा पनबिजली बांध 137 अरब डॉलर की लागत से बनाने जा रहा है। इस नदी से हम सब परिचित हैं। जब यह बहते हुए उतरकर अरुणाचल प्रदेश और असम में पहुंचती है तो इसका नाम ब्रह्मपुत्र हो जाता है। अगर यह बांध बन गया तो भारत के पर्यावरण के लिए भीषण खतरा स्थायी रूप से पैदा हो जाएगा। चीन इससे 60 गीगाबाइट बिजली पैदा करेगा। अर्थात, अभी तक के सबसे विशाल थ्री गोर्जिज डैम से भी ढाई गुना ज्यादा।

भारत में चीन के होटन प्रिफेक्चर को खोटान के नाम से जाना जाता है। चीन ने इसमें अक्साई चिन का काफी इलाका हड़पकर जोड़ रखा है। वह ‘सलामी स्लाइसिंग’ के नाम से कुख्यात अपने हथकंडे के जरिए पचास के दशक से ही भारतीय जमीन धीरे-धीरे कब्जाता रहा है (विदेश मंत्रालय के मुताबिक 38 हजार किमी)। समझा जाता है कि पिछले दस साल में भी उसने इसी हथकंडे से इस गैरकानूनी कब्जे में बहुत-सी जमीन जोड़ी है।

उसने भारत को आधिकारिक रूप से न काउंटियां बनाने की जानकारी दी, और न ही बांध बनाने की। विदेश मंत्रालय को इसका पता चीनी समाचार एजेंसी सिनहुआ में छपी खबर से मिला। जाहिर है कि हमारा मंत्रालय 3 जनवरी तक इस बेचैन कर देने वाले घटनाक्रम के फलितार्थों पर गहराई से गौर करता रहा होगा।

इसी से पता चलता है कि इस संबंध में भारत की दुविधाएं और मजबूरियां किस स्तर की हैं। चीन-भारत संबंधों का अध्ययन करने वाले कई सुरक्षा-विशेषज्ञ एक अरसे से इस समस्या पर चेतावनीमूलक विचार करते रहे हैं। लेकिन ये सवाल और तथ्य सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा नहीं बन पाए।

भारत इस मसले पर केवल आपत्ति दर्ज कराकर रह गया। क्या उसके पास दुनिया के किसी मंच पर कोई ऐसा विकल्प नहीं, जहां वह इस घोर विस्तारवादी कदम के खिलाफ चीन को कठघरे में खड़ा करके जवाबतलब कर सके? क्या भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन का गिरेबान पकड़ने की हैसियत नहीं रखता?

असलियत यह है कि 2021 में गलवान घाटी में हुई घटना के बाद भारतीय सेना ने इस इलाके में ‘प्ले सेफ’ रवैया अपना रखा है। इस चक्कर में धीरे-धीरे वह लदाख के 65 पैट्रोलिंग पाइंट्स में से 26 पाइंट्स खोने की स्थिति में पहुंच गई है। यह रवैया सेना तभी अपनाती है, जब उसे राजनीतिक नेतृत्व द्वारा ऐसी हिदायत दी जाती है। वरना, वह पहलकदमी ले कर अपने पैट्रोलिंग पाइंट्स दोबारा हस्तगत करने की कार्रवाई भी कर सकती है।

चीन बहुत पहले से इस तरह के पनबिजली बांध बनाने की घोषित योजना पर काम करता आ रहा है। 2021 में उसकी 14वीं पंचवर्षीय योजना में ऐसे कई बांधों का जिक्र है, जो चीन ब्रह्मपुत्र के ऊपरी और मध्यवर्ती प्रवाह पर बना रहा है। इनमें एक जागमू नामक पनबिजलीघर तो पहले से चालू है।

कुछ बांध ऐसे भी हैं जिन्हें बनाने में उसके सामने कई तरह की तकनीकी दिक्कतें आ रही हैं। लेकिन भारत की आपत्तियों की चीन को परवाह नहीं है। चीन भारत के साथ कोई जलसंधि करने के लिए भी तैयार नहीं है, जबकि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह के निचले हिस्से पर भारत का पूरा अधिकार है।

भारत के पास चीन की इन कार्रवाइयों को थामने, उसे पीछे धकेलने और अपनी जमीन वापिस हासिल करने का कोई ब्लूप्रिंट है? 2017 में डोकलाम में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच हुई हिंसा के बाद से लगता है कि पहलकदमी चीन के हाथ में चली गई है। हमारा संसदीय विपक्ष भी इस मामले में चुप्पी साधे है। देश की जनता को इसकी जानकारी देना सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों का कर्तव्य है।

भारत भले ही चीन को एक आक्रामक, विस्तारवादी और पर्यावरण की दृष्टि से गैरजिम्मेदार देश करार देता रहे, पर इससे उसकी योजनाओं पर कई फर्क नहीं पड़ने वाला है। वह ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने से पीछे नहीं हटने वाला है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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