अंतरराष्ट्रीय बाल कैंसर दिवस: खेलने-कूदने की उम्र में कैंसर से जंग लड़ रहे बच्चे, PGI में चल रहा 250 का इलाज


कैंसर के बढ़ते खतरे

कैंसर के बढ़ते खतरे
– फोटो : istock

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खेलने-कूदने की उम्र में बच्चों को अब कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से जंग लड़नी पड़ रही है। बात अगर रोहतक पीजीआईएमएस की करें तो यहां पर वर्तमान में 250 बच्चे ऐसे भर्ती हैं जो कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ रहे हैं। इस बीमारी ने बच्चों का बचपन तो छीन ही लिया, साथ ही उनका भविष्य भी अधर में लटका दिया है। पीजीआई की हेमेटोलॉजिस्ट और ओंकोलॉजिस्ट डॉ. अल्का यादव ने बताया कि यदि किसी बच्चे को लगातार दो-तीन सप्ताह से बुखार हो।

शरीर के अंगों खासकर त्वचा से खून बहना, शरीर पर काले धब्बे होना, गर्दन पर गांठ उभरना, हड्डियों के दर्द रहने की शिकायत हो तो इसे हल्के में न लें। यह बच्चों में कैंसर की वजह बन सकती है। पंडित भगवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (पीजीआईएमएस) में इस समय 250 बच्चे कैंसर से जंग लड़ रहे हैं। इन केसों की वजह तो स्पष्ट नहीं है, लेकिन लगातार यह मामले सामने आ रहे हैं। इनमें ज्यादातर मामलों की वजह अनुवांषिक कारण बताए जा रहे हैं। राहत भरी बात यह है कि बच्चों के कैंसर के 70 प्रतिशत मामले ठीक हो सकते हैं।

हर महीने आ रहे दो से तीन केस

पीजीआई में हर महीने दो से तीन नए कैंसर पीड़ित बच्चे पहुंच रहे हैं। इनमें 14 साल तक के बच्चे शामिल हैं। बच्चों के कैंसर में सबसे अधिक ब्लड कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं। इसके बाद गले में गांठ होना, हड्डी का कैंसर, पेट का कैंसर होता है। पीजीआई की ओपीडी के कमरा नंबर-214 में प्रत्येक शुक्रवार को विशेष क्लीनिक लगाया जाता है। पीजीआई में हरियाणा के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व पंजाब से भी केस इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।

जागरूकता से बचाया जा सकता है बचपन

अंतरराष्ट्रीय बाल कैंसर दिवस के मौके पर हर साल बच्चों के अभिभावकों को जागरूक किया जाता है। पहली बार यह वर्ष 2002 में चाइल्डहुड कैंसर इंटरनेशनल की ओर से मनाया गया था। यह पांच महाद्वीपों में 93 से ज्यादा देशों में काम कर रहा है। इस दिन का उद्देश्य बचपन के कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाना व कैंसर पीड़ित बच्चों और किशोरों, बचे लोगों और उनके परिवारों को इस बारे में इलाज के लिए प्रोत्साहित करना है।

25 जनवरी की बात है। बेटा खेल रहा था। अचानक उसे चक्कर आया। वह गिर पड़ा। चिकित्सक को दिखाया तो उसे टायफाइड बताते हुए दवा दी। इसके बाद भी जोड़ों के दर्द की शिकायत बनी रही। उसे निजी अस्पताल में भी पांच दिन भर्ती रखा। यहां डॉक्टर ने उसे इंफैक्शन बताते हुए टीएलसी कम होने की जानकारी दी। डॉक्टर ने दवा दी तो कुछ राहत पहुंची। बेटे को घर ले गए। उसके सात दिन बाद ही फिर तबीयत बिगड़ गई। इसके चलते उसे पीजीआई लेकर आए। यहां जांच में उसे कैंसर होने की पुष्टि हुई। यहां इलाज के बाद अब वह सामान्य है। उसकी सेहत में भी सुधार आया है। -राजेंद्र, गिरावड़

छोटे बेटे के पैर पर काला धब्बा दिखाई दिया। शुरू में ध्यान नहीं दिया। बाद में निशान बढ़ने लगा तो पीजीआई के त्वचा रोग विभाग में जांच कराई। यहां उसे कैंसर होने की पुष्टि हुई। उसके टीएलसी चार हजार पहुंच गए थे। इसके लिए उसे शिशु रोग विभाग में भर्ती कर इलाज शुरू किया गया। उसका 10 दिसंबर 2022 से इलाज चल रहा है। अब वह पहले से बेहतर है। -विनोद कुमार, चमारिया

बेटा कुछ दिनों से बीमार था। उसकी गर्दन पर सूजन आ रही थी। जांच कराने पर गर्दन में गांठ का पता लगा। निजी अस्पताल में इलाज से लाभ नहीं हुआ इसलिए उसे पीजीआई लेकर आई। यहां उसे कैंसर होने का पता लगा। इसके बाद से कैंसर का इलाज चल रहा है। शुरू में इंजेक्शन व दवाएं दी गईं। अब दवाइयां चल रही हैं। वह खेलने-कूदने लगा भी है। गर्दन की सूजन कम हो गई है। गांठें भी गायब हो रही हैं। -मीना, सिरसा, मूलरूप निवासी गया, बिहार

बच्चों में कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। ब्लड कैंसर सामान्य है। हमें इन मामलों को गंभीरता से लेना चाहिए। समय पर सही इलाज से 70 तक मामले में बच्चा सामान्य जीवन जीने में सक्षम बन सकता है। पीजीआई में हर माह दो से तीन नए कैंसर पीड़ित बच्चे आ रहे हैं। इन्हें संस्थान में उपलब्ध तकनीक के जरिये बेहतर इलाज मुहैया कराया जा रहा है। -डॉ. अल्का यादव, हेमेटोलॉजिस्ट एवं ओंकोलॉजिस्ट, पीजीआईएमएस

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