पैरा खिलाड़ी अजय।
हिसार। मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। यह पंक्तियां उनपर सटीक बैठती है, जो विषम परिस्थितियों में अपने आप को सफलता की ऊंचाइयों तक ले गए। समाज में कुछ दिव्यांग ऐसे हैं जिन्होंने अपनी दिव्यांगता को ही ताकत बनाया और उसके दम पर देश का नाम रोशन किया। हिसार में रहने वाले मोनू घनघस एथलेटिक्स का अभ्यास करते हैं। वे दृष्टिहीन हैं, लेकिन मन के उजियारे से अंधेरे को जीतकर उन्होंने सफलता की उड़ान भरी है।
जिले के पैरा खिलाड़ियों ने हादसे को भूलकर हौसले की उड़ान भरी। इन खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की झोली में पदक ही नहीं डाले, बल्कि खेल कोटे से सरकारी नौकरी हासिल कर परिवार को खुशहाल बनाने में योगदान दिया। बता दें कि हर साल 3 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस मनाया जाता है। आइए जानते हैं, हादसों के बाद पैरा खिलाड़ियों ने किस तरह खेलों में मुकाम हासिल किया।
अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस : मन के उजियारे से अंधेरे को जीतकर भर रहे सफलता की उड़ान