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कुरुक्षेत्र। साहित्य से सिनेमा भटक चुका है। अब कथाओं और कहानियों पर नहीं बल्कि पश्चिमी और दक्षिण की फिल्मों की काॅपी कर भारत में हिंदी फिल्में बनाई जा रही है। इससे सिनेमा का स्तर गिरा है। हमारे यहां कहानियों की कमी नहीं है, जिनके जरिए सिनेमा को हर समय नए रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। ये कहना है प्रसिद्ध अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा का, जो 90 के दशक से मशहूर अभिनेता है और चंद्रकांता के क्रूर सिंह के नाम से भी जाने जाते हैं। उन्होंने कहा सिनेमा और साहित्य का प्रगाढ़ रिश्ता है और सिनेमा का मूल ही साहित्य है। सिनेमा में जो गिरावट आई है उसका कारण साहित्य से दूर होना ही है।
हरियाणा अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के शुभारंभ के दौरान जब प्रख्यात अभिनेता अखिलेंद्र सिंह मंच पर आए तो दर्शकों में जोश भर गया और उनका जोरदार स्वागत किया। चंद्रकांता के क्रूर सिंह ने जब शिव मंत्र अपने अंदाज में प्रस्तुत किया तो हर कोई हैरान रह गया। इसके बाद उनकी करीब 15 मिनट की लघु फिल्म बरात दिखाई गई, जिसमें उनका गजब का अभिनय देख दर्शक गदगद हो उठे।
अखिलेंद्र मिश्रा का कहना है कि भारत तो कथाओं का देश है, जब बच्चा पैदा होता है तब से गोद में कहानियां सुनते-सुनते ही बड़ा हाेता है, लेकिन आज का दौर मोबाइल का है जो कि बहुत खतरनाक है। अभिभावक छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल थाम देते हैं। डिजिटल मीडिया के सही प्रयोग का पता होना बेहद जरूरी है। बच्चों को ये नहीं पता कि फोन में क्या देखना उचित है और क्या अनुचित। ऐसे में माता-पिता, शिक्षकों व बड़ों की बातों को मानना चाहिए और वह जिस प्रकार की सामग्री देखने के लिए कहते हैं वही देखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमें सिनेमा में सुधार करने की आवश्यकता है। उन्होंने युवाओं में जीवन में कुछ कर गुजरने का जज्बा भरा और कहा कि ये उम्र लौट कर न आएगी, आलम फतेह करने की तथा सिनेमा को समझने की उम्र है। डिजिटल मीडिया पर बहुत भटकाव है। इसके सही प्रयोग का युवाओं को पता होना बेहद जरूरी है।
बच्चन परिवार ने दिखाया साहित्य व सिनेमा का गजब संगम
अखिलेंद्र मिश्रा ने बताया कि वे अमिताभ बच्चन की फिल्में देखते थे और उन्हें यह शौक था। इसे पूरा करते-करते ही वे भी फिल्म जगत तक पहुंच गए। वहां जाकर देखा कि बच्चन परिवार ने साहित्य एवं सिनेमा में गजब का संतुलन बनाया हुआ है। अमिताभ बच्चन फिल्म जगत के बड़े सितारे तो उनके पिता हरिवंश राय बच्चन साहित्य के जरिए देश व समाज को नई दिशा दे रहे थे। उन्होंने वर्ष 1927, 28, 29 की कई फिल्मों का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय हर फिल्म में साहित्य झलकता था, जिनमें देवदास भी उस समय की बड़ी फिल्म थी।
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साहित्य से भटका हिंदी सिनेमा तो गिरा स्तर : अखिलेंद्र मिश्रा