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शेखर गुप्ता का कॉलम: अब राजनीतिक एजेंडा तय करने लगा विपक्ष Politics & News

शेखर गुप्ता का कॉलम:  अब राजनीतिक एजेंडा तय करने लगा विपक्ष Politics & News

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14 घंटे पहले

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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’

2024 ने राष्ट्रीय राजनीति के समीकरण को बदल दिया है। एक दशक से भारी दबाव और नाउम्मीदी झेल रहे विपक्ष ने जवाबी हमला करने का मौका बना लिया है। वैसे, व्यापक तौर पर यह उम्मीद भी नहीं की जा रही थी कि जवाबी हमला करने की ताकत इतनी मजबूत हो जाएगी कि विजेता अपने इरादे और अपनी चालें बदल देगा। कांग्रेस ने चुनाव अभियान में जो विचार और मुद्दे उभारे थे, उनकी एक सूची यहां दी जा रही है :

1. युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है, रोजगार पैदा करने के लिए सब्सिडी दी जाए और प्रशिक्षण की योजना बनाएं। 2. गरीबों, बेरोजगारों, किसानों को नकदी भुगतान करें। 3. सभी बड़ी फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए और किसानों के कर्ज माफ किए जाएं। 4. अग्निपथ योजना पर पुनर्विचार करें। 5. जातीय जनगणना करवाई जाए और उसके आधार पर हर वर्ग को संख्या के अनुपात में सरकारी लाभ मिले।

इनमें से कई मुद्दों को भाजपा ने झूठ बताकर खारिज कर दिया। जाति संबंधी सभी मसलों से कन्नी काट ली और जवाब में हिंदू भावनाओं को उभारने की कोशिश की। वास्तव में, कांग्रेस के जातीय जनगणना और वितरणवादी समाजवादी नजरिए को ‘रेवड़ी’ बताकर उपेक्षित कर दिया गया। सीधे शब्दों में कहें तो यह कहा गया कि कांग्रेस मुफ्त के प्रलोभन देकर वोट खरीदना चाहती थी। अब हम यह देखें कि इन दिनों क्या-क्या होता रहा है।

मोदी की तीसरी सरकार ने राहुल/कांग्रेस के जिन विचारों को बेमानी और मजाक बताकर खारिज कर दिया था, उससे वह तुरंत पलट गई और उनमें से कई को अब लागू करने में जुट गई है। उदाहरण के लिए :

1. बेरोजगारी की चुनौती से निपटने के लिए बजट में काफी आवंटन और वादे किए गए हैं। ज्यादा रोजगार देने वाली कंपनियों के लिए प्रोत्साहनों की घोषणा की गई है, और अगले पांच वर्ष में 1 करोड़ युवाओं के लिए प्रशिक्षण (इंटर्नशिप) की योजना घोषित की गई है। 2. भाजपा शासित राज्यों में, खासकर उनमें जहां चुनाव होने वाले हैं, कृषि एमएसपी का विस्तार किया जा रहा है। हरियाणा की सरकार ने सभी 24 बड़ी फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा की है, जबकि वहां अभी तक 14 फसलों के लिए ही एमएसपी दी जाती थी। 3. अखबारों में पूरे पन्ने के विज्ञापनों पर नजर डालें तो आप पाएंगे कि हरियाणा में किस तरह रेवड़ियां घोषित की जा रही हैं। 46 लाख परिवारों को मात्र 500 रु. में एलपीजी सिलेंडर से लेकर स्कूली लड़कियों को मुफ्त में दूध देने और नहरों से मिलने वाले पानी पर से अधिभार समाप्त करने की घोषणाएं की गई हैं। 4. और तो और, जिन परिवारों की वार्षिक आमदनी 1 लाख रु. तक है, उनके सभी सदस्य महीने में 1,000 किमी तक मुफ्त में बस यात्रा कर सकते हैं। जबकि भाजपा दिल्ली, कर्नाटक और तेलंगाना में ऐसे ही कार्यक्रमों की खिल्ली उड़ाया करती थी। इन्हें ‘रेविड़यां’ कहती थी। 5. हरियाणा ने ओबीसी की अपनी परिभाषा में ‘क्रीमी’ तबके की आय सीमा प्रति वर्ष 6 लाख रु. से बढ़ाकर 8 लाख रु. कर दी है। महाराष्ट्र के लिए जो कुछ किया गया है, वह और ज्यादा काबिल-ए-गौर है। उसके लिए अब तक जितनी ‘रेवड़ियों’ की घोषणा की जा चुकी है, उनके लिए हर साल कम-से-कम 96,000 करोड़ रु. की जरूरत पड़ेगी। ये सब इस बात के प्रमाण हैं कि विपक्ष ही फिलहाल एजेंडा तय कर रहा है।

1989 से, ये दो सवाल यह तय करते रहे हैं कि भारत पर कौन राज करेगा- एक यह कि धर्म ने जिन्हें एकजुट किया था, उन्हें बांटने के लिए क्या जाति का इस्तेमाल किया जा सकता है? दूसरा यह कि जाति ने जिन्हें बांट दिया, उन्हें एकजुट करने के लिए क्या धर्म का इस्तेमाल किया जा सकता है?

शुरू के 25 वर्षों तक तो जाति जीतती रही। लेकिन नरेंद्र मोदी के उभार ने तमाम जातिगत विभाजनों के ऊपर व्यापक हिंदू वोट को एकजुट कर दिया। यह हिंदुत्व के युग की शुरुआत थी। राहुल गांधी ने जातीय जनगणना के नारे के साथ इसे फिर से चुनौती दे दी।

इस मुद्दे को उन्होंने संसद के अंदर ला दिया और जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी इसी संसद के जरिए जातीय जनगणना जरूर करवाएगी। इस मुद्दे का जवाब देने के लिए भाजपा के पास विचारों की कमी है इसलिए वह धर्म के मुद्दे पर ही जोर देती रहती है।

वक्फ को लेकर नया विधेयक, हिमंत बिस्वा सरमा का ‘जमीन जिहाद’ का नारा, ‘लव जिहाद’ के लिए उम्रकैद की सजा दिलाने का कानूनी संशोधन लाने का योगी का प्रस्ताव, एक समुदाय को अपनी जनसंख्या वृद्धि पर रोक न लगाने का राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का आरोप- ये सब बचाव की ही स्वतःस्फूर्त रणनीतियां हैं।

आम चुनाव में इन्हीं का इस्तेमाल किया गया था और वे नाकाम रहीं। भाजपा अब फिर से जाति के मसले से जूझ रही है। जातीय जनगणना तो दूर, वह हर दस साल पर होने वाली उस सामान्य जनगणना की बात भी नहीं कर रही है, जो 2021 में होनी चाहिए थी। जबकि पिछड़े वर्गों के उप-वर्गीकरण की बात खुद भाजपा ने उठाई थी और इस मसले की जांच के लिए दिल्ली हाइकोर्ट की सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया था।

उस आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। सरकार अगर उप-वर्गीकरण की ओर कदम बढ़ाती है तो जातीय जनगणना जरूरी हो जाएगी। यह राहुल गांधी की एक और जीत होगी। सरकार अगर जातीय जनगणना नहीं करवाती है तो जातियों के आधार पर हिंदू वोटों के विभाजन में फिर तेजी आएगी।

देखें कि आज की सियासत में क्या-क्या चल रहा है…
कांग्रेस के जातीय जनगणना वाले और समाजवादी नजरिए को ‘रेवड़ी’ बताकर उपेक्षित कर दिया गया। कहा गया कि कांग्रेस मुफ्त के प्रलोभन देकर वोट खरीदना चाहती थी। लेकिन अब देखें कि इन दिनों राजनीति में क्या हो रहा है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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