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वोटिंग से पहले डिस्पैच सेंटर से बूथ तक EVM ले जाने की क्या होती है पूरी प्रक्रिया, जानें Politics & News

वोटिंग से पहले डिस्पैच सेंटर से बूथ तक EVM ले जाने की क्या होती है पूरी प्रक्रिया, जानें Politics & News

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग हो रही है. इस दिन लाखों मतदाता इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के जरिए अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट दे रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये मशीनें कितनी सटीक और सुरक्षित होती हैं? चुनाव आयोग (ECI) ने EVM की सुरक्षा के लिए दो-स्तरीय प्रक्रिया अपनाती है. चुनाव के पहले सुरक्षा (Pre-Election) और चुनाव के बाद सुरक्षा (Post-Election).

मतदान से पहले हर EVM मशीन का गहन परीक्षण किया जाता है. भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) जैसी सरकारी कंपनियां इन्हें बनाती हैं. चुनाव से पहले इन मशीनों की तकनीकी जांच राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में की जाती है, ताकि किसी तरह की गड़बड़ी न रह जाए. अगर कोई मशीन खराब पाई जाती हैतो  उसे तुरंत फैक्ट्री वापस भेज दिया जाता है.

इसके बाद सभी मशीनें एक सुरक्षित कमरे में रखी जाती हैं, जहां मोबाइल या कैमरा जैसे उपकरण ले जाना पूरी तरह मना होता है. कमरे की निगरानी राज्य पुलिस करती है. चुनाव आयोग कुछ मशीनों पर मॉक पोल भी कराता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वोटिंग प्रक्रिया पारदर्शी है.

रैंडम तरीके से मशीनों का वितरण

चुनाव आयोग मशीनों को दो बार रैंडमाइज करता है. पहले विधानसभा स्तर पर और फिर मतदान केंद्र स्तर पर. इस प्रक्रिया से किसी भी प्रकार की साजिश या छेड़छाड़ की संभावना खत्म हो जाती है. मतदान वाले दिन भी मतदान शुरू होने से पहले मॉक पोल कराया जाता है, ताकि सभी उम्मीदवार यह देख सकें कि मशीनें सही ढंग से काम कर रही हैं.

मतदान के बाद की सुरक्षा व्यवस्था

जब मतदान पूरा हो जाता है, तब हर EVM को सील किया जाता है. सील पर उम्मीदवारों के एजेंटों के हस्ताक्षर होते हैं और फिर मशीनों की जिम्मेदारी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को सौंप दी जाती है. इसके बाद सभी मशीनें स्ट्रांग रूम में रखी जाती हैं. यह एक बेहद सुरक्षित जगह होती है, जहां 24 घंटे सीसीटीवी निगरानी रहती है और बिजली की लगातार आपूर्ति सुनिश्चित की जाती है. उम्मीदवारों के प्रतिनिधि भी इन स्ट्रांग रूम्स की निगरानी में शामिल हो सकते हैं. मतगणना से पहले, आयोग सभी सीलों और मशीनों की पहचान संख्या की जांच करवाता है, जिससे किसी भी गड़बड़ी की गुंजाइश न रहे.

क्यों पूरी तरह भरोसेमंद हैं EVM मशीनें

EVM किसी भी नेटवर्क या इंटरनेट से नहीं जुड़ी होतीं, इसलिए इन्हें हैक करना या रिमोट तरीके से बदलना असंभव है. हर मशीन की यूनिक आईडी और तीन-स्तरीय सीलिंग सिस्टम इसे और अधिक सुरक्षित बनाते हैं. चुनाव आयोग की इस पारदर्शी प्रक्रिया ने ईवीएम को दुनिया की सबसे विश्वसनीय वोटिंग प्रणाली बना दिया है.

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