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विराग गुप्ता का कॉलम:अदालती चक्रव्यूह से जनता को राहत देना जरूरी है Politics & News

विराग गुप्ता का कॉलम:अदालती चक्रव्यूह से जनता को राहत देना जरूरी है Politics & News

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15 घंटे पहले

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विराग गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट के वकील, 'अनमास्किंग वीआईपी' पुस्तक के लेखक - Dainik Bhaskar

विराग गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट के वकील, ‘अनमास्किंग वीआईपी’ पुस्तक के लेखक

अमेरिका, भारत या फिर बांग्लादेश समेत अधिकांश देशों में नेता और सरकार संविधान की आड़ में ही जनता के अधिकारों का दमन और भ्रष्टाचार करते हैं। बांग्लादेश में मुखिया पद के नए दावेदार मोहम्मद यूनुस के खिलाफ भी 100 से अधिक मुकदमे चल रहे हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और प्रधानमंत्री पद की भावी दावेदार खालिदा जिया दोनों को सेना ने भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद कर दिया था। हसीना सरकार के आरक्षण बढ़ाने के दांव और हाईकोर्ट के फैसले के बाद बांग्लादेश में तख्तापलट का कथानक तैयार हो गया था। बांग्लादेश-संकट के बरक्स भारत में न्यायिक व्यवस्था से जुड़े तीन पहलुओं को समझना बेहद जरूरी है।

अदालतों से त्रस्त जनता : सुप्रीम कोर्ट में आयोजित पहली लोक अदालत के बाद चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लम्बी मुकदमेबाजी से त्रस्त लोग सेटलमेंट चाहते हैं। उनके अनुसार अदालत की लम्बी प्रक्रिया सजा जैसी है, जो जजों के लिए चिंता की बात है।

रिजर्व फैसलों को तीन महीने के भीतर जारी कर देना चाहिए। लेकिन एमसीडी में एल्डरमैन की नियुक्ति पर एलजी के अधिकार के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने 15 महीने बाद फैसला दिया। एक ही मामले पर दो अदालतों में सुनवाई नहीं होनी चाहिए। लेकिन बेसमेंट में कोचिंग के छात्रों की मौत के मामले में हाईकोर्ट के साथ सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई का फैसला लिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कोचिंग संस्थानों को डेथ चैम्बर बताया है। सड़क पर गाड़ी चलाने के आरोप में एसयूवी चालक को जेल भेजने वाले पुलिस वालों की निंदा हो रही है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के अनुसार किसी को गलत तरीके से जेल में रखना गुनाह है।

उसके बावजूद कार चालक को हिरासत में भेजने वाले और जमानत की अर्जी रद्द करने वाले मजिस्ट्रेट के खिलाफ हाईकोर्ट ने कार्रवाई नहीं की। ऐसे जजों की वजह से लाखों बेगुनाह लोग जेलों में बंद हैं। हाईकोर्ट के जजों ने कहा है कि एमसीडी नहीं सुधरी तो हाईकोर्ट को दखल देना होगा। लेकिन जज नहीं सुधरे तो फिर कौन दखल देगा?

अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार : ईडी के अनुसार छत्तीसगढ़ के पीडीएस स्कैम में हाईकोर्ट जज ने भ्रष्ट तरीके से आरोपी अफसरों को जमानत दी थी। इस मामले में वाॅट्सएप चैट के प्रमाण के बावजूद महाभियोग से जज को बर्खास्त करने के बजाय दूसरे हाईकोर्ट में ट्रांसफर करके मामले को रफा-दफा कर दिया गया।

सनद रहे कि आजादी के बाद किसी भी जज की बर्खास्तगी नहीं हुई है। बड़ी बेंच और संविधान पीठ के पुराने फैसलों का सम्मान करने के बजाय मीडिया में सुर्खियां हासिल करने के लिए फैसले देने की बढ़ती प्रवृत्ति से न्यायिक अनुशासन कमजोर हो रहा है।

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के सिंगल जज ने डिवीजन बेंच और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को मानने से इंकार कर दिया। उनके अनुसार हाईकोर्ट स्वतंत्र संवैधानिक इकाई है, जो सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों ने हाईकोर्ट जज के फैसले को निरस्त कर दिया। लेकिन जज साहब के वायरल हो रहे वीडियो में कही गई आपत्तिजनक बातों का न्यायिक व्यवस्था में सही और संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा।

संविधान हत्या दिवस : भारत में भी आपातकाल के दौरान विरोधी दलों के नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का फैसला लिया है। देश में यदि 50 साल पहले संविधान की हत्या हो गई थी तो सांसद, मंत्री और जज किस संविधान की शपथ लेकर देशसेवा कर रहे हैं?

दिलचस्प बात यह है कि आपातकाल से जुड़ी सभी ज्यादतियों और गैर-कानूनी गिरफ्तारियों के लिए सरकार और पुलिस के साथ न्यायपालिका भी बराबर की जिम्मेदार थी। खनन की रॉयल्टी में राज्यों को अधिकार देने के सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले से केंद्र-राज्य संबंधों पर भी तनाव बढ़ रहा है।

सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच ने आरक्षण पर 20 साल पुराना फैसला बदल दिया है। जातिगत जनगणना के दबाव से सामाजिक विघटन बढ़ने की आशंका है। सोशल मीडिया के हथियार से लैस बेरोजगार युवाओं की बढ़ती नाराजगी भारत जैसे देशों के लिए भी चिंता का सबब होना चाहिए।

भारत में नेताओं से पीड़ित जनता चुनावों के जरिए आवाज उठा सकती है। नाकारा और भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ सीबीआई और अदालतों के दरवाजे खुलते हैं। लेकिन अदालतों में न्याय के बजाय तारीख पे तारीख या फिर कागजी फैसला मिलने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। लोकतंत्र और संविधान की सुरक्षा के लिए अदालती चक्रव्यूह से जनता को राहत देना जरूरी है।

नेताओं से पीड़ित जनता चुनावों में आवाज उठा सकती है। भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ सीबीआई के दरवाजे खुलते हैं। लेकिन अदालतों में न्याय के बजाय तारीख पे तारीख या कागजी फैसला मिलने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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