लोकतंत्र बचाने के लिए झेलीं यातनाएं, नहीं भूल पाएंगे वो काले दिन


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हिसार। आपातकाल घोषणा के वर्ष 1975 के 25 जून के गवाह आज भी उस दिन भी नहीं भूल पा रहे। लोकतंत्र की बहाली के लिए लाखों लोगों ने जेल की यातनाएं सही। अपने शरीर पर लाठियां, लात-घूंसे खाए। भाजपा सरकार ने इन लोगों को लोकतंत्र सेनानी का दर्जा दिया। इन लोगों के लिए दस हजार रुपये मासिक पेंशन शुरू की। इन लोगों की पेंशन पिछले कई पांच साल से नहीं बढ़ाई गई है। पेंशन बीस हजार करने और सीएम की तीन साल पहले 5 लाख रुपये तक निशुल्क उपचार की घोषणा पूरी होने का इंतजार है। अधिकतर लोकतंत्र सेनानी 75 से 80 साल की बीच की आयु के हैं, जो कई तरह की बीमारियों से घिरे हैं। कुछ लोगों की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं है।
मैं उस समय पंजाब के फिरोजपुर में था। आरएसएस की ओर से हम बाजार में प्रदर्शन कर रहे थे। पुलिस ने हम पर लाठियों से हमला कर बाजार में ही पीटा। चार दिन तक हमारे शरीर पर चोट के निशान रहे। मुझे 20 दिसंबर 1975 को गिरफ्तार किया गया था। 12 जनवरी 1976 को जमानत पर छोड़ा गया। बीए फाइनल के पेपरों के लिए जमानत मिली थी। यातना दिए जाने के मामले में शाह आयोग ने भी जांच की थी। हम 19 महीने तक अदालत में केस भुगतते रहे। बाद में दूसरी सरकार आने पर केस खत्म किए गए। – भूपेंद्र सिंह, लोकतंत्र सेनानी
मैं आरएसएस का साधारण कार्यकर्ता था। पारिवारिक स्थिति के कारण गिरफ्तारी नहीं दी। जब 9 दिसंबर 1975 को मेरी दुकान के सामने से जत्था निकला तो मैं खुद को रोक नहीं सका। प्रदर्शन में शामिल हो गया। भारत माता जिंदाबाद के नारे जोश के साथ लगाए। बाद में हमें नागोरी गेट के पास से गिरफ्तार कर लिया गया। करीब 33 दिन जेल में बिताए। बाद में जमानत पर बाहर आया। लोकतंत्र को बचाने के लिए अपने उस फैसले पर आज भी गर्व है। – वेद छाबड़ा, लोकतंत्र सेनानी
आरएसएस का तहसील स्तर का पदाधिकारी होने के कारण हम आपातकाल के विरोध में आवाज बुलंद करने पहुंचे। हम पुराना गवर्नमेंट कॉलेज मैदान में प्रदर्शन कर रहे तो पुलिस ने लाठियों से मारा, लात घूूंसे भी मारे। हम करीब 12 कार्यकर्ताओं को बुरी तरह से लहूलुहान किया। उन दिनों हमारा ट्रेनिंग कैंप चल रहा था। दस दिन के उस कैंप को हमें बीच में ही विसर्जन करना पड़ा था। हमने लोकतंत्र के बचाने के लिए यातनाएं सहन की। हम सभी को हिसार की जेल में रखा गया था। – सुभाष मल्होत्रा, लोकतंत्र सेनानी

हिसार। आपातकाल घोषणा के वर्ष 1975 के 25 जून के गवाह आज भी उस दिन भी नहीं भूल पा रहे। लोकतंत्र की बहाली के लिए लाखों लोगों ने जेल की यातनाएं सही। अपने शरीर पर लाठियां, लात-घूंसे खाए। भाजपा सरकार ने इन लोगों को लोकतंत्र सेनानी का दर्जा दिया। इन लोगों के लिए दस हजार रुपये मासिक पेंशन शुरू की। इन लोगों की पेंशन पिछले कई पांच साल से नहीं बढ़ाई गई है। पेंशन बीस हजार करने और सीएम की तीन साल पहले 5 लाख रुपये तक निशुल्क उपचार की घोषणा पूरी होने का इंतजार है। अधिकतर लोकतंत्र सेनानी 75 से 80 साल की बीच की आयु के हैं, जो कई तरह की बीमारियों से घिरे हैं। कुछ लोगों की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं है।

मैं उस समय पंजाब के फिरोजपुर में था। आरएसएस की ओर से हम बाजार में प्रदर्शन कर रहे थे। पुलिस ने हम पर लाठियों से हमला कर बाजार में ही पीटा। चार दिन तक हमारे शरीर पर चोट के निशान रहे। मुझे 20 दिसंबर 1975 को गिरफ्तार किया गया था। 12 जनवरी 1976 को जमानत पर छोड़ा गया। बीए फाइनल के पेपरों के लिए जमानत मिली थी। यातना दिए जाने के मामले में शाह आयोग ने भी जांच की थी। हम 19 महीने तक अदालत में केस भुगतते रहे। बाद में दूसरी सरकार आने पर केस खत्म किए गए। – भूपेंद्र सिंह, लोकतंत्र सेनानी

मैं आरएसएस का साधारण कार्यकर्ता था। पारिवारिक स्थिति के कारण गिरफ्तारी नहीं दी। जब 9 दिसंबर 1975 को मेरी दुकान के सामने से जत्था निकला तो मैं खुद को रोक नहीं सका। प्रदर्शन में शामिल हो गया। भारत माता जिंदाबाद के नारे जोश के साथ लगाए। बाद में हमें नागोरी गेट के पास से गिरफ्तार कर लिया गया। करीब 33 दिन जेल में बिताए। बाद में जमानत पर बाहर आया। लोकतंत्र को बचाने के लिए अपने उस फैसले पर आज भी गर्व है। – वेद छाबड़ा, लोकतंत्र सेनानी

आरएसएस का तहसील स्तर का पदाधिकारी होने के कारण हम आपातकाल के विरोध में आवाज बुलंद करने पहुंचे। हम पुराना गवर्नमेंट कॉलेज मैदान में प्रदर्शन कर रहे तो पुलिस ने लाठियों से मारा, लात घूूंसे भी मारे। हम करीब 12 कार्यकर्ताओं को बुरी तरह से लहूलुहान किया। उन दिनों हमारा ट्रेनिंग कैंप चल रहा था। दस दिन के उस कैंप को हमें बीच में ही विसर्जन करना पड़ा था। हमने लोकतंत्र के बचाने के लिए यातनाएं सहन की। हम सभी को हिसार की जेल में रखा गया था। – सुभाष मल्होत्रा, लोकतंत्र सेनानी

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