
33-कैथल। कॉव्य गोष्ठी में पुस्तक का विमोचन करते हुए साहित्यकार।
– फोटो : Kaithal
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कैथल। अखिल भारतीय साहित्य परिषद की जिला इकाई के तत्वावधान में जवाहर पार्क स्थित सेवा संघ के कार्यालय में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि के तौर पर प्रांत के संयुक्त मंत्री डॉ. जगदीप शर्मा राही और विशिष्ट अतिथि समाजसेवी शिव शंकर पाहवा ने शिरकत की। राही ने कविता प्रस्तुत करते हुए कहा कि ‘विचार का जिंदा रहना और क्रियाशील रहना जरूरी है।’ कार्यक्रम के दौरान रचनाकारों ने अपनी-अपनी पुस्तकों का आदान-प्रदान भी किया।
एक सैनिक के विषम जीवन को प्रतिबिंबित करते हुए डॉ. जगदीप शर्मा राही ने सुनाया- ‘लाम पै फौजी, घर में भौजी, दो-दो जिंदगी सिसक रही। पल-पल खटका, सांस है अटका, पांव से धरती सिसक रही। पलभर में क्या हो जाएगा, कोई किसी को खबर नहीं, मां की ममता, बहन की राखी, बापू की खांसी हिचक रही।’ सतपाल पराशर आनंद ने कहा- ‘औरों के दुख देखकै, नाच रह्या मन-मोर। झगड़ रहे किस बात पर, एक डाकू, एक चोर।’ जिंदगी को परिभाषित करते हुए राजेश भारती ने सुनाया- ‘जिंदगी मेरी मां के दुपट्टे से बंधा अठन्नियों का गुच्छा, जो अब चलन में नहीं।’
महेंद्र सिंह कण्व सारस्वत ने पौराणिक प्रतीकों का प्रयोग करते हुए कहा कि- ‘हनुमान का सा सेवक, भाई लक्ष्मण जैसा, अनुसुइया जैसी सती और शांति जैसा शस्त्र नहीं।’ प्रेम सिखाने वाली रीत ढूंढते हुए डॉ. तेजिंद्र ने सुनाया- ‘शोर-शराबे की दुनिया में, गीत ढूंढता हूं। साथ हमेशा देने वाला, मीत ढूंढता हूं। लोग रहा करते थे प्रेम-भावना से प्रेम सिखाने वाली मैं वह, रीत ढूंढता हूं।’ शिव शंकर पाहवा ने मां के प्रेम पर कहा- ‘उदारता की मूर्त है मां, संस्कारों की क्यारी, मां तुम जैसा कोई नहीं।’
इससे पूर्व डॉ. जगदीप शर्मा राही ने परिषद के स्वरूप, उद्देश्यों और क्रियाकलापों पर प्रकाश डाला। जिला इकाई कैथल के संयोजक डॉ. तेजिंद्र ने गोष्ठी के उद्देश्यों और बिंदुओं पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ हरियाणवी साहित्यकार महेंद्र सिंह व कण्व सारस्वत ने अध्यक्षता और संचालन सतबीर जागलान ने किया।
कैथल। अखिल भारतीय साहित्य परिषद की जिला इकाई के तत्वावधान में जवाहर पार्क स्थित सेवा संघ के कार्यालय में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि के तौर पर प्रांत के संयुक्त मंत्री डॉ. जगदीप शर्मा राही और विशिष्ट अतिथि समाजसेवी शिव शंकर पाहवा ने शिरकत की। राही ने कविता प्रस्तुत करते हुए कहा कि ‘विचार का जिंदा रहना और क्रियाशील रहना जरूरी है।’ कार्यक्रम के दौरान रचनाकारों ने अपनी-अपनी पुस्तकों का आदान-प्रदान भी किया।
एक सैनिक के विषम जीवन को प्रतिबिंबित करते हुए डॉ. जगदीप शर्मा राही ने सुनाया- ‘लाम पै फौजी, घर में भौजी, दो-दो जिंदगी सिसक रही। पल-पल खटका, सांस है अटका, पांव से धरती सिसक रही। पलभर में क्या हो जाएगा, कोई किसी को खबर नहीं, मां की ममता, बहन की राखी, बापू की खांसी हिचक रही।’ सतपाल पराशर आनंद ने कहा- ‘औरों के दुख देखकै, नाच रह्या मन-मोर। झगड़ रहे किस बात पर, एक डाकू, एक चोर।’ जिंदगी को परिभाषित करते हुए राजेश भारती ने सुनाया- ‘जिंदगी मेरी मां के दुपट्टे से बंधा अठन्नियों का गुच्छा, जो अब चलन में नहीं।’
महेंद्र सिंह कण्व सारस्वत ने पौराणिक प्रतीकों का प्रयोग करते हुए कहा कि- ‘हनुमान का सा सेवक, भाई लक्ष्मण जैसा, अनुसुइया जैसी सती और शांति जैसा शस्त्र नहीं।’ प्रेम सिखाने वाली रीत ढूंढते हुए डॉ. तेजिंद्र ने सुनाया- ‘शोर-शराबे की दुनिया में, गीत ढूंढता हूं। साथ हमेशा देने वाला, मीत ढूंढता हूं। लोग रहा करते थे प्रेम-भावना से प्रेम सिखाने वाली मैं वह, रीत ढूंढता हूं।’ शिव शंकर पाहवा ने मां के प्रेम पर कहा- ‘उदारता की मूर्त है मां, संस्कारों की क्यारी, मां तुम जैसा कोई नहीं।’
इससे पूर्व डॉ. जगदीप शर्मा राही ने परिषद के स्वरूप, उद्देश्यों और क्रियाकलापों पर प्रकाश डाला। जिला इकाई कैथल के संयोजक डॉ. तेजिंद्र ने गोष्ठी के उद्देश्यों और बिंदुओं पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ हरियाणवी साहित्यकार महेंद्र सिंह व कण्व सारस्वत ने अध्यक्षता और संचालन सतबीर जागलान ने किया।
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