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- Manoj Joshi’s Column What Does The Return Of Militancy In Jammu And Kashmir Indicate?
9 दिन पहले
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मनोज जोशी ‘अंडरस्टैंडिंग द इंडिया चाइना बॉर्डर’ के लेखक
24 जुलाई को भारत ने कश्मीर घाटी के उत्तर में स्थित कुपवाड़ा जिले में घुसपैठ कर रहे पाकिस्तानी आतंकवादियों के साथ संघर्ष में एक गैर-कमीशन अधिकारी (एनसीओ) को खो दिया। उससे एक दिन पहले ही पुंछ की कृष्णा घाटी में एक घुसपैठ विरोधी अभियान के दौरान एक और एनसीओ की मौत हो गई थी।
इससे पहले 15 जुलाई को डोडा जिले में हुई गोलीबारी में एक कैप्टन, 10 राष्ट्रीय राइफल्स के तीन जवानों और जम्मू-कश्मीर के पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। 8 जुलाई को कठुआ जिले के माचेडी जंगल में घात लगाकर किए गए हमले में 22 गढ़वाल राइफल्स के पांच जवान शहीद हो गए।
अकेले जुलाई में डोडा और उसके पड़ोसी कठुआ जिले में हुई कार्रवाइयों में 10 जवान शहीद हुए हैं। वहीं अक्टूबर 2021 से अब तक जम्मू संभाग में 50 से अधिक सुरक्षाकर्मी शहीद हो चुके हैं, जिनमें से लगभग 40 सेना के थे।
हाल के दशकों में यह क्षेत्र काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा है, लेकिन अब संकेत मिल रहे हैं कि पाकिस्तान दुनिया को यह दिखाने के लिए वहां परेशानी खड़ी करना चाहता है कि मोदी सरकार के दावों के विपरीत जम्मू-कश्मीर में सब कुछ ठीक नहीं है।
इसमें संदेह नहीं है कि जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुई घटनाएं पाकिस्तान के तथाकथित ‘डीप स्टेट’ यानी उसकी फौज की शह पर हुई हैं। यह एक सावधानीपूर्ण संगठित प्रयास है, जिसमें उन्होंने दो और तीन आतंकवादियों के कुछ दर्जन समूहों की स्थापना की है, ताकि एक के खात्मे से दूसरे पर असर न पड़े।
उन्होंने अपनी गतिविधियों के लिए पीर पंजाल रेंज के दक्षिण में जो क्षेत्र चुना है, वहां पूर्वी लद्दाख में चीनी घुसपैठ के कारण भारतीय सुरक्षा बलों की संख्या पहले ही कम हो गई है। दक्षिणी पीर पंजाल और किश्तवाड़ रेंज के जंगल और पहाड़ों में आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कई ठिकाने हैं, जहां से दक्षिण में नदी के किनारे की अंतरराष्ट्रीय सीमा या पूर्व में पहाड़ी नियंत्रण रेखा के माध्यम से पीओके तक सुविधाजनक मार्ग हैं।
सरकार और सेना को इस चुनौती से कैसे निपटना चाहिए? इसके चार पहलू हैं। पहला, कश्मीर से जुड़ा बड़ा मुद्दा अनुच्छेद 370 और 35 को खत्म करने से सम्बद्ध है। यह एक विचारधारा से प्रेरित कार्रवाई थी और इसका उन अनुच्छेदों की वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं था, जिनकी ताकत दशकों से खोखली हो रही थी।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जिस तरह से यह किया गया, उससे घाटी के लगभग सभी वर्गों की राय अलग-थलग पड़ गई। कार्रवाई से घाटी के राजनीतिक तत्व भी प्रभावित हुए। नेशनल कॉन्फ्रेंस या पीडीपी जैसी पार्टियां भी बेअसर नहीं रहीं, जो उग्रवाद के दिनों में भारत के साथ मजबूती से खड़ी रही थीं। सुरक्षा बलों की मदद से प्रशासन घाटी में आतंकवाद पर कड़ी लगाम लगाने में कामयाब रहा है, लेकिन अब यह जम्मू संभाग में बड़ी चिंता का विषय बन गया है।
दूसरी बात यह कि सरकार को इस तथ्य का लाभ उठाने की आवश्यकता है कि 2024 के चुनाव में जम्मू-कश्मीर में भारी मतदान हुआ था और चुनावी प्रक्रिया के प्रति लोगों में उत्साह देखा गया था। यह सुप्रीम कोर्ट के दिसंबर 2023 के निर्देश पर आधारित है, जिसने अनुच्छेद 370 पर केंद्र सरकार की कार्रवाई की वैधता को बरकरार रखा है, लेकिन साथ ही जम्मू-कश्मीर (लद्दाख को छोड़कर) के लिए राज्य का दर्जा शीघ्र बहाल करने का भी आह्वान किया है। वास्तव में न्यायालय ने वहां पर सितंबर 2024 तक चुनाव कराने को कहा है। इससे घाटी में केंद्र सरकार और जनमत के बीच विश्वास-बहाली की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
तीसरे, हालिया घटनाओं के बाद उग्रवाद में वृद्धि को रोकने के लिए कठोर सैन्य अभियान चलाने की आवश्यकता है। सेना ने एक ब्रिगेड के बराबर सैनिकों (3000) को क्षेत्र में भेजा है। साथ ही पैरा कमांडो (400-500) की एक बटालियन भी भेजी है, जिन्हें विशेष रूप से पहाड़ी/जंगली इलाकों में काम करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है।
अर्धसैनिक बलों की तैनाती भी बढ़ाई गई है। पिछले अनुभव को देखते हुए इसमें कोई संदेह नहीं है कि सेना सफल होगी। और सबसे अंत में, सीमा-पार आतंकवाद रोकने के लिए कूटनीतिक प्रयास के साथ-साथ गहन सैन्य कार्रवाई की आवश्यकता है।
अब तक जो कुछ हुआ है, उसे देखते हुए ऐसा कहना तो आसान है, लेकिन करना मुश्किल। लेकिन आज पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति पहले से भी बदतर है और उस पर अमेरिका, यूएई, सऊदी अरब के माध्यम से भारत के कूटनीतिक प्रभाव का उपयोग करके दबाव बनाया जा सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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